सूर्य-देवता को देवताओं के प्रमुख माना जाता है. उन्हें ब्रम्हांड के उत्तरी भाग का रक्षक भी माना जाता है. वे वेदों को समझने में सहायता करते हैं. जैसा कि ब्रम्ह-संहिता (5.52) में पुष्टि की गई है:

यच्-चक्षुर् ऐषा सविता सकल-ग्रहणम रज समस्त-सुर-मूर्तिर अशेष-तेजः
यसज्ञाय ब्रम्हति संभ्रत-कला-चक्रो गोविंदम आदि-पुरुषम् तम अहम भजामि

“अनंत आभा से भरा हुआ सूर्य, सभी ग्रहों का राजा और शुभ आत्मा का छवि होता है. सूर्य परम भगवान के नेत्र के समान है. मैं आदि भगवान गोविंद का भजन करता हूँ, जिनकी आज्ञा का अनुसरण करते हुए ही सूर्य समय के पहिये पर सवार होकर अपनी यात्रा करता है.” सूर्य वास्तव में भगवान का नेत्र है. वैदिक मंत्रों में यह कहा गया है कि जब तक भगवान के परम व्यक्तित्व नहीं देखते, कोई नहीं देख सकता. जब तक कि सूर्य का प्रकाश न हो, किसी भी ग्रह पर कोई भी जीव देख नहीं सकता. इसलिए सूर्य को भगवान का नेत्र माना जाता है. इसकी पुष्टि यहाँ यच-चक्षुर् असित और ब्रम्ह संहिता में यच-चक्षुर् ऐषा सविता शब्दों से की गई है. सविता का अर्थ सूर्य देवता होता है.

स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , आठवाँ सर्ग, अध्याय 5 – पाठ 36

(Visited 33 times, 1 visits today)
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •