“हमारा ब्रम्हांड भौतिक संसार के अनेक ब्रम्हांडों में से एक है. लेखों के अनुसार, एसी गणना की गई है कि आध्यात्मिक संसार में परम भगवान की ऊर्जा का तीन चौथाई भाग होता है, और कहा जाता है कि भौतिक संसार में उनकी ऊर्जा का एक चौथाई भाग होता है, लेकिन कोई भी नहीं समझ सकता कि यह तीन चौथाई कितना है, क्योंकि इस भौतिक ब्रम्हांड का वर्णन भी संभव नहीं है, जिसमें उनकी ऊर्जा का केवल एक चौथाई भाग शामिल है. हमारा ब्रम्हांड केवल चार सौ करोड़ मील जितना बड़ा है; हालांकि, ऐसे लाखों करोड़ों ब्रम्हांड हैं जो सुदूर हैं, हमारे ब्रम्हांड से बहुत बड़े हैं. ऐसे कुछ ब्रम्हांड खरबों मील विस्तृत हैं.

भौतिक आकाश के आगे, आध्यात्मिक आकाश का असीमित विस्तार है जिसे सामान्यतः ब्रम्हज्योति के रूप में जाना जाता है. इस प्रभामंडल में, असंख्य आध्यात्मिक ग्रह हैं, और उन्हें वैकुंठ ग्रहों के रूप में जाना जाता है. प्रत्येक वैकुंठ ग्रह भौतिक संसार के भीतर के सबसे बड़े ब्रम्हांड से कई-कई बार गुना बड़ा होता है, और प्रत्येक में एसे असंख्य निवासी होते हैं जो बिलकुल भगवान विष्णु जैसे दिखते हैं.ये वो लोग हैं जो भगवान की सेवा में प्रत्यक्ष रूप से रत हैं. वे उन ग्रहों में प्रसन्न हैं और उन्हें कोई भी कष्ट नहीं है, वे चिरकाल के लिए युवावस्था में होते हैं, जीवन को संपूर्ण आनंद और ज्ञान के साथ जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था या रोग के भय के बिना लेते हैं. (भगवदगीता 2.5.39, 2.5.39)”

स्रोत: “अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी), “भगवान चैतन्य की शिक्षाएँ, स्वर्ण अवतार”, पृष्ठ 113 और 114

उर्मिला देवी दासी, http://btg.Krishna.com/creation-and-dissolution-material-world”

(Visited 4 times, 1 visits today)
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •