असमय मृत्यु का सामना करने वाले व्यक्ति के लिए यह स्वाभाविक है कि वह स्वयं को बचाने का यथासंभव प्रयास करे. यह व्यक्ति का कर्तव्य होता है. यद्यपि मृत्यु निश्चित है, सभी को इससे बचने का प्रयास करना चाहिए और बिना विरोध के मृत्यु का सामना नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रत्येक जीवित आत्मा स्वभाव से शाश्वत है. चूँकि मृत्यु भौतिक अस्तित्व के निंदित जीवन पर आरोपित दण्ड होती है, वैदिक संस्कृति मृत्यु को टाल देने पर आधारित है (त्यक्त्वा देहं पुनर् जन्म नीति). प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्मिक जीवन की साधना करके मृत्यु और पुनर्जन्म से बचने का प्रयास करना चाहिए और जीवित रहने के लिए संघर्ष किए बिना मृत्यु के प्रति समर्पण नहीं करना चाहिए. जो मृत्यु को रोकने का प्रयास नहीं कर रहा वह बुद्धिमान मनुष्य नहीं है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 01- पाठ 48

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