प्रकृति के नियमों द्वारा हमारे अपने शरीरों सहित सभी भौतिक वस्तुएँ धीरे-धीरे विघटित हो जाती हैं।
शब्द गभीर-रयः, या “अगोचर गति और शक्ति,“ महत्वपूर्ण है। हम देखते हैं कि प्रकृति के नियम द्वारा हमारे शरीरों सहित सभी भौतिक वस्तुएँ, धीरे-धीरे विघटित हो जाती हैं। यद्यपि हम इस आयु बढ़ने की प्रक्रिया के लंबी-अवधि के परिणामों को समझ सकते हैं, किंतु हम स्वयं प्रक्रिया का अनुभव नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, कोई भी यह अनुभव नहीं कर सकता कि उसके बाल या नाखून किस प्रकार बढ़ रहे हैं। हम उनके विकास के संचयी परिणाम को देखते हैं, लेकिन हम इसका पल-पल का अनुभव नहीं कर सकते। उसी प्रकार, किसी घर का क्षरण धीरे-धीरे होता रहता है जब तक कि वह नष्ट न हो जाए। हम पल-पल इसका सटीक अनुभव नहीं कर सकते कि ऐसा कैसे हो रहा है, किंतु समय के लंबे अंतराल में हम घर के क्षरण को वास्तव में देख सकते हैं। दूसरे शब्दों में, हम आयु बढ़ने और क्षरण होने के परिणामों या आविर्भाव का अनुभव कर सकते हैं, लेकिन जब यह हो रहा होता है, तो यह प्रक्रिया अपने आप में अगोचर होती है। यह समय के रूप में भगवान के परम व्यक्तित्व की अद्भुत शक्ति है।
स्रोत – अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद भागवतम”, ग्यारहवाँ सर्ग, अध्याय 6 – पाठ 15.