भौतिक प्रगति बुरी नहीं है, उसका उपयोग भगवान की सेवा में करें.

व्यक्ति को ऐसी किसी भी वस्तु को नहीं त्यागना चाहिए जिसका उपयोग भगवान की सेवा में किया जा सकता हो. यह आध्यात्मिक सेवा का एक रहस्य है. कोई भी वस्तु जिसका उपयोग कृष्ण चेतना और आध्यात्मिक सेवा की प्रगति करने में किया जा सकता है, उसे स्वीकार करना चाहिए. उदाहरण के लिए, हम हमारे वर्तमान कृष्ण चेतना आंदोलन की प्रगति के लिए कई मशीनों का उपयोग कर रहे हैं, टाइपराइटर, डिक्टाफ़ोन, टेप रेकॉर्डर, माइक्रोफ़ोन और हवाई जहाजों जैसी मशीनें. कई बार लोग हमसे पूछते हैं, “यदि आप भौतिक सभ्यता की प्रगति की निंदा करते हैं तो आप भौतिक उत्पादों का उपयोग क्यों करते हैं?” लेकिन वास्तव में हम निंदा नहीं करते. हम लोगों से बस यह कहते हैं कि वे जो भी कर रहे हैं उसे कृष्ण चेतना में करें. यह वही सिद्धांत है, जिसके आधार पर, कृष्ण ने भगवद्-गीता में अर्जुन को उनके युद्ध कौशल को आध्यात्मिक सेवा में उपयोग करने का सुझाव दिया था. उसी प्रकार, हम इन मशीनों का उपयोग कृष्ण की सेवा में कर रहे हैं. कृष्ण या कृष्ण चेतना के लिए ऐसे भावों के साथ, हम सबकुछ स्वीकार कर सकते हैं. यदि हमारे कृष्ण चेतना आंदोलन की प्रगति के लिए टाइपराइटर का उपयोग किया जा सकता है, तो हमें उसे स्वीकार करना चाहिए. उसी प्रकार, डिक्टाफ़ोन या किसी भी अन्य मशीन का उपयोग किया जाना चाहिए. हमारी दृष्टि है कि कृष्ण ही सब कुछ हैं. कृष्ण ही कारण और प्रभाव हैं, और हमारा कुछ भी नहीं है. कृष्ण की वस्तुओं का उपयोग कृष्ण की सेवा में किया जाना चाहिए. अवैयक्तिकतावादी जो प्रत्येक भौतिक वस्तु से बचने का प्रयास करते हैं संभव है गंभीर तप करते हों, लेकिन वे सेवा में रत होने का अवसर खो देते हैं. अतः उनका त्याग पूर्णता के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ, आध्यात्मिक सेवा से किसी भी प्रकार के संपर्क के बिना ऐसे कृत्रिम त्याग का पालन करते हुए, अवैयक्तिकतावादी पुनः पतित हुए हैं और भौतिक दूषण के प्रति आकर्षित हुए हैं. वर्तमान क्षण में भी ऐसे कई संभावित त्यागी हैं जो आधिकारिक रूप से सन्यासी या त्यागी बन जाते हैं और बाहरी रूप से दावा करते हैं कि आध्यात्मिक अस्तित्व सत्य है और भौतिक अस्तित्व असत्य है. इस प्रकार, कृत्रिम रूप से वे भौतिक संसार के त्याग का दिखावा करते हैं. यद्यपि, चूँकि वे आध्यात्मिक सेवा के बिंदु पर नहीं पहुँच सकते, वे लक्ष्य पाने वे विफल हो जाते हैं और फिर से भौतिक गतिविधियों, जैसे सामाजिक कार्य, राजनैतिक आंदोलन, इत्यादि की ओर लौट जाते हैं. ऐसे तथाकथित सन्यासियों के कई उदाहरण हैं, जिन्होंने असत्य मानते हुए संसार का त्याग किया, लेकिन फिर से भौतिक संसार में लौट आए क्योंकि वे भगवान के चरण कमलों में अपनी वास्तविक स्थिति की खोज नहीं कर रहे थे.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2011, अंग्रेजी संस्करण), “समर्पण का अमृत”, पृ. 114 व 115