कलि-युग प्रदूषण से भरा हुआ है. इसका वर्णन श्रीमद्-भागवतम् (12.3.51) में किया गया है :

<span style=”color: #800000;”>कालेर् दोष-निधे राजन अस्तिह्य एको महान गुणः</span>
<span style=”color: #800000;”>कीर्तनाद् एव कृष्णेस्य मुक्त-संगः परम व्रजेत</span>

यह कलि का युग असीमित दोषों से भरा हुआ है. वस्तुतः यह बिलकुल किसी दोषों के समुद्र (दोष निधि) के समान है. किंतु एक अवसर है. कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संगः परम व्रजेत : केवल हरे कृष्ण मंत्र का जाप करने से, व्यक्ति कलि युग के दोषों से छुटकारा पा सकता है और, अपने मूल आध्यात्मिक शरीर में, वापस घर परम भगवान के पास लौट सकता है. यही कलियुग का अवसर है. जब कृष्ण प्रकट हुए, उन्होंने अपने आदेश दिए, और जब कृष्ण स्वयं एक भक्त, श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए, उन्होंने हमें वह मार्ग दिखलाया जिसके माध्यम से कलि-युग के समुद्र को पार करना है. यही हरे कृष्ण आंदोलन का पथ है. जब श्री चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए, तो वे संकीर्तन आंदोलन के लिए युग प्रवर्तक हुए. ऐसा भी कहा जाता है कि दस सहस्त्र वर्षों तक यह युग जारी रहेगा. इसका अर्थ है कि केवल संकीर्तन आंदोलन को स्वीकार करने और हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करने से, कलि-युग की ये पतित आत्माएँ तर जाएँगी. करुक्षेत्र के युद्ध के बाद, जिसमें भगवद्-गीता को कहा गया था, कलि-युग 432,000 वर्षों से चल रहा है, जिसमें से केवल 5000 वर्ष व्यतीत हुए हैं. अतः अब भी 427,000 वर्षों की अवधि आना बाकी है. इन 427,000 वर्षों में से संकीर्तन आंदोलन के 10,000 वर्षों का उद्घाटन श्री चैतन्य महाप्रभु ने 500 वर्ष पहले लिए किया था ताकि कलि-युग की पतित आत्माओं को कृष्ण चेतना आंदोलन अंगीकार करने, हरे-कृष्ण मंत्र का जाप करने और इस प्रकार भौतिक अस्तित्व के पंजों से तर जाने और परम भगवान के पास वापस घर लौटने की सुविधा दे सकें.

हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करना हमेशा शक्तिशाली होता है, किंतु यह इस कलि के युग में विशेष रूप से बलशाली है. इसलिए महाराज परीक्षित को उपदेश करते समय, शुकदेव गोस्वामी ने हरे कृष्ण मंत्र के जाप पर विशेष बल दिया था.

<span style=”color: #800000;”>कालेर दोष-निधे राजन अस्तिह्य एखो महान गुणः</span>
<span style=”color: #800000;”>कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संगः परम व्रजेत</span>

“मेरे प्रिय राजा, भले ही कलि-युग दोषों से भरा है, फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है. वह यह कि केवल हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करने से, व्यक्ति भौतिक बंधनों से मुक्त हो सकता है और पारलौकिक राज्य में पदोन्नति पा सकता है.” (भागवतम् 12.3.51) जिन्होंने हरे कृष्ण महा-मंत्र का प्रचार करने की चुनौती पूर्ण कृष्ण चेतना में स्वीकार की है, उन्हें लोगों को बड़ी सरलता से भौतिक अस्तित्व से पार कराने का यह अवसर लेना चाहिए. इसलिए, हमारा कर्तव्य श्रीचैतन्य महाप्रभु के निर्देशों का गंभीरता से पालन और कृष्ण चेतना आंदोलन का प्रचार संसार भर में करना है. यही मानव समाज की शांति और समृद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ कल्याणकारी गतिविधि है.

स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , आठवाँ सर्ग, अध्याय 5 – पाठ 23

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