जब तक व्यक्ति समर्पण की उन्नत श्रेणी अर्जित नहीं कर लेता, वह मन और बुद्धि को स्थिर नहीं कर सकता, क्योंकि कृष्ण शुद्ध आध्यात्मिक अस्तित्व हैं. आत्म-साक्षात्कार इच्छाहीनता की नहीं, बल्कि शुद्धीकृत इच्छा की अवस्था है, जिसमें व्यक्ति केवल भगवान कृष्ण के सुख की कामना करता है. गोपियाँ निश्चित रूप से दाम्पतिक प्रेम के भाव में कृष्ण की ओर आकर्षित हुईं, और तब भी, उन्होंने अपने मन और निस्संदेह अपने पूरे अस्तित्व को पूर्णरूपेण कृष्ण पर स्थिर कर दिया, उनकी दाम्पतिक इच्छा कभी भी भौतिक वासना के रूप में प्रकट नहीं हो सकती थी; बल्कि, यह ब्रह्मांड में देखा गया परम भगवान के प्रेम का सबसे ऊँचा रूप बन गया.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 22 – पाठ 26

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