सामान्य जीव के लिए जो बंधन है वह भगवान के परम व्यक्तित्व के लिए स्वतंत्रता है.
“कभी-कभी, मेघों की गर्जना के साथ, इंद्रधनुष भी प्रकट होता है, जो किसी प्रत्यंचा रहित धनुष के समान होता है. वास्तविकता में, वक्र स्थिति में एक धनुष क्योंकि वह अपने दोनों छोरों पर प्रत्यंचा से बंधा होता है; किंतु इंद्रधनुष में ऐसी कोई प्रत्यंचा नहीं होती, और तब भी वह आकाश में इतनी सुंदरता से स्थित होता है. उसी प्रकार, जब भगवान के परम व्यक्तित्व इस भौतिक संसार में उतरते हैं, तो वे बस किसी सामान्य मानव जैसे लगते हैं, किंतु वे किसी भी भौतिक परिस्थिति पर निर्भर नहीं होते. भगवद-गीता में भगवान कहते हैं कि वे अपनी आंतरिक शक्ति द्वारा प्रकट होते हैं, जो बाह्य शक्ति के बंधन से मुक्त होती है. सामान्य जीव के लिए जो बंधन है वह भगवान के परम व्यक्तित्व के लिए स्वतंत्रता है.”
स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 20- पाठ 18