सभ्यता की भौतिक उन्नति का अर्थ है खगोलीय प्रभाव के कारण तीन गुना दुख की प्रतिक्रियाओं की प्रगति, धरती की प्रतिक्रिया औऱ शारीरिक या मानसिक कष्ट. नक्षत्रों के खगोलीय प्रभाव से अत्यधिक गर्मी, ठंड, बारिश या बारिश नहीं होने जैसी कई आपदाएँ होती हैं, और उसके परिणाम स्वरूप अकाल, बीमारी और महामारी होते हैं. कुल परिणाम शरीर और मन की पीड़ा है. मानव निर्मित भौतिक विज्ञान इन त्रिविध दुखों का मुकाबला करने के लिए कुछ भी नहीं कर सकता है. वे सभी परम भगवान के निर्देश के अधीन माया की उच्चतर ऊर्जा की ओर से दंड हैं. इसलिए भक्ति सेवा द्वारा भगवान के साथ हमारा निरंतर संपर्क हमारे मानवीय कर्तव्यों के निर्वहन में व्यवधान डाले बिना हमें राहत दे सकता है. यद्यपि, असुर, जो भगवान के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते हैं, इन त्रिविध दुखों का मुकाबला करने के लिए अपनी योजना बनाते हैं, और इसलिए उन्हें हर बार विफलता मिलती है. भगवद-गीता (7.14) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि तीन अवस्थाओं के बाध्यकारी प्रभाव के कारण भौतिक ऊर्जा की प्रतिक्रिया को कभी नहीं जीता जा सकता. उन्हें केवल उसके द्वारा जीता जा सकता है जो पूर्ण रूप से भगवान के चरण कमलों में समर्पण करता है.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014, अंग्रेजी संस्करण), “श्रीमद्-भागवतम” प्रथम सर्ग, अध्याय 14- पाठ 10

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