भगवद्-गीता पुष्टि करती है कि भगवान सभी के हृदय में साक्षी के रूप में स्थित हैं, और इस प्रकार वे स्वीकृति के सर्वोच्च निर्देशक हैं. निर्देशक कर्मफलों का भोगी नहीं होता, क्योंकि भगवान की स्वीकृति के बिना कोई भी भोग नहीं कर सकता. उदाहरण के लिए, किसी निषिद्ध क्षेत्र में कोई आदतन शराबी मद्यपान के निदेशक को अपना आवेदन प्रस्तुत करता है, और निदेशक उसके प्रसंग पर विचार करके, पीने के लिए केवल एक निर्दिष्ट मात्रा में मद्य की स्वीकृति देता है. उसी प्रकार, समस्त भौतिक संसार शराबियों से भरा है, इस अर्थ में कि प्रत्येक जीव के मन में आनंद लेने के लिए कुछ न कुछ हो, और हर कोई अपनी इच्छाओं की पूर्ति बहुत दृढ़ता से चाहता है. जीवों के प्रति बहुत दयालु होने के नाते, जैसा एक पिता पुत्र के लिए दयालु होता है, सर्वशक्तिमान भगवान, जीव की बचकानी संतुष्टि के लिए उसकी इच्छा को पूरा करते हैं. मन में ऐसी इच्छाओं के साथ, जीव वास्तव में आनंद नहीं लेता, बल्कि वह बिना लाभ के शारीरिक छलावों को पोषित करता है. शराबी को पीने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है, लेकिन चूँकि वह पीने की आदत का दास बन गया है और उससे बाहर निकलने की इच्छा नहीं करता है, दयालु भगवान उसे ऐसी इच्छाओं को पूरा करने के लिए सभी सुविधाएं देते हैं. अवैयक्तिक लोग सुझाव देते हैं कि व्यक्ति को इच्छा रहित होना चाहिए, और अन्य पूरी तरह से इच्छाओं को नष्ट करने की सुझाव देते हैं. यह असंभव है; कोई भी पूरी तरह से इच्छाओं का दमन नहीं कर सकता क्योंकि इच्छा करना जीवित होने का लक्षण है. बिना कामना के जीव मृत होगा, जो कि वह नहीं है. इसलिए, जीवन की परिस्थितियाँ और कामना साथ चलती हैं, कामना की पूर्णता को तब प्राप्त किया जा सकता है जब व्यक्ति भगवान की सेवा की इच्छा करता है और भगवान भी यही कामना करते हैं कि प्रत्येक जीव व्यक्तिगत इच्छाओं का दमन करे और उनकी इच्छाओँ के साथ सहयोग करे. यही भगवद गीता का अंतिम निर्देश है. ब्रह्माजी इस प्रस्ताव पर सहमत हुए, और इसलिए उन्हें रिक्त ब्रह्मांड में पीढ़ियों के निर्माण का उत्तरदायी पद दिया गया. इसलिए भगवान के साथ एकता में व्यक्ति की इच्छाओं का भगवान की इच्छाओं के साथ मेल होना शामिल होता है. इस प्रकार सभी इच्छाओं में पूर्णता आती है. सभी प्राणियों के हृदय में परमात्मा के रूप में भगवान, जानते हैं कि प्रत्येक प्राणी के मन में क्या है, और कोई भी अंतर में उपस्थित भगवान के ज्ञान के बिना कुछ भी नहीं कर सकता. अपनी श्रेष्ठ बुद्धि के द्वारा, भगवान सभी को अपनी इच्छाओं को पूर्ण सीमा तक पूरा करने का मौका देते हैं, और परिणामी प्रतिक्रिया भी भगवान द्वारा ही प्रदान की जाती है.

स्रोत : अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, द्वितीय सर्ग, अध्याय 09- पाठ 25

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