भगवान कृष्ण की भक्ति सेवा दान से प्राप्त होती है (दान : भगवान विष्णु और उनके भक्तों को दिया गया दान), कड़ा व्रत (व्रत: एकादशी जैसे व्रतों का पालन करना), तपस्या (तपस : कृष्ण के लिए इन्द्रियतृप्ति का त्याग) और अग्नि दान (होम: विष्णु को समर्पित अग्नि दान), जप द्वारा (निजी स्तर पर भगवान के पवित्र नामों का जाप), वैदिक ग्रंथों का अध्ययन (स्वाध्याय : वैदिक ग्रंथों का अध्ययन और पाठ जैसे कि गोपाल-तापनि उपनिषद), नियामक सिद्धांतों का पालन और, निस्संदेह, कई अन्य शुभ प्रथाओं के निष्पादन द्वारा.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 47- पाठ 24

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