श्रीमद् भागवतम् से हम समझते हैं कि जब कृष्ण इस पृथ्वी पर उपस्थित थे तब उनकी 16,108 पत्नियाँ थीं; यद्यपि. चूँकि कृष्ण कभी-कभी सामान्य पुरुष के रूप में अवतरित होते हैं, लोग उनकी गतिविधियों से विश्वतस्त नहीं हो पाते या उन्हें समझ नहीं पाते. उन्हें आश्चर्य होता है, “भगवान हमारे जैसे एक साधारण व्यक्ति कैसे बन सकते हैं?” लेकिन यद्यपि कृष्ण कभी-कभी साधारण व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं,लेकिन वे साधारण नहीं हैं, और जब भी आवश्यक हो वे भगवान की शक्ति प्रदर्शित करते हैं. जब राक्षस भौमासुर द्वारा सोलह हज़ार कन्याओं का अपहरण कर लिया गया था, उन्होंने कृष्ण से प्रार्थना की थी, और इसलिए कृष्ण राक्षस के स्थान पर गए, राक्षस का वध किया, और सभी कन्याओं को वापस लाए. लेकिन कड़ी वैदिक प्रणाली के अनुसार, यदि कोई अविवाहित कन्या एक रात के लिए भी अपना घर त्यागती थी, तो उससे कोई विवाह नहीं करेगा. इसलिए जब कृष्ण ने कन्याओं से कहा, “अब आप अपने पिता के घर पर सुरक्षित वापस जा सकती हैं,” उन्होंने उत्तर दिया, “श्रीमान, यदि हम अपने पिताओं के घर वापस जाते हैं, तो हमारा क्या भाग्य होगा? हमसे कोई विवाह नहीं करेगा, क्योंकि इस व्यक्ति ने हमारा अपहरण किया था.” “तब, आप क्या चाहती हैं?” कृष्ण ने प्रश्न किया. कन्याओं ने उत्तर दिया, “हम चाहते हैं कि आप हमारे पति बन जाएँ.” और कृष्ण इतने दयालु हैं कि उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी और उन्हें स्वीकार कर लिया. अब जब कृष्ण अपनी राजधानी में इन कन्याओं को लाए, तो ऐसा नहीं है कि सोलह हज़ार पत्नियों को कृष्ण से मिलने के लिए सोलह हज़ार रात्रियों की प्रतीक्षा करनी पड़ी. बल्कि, कृष्ण ने स्वयं का विस्तार सोलह हज़ार रूपों में कर लिया, सोलह हज़ार महल बना दिये, और प्रत्येक महल में प्रत्येक पत्नी के साथ रहने लगे. हालाँकि इसका वर्णन श्रीमद्- भागवतम् में किया गया है, लेकिन दुष्ट इसे नहीं समझ सकते. बल्कि वे कृष्ण की आलोचना करते हैं. “वे बहुत कामी थे,” वे कहते हैं. “उन्होंने सोलह हज़ार पत्नियों से विवाह किया.” लेकिन वे कामी भी हैं तो वे असीमित रूप से कामी हैं. भगवान असीम हैं. सोलह हज़ार क्यों? वे सोलह करोड़ से भी विवाह कर सकते थे और तब भी अपनी संपूर्णता की सीमा तक नहीं पहुँचते. ऐसे हैं कृष्ण. हम कृष्ण पर कामी या वासनामयी होने का आरोप नहीं लगा सकते. नहीं. कृष्ण के कई भक्त हैं, और कृष्ण सभी पर कृपा दिखाते हैं. कुछ कृष्ण को अपना पति बन जाने को कहते हैं, कुछ अपना मित्र बन जाने को कहते हैं, कुछ कृष्ण को अपना पुत्र बन जाने के लिए कहते हैं, और कुछ कृष्ण को अपना बाल सखा बना जाने को कहते हैं. इस प्रकार से, समस्त ब्रम्हांड में लाखों, करोड़ों भक्त हैं, और कृष्ण को सभी को संतुष्ट करना होता है. उन्हें इन भक्तों से कोई सहायता नहीं चाहिए होती, लेकिन चूँकि वे किसी विशिष्ट ढंग से उनकी सेवा करना चाहते हैं, भगवान प्रतिफल देते हैं. ये सोलह हज़ार भक्त कृष्ण को अपने पति के रूप में चाहते थे, और इसलिए कृष्ण सहमत हो गए.

स्रोत : अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “रानी कुंती की शिक्षाएँ” पृ. 90 और 91
अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “आत्म साक्षात्कार का विज्ञान”, पृ. 21

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