साधु के लक्षण हैं कि वह सभी प्राणियों के प्रति सहनशील, दयावान और मित्रवत हो. उसके कोई शत्रु नहीं होते, वह शांत होता है, वह पुराणों का पालन करता है, और उसके सभी गुण उत्तम हों. एक साधु भगवान का भक्त होता है, इसलिए उसकी चिंता लोगों को आध्यात्मिक सेवा में प्रबुद्ध करने की होती है: ऐसी उसकी दया होती है. वह जानता है कि आध्यात्मिक सेवा के बिना मानव जीवन व्यर्थ जाता है. एक भक्त, पूरे देश में, घर-घर जाकर यह प्रचार करता है, ” कृष्ण के प्रति चैतन्य बनो, भगवान कृष्ण के भक्त बनो. केवल अपनी पशु प्रवृत्ति को पूरा करने में अपने जीवन को व्यर्थ मत गँवाओ. मानव जीवन आत्म-साक्षात्कार या कृष्ण चेतना के लिए है.” ये साधु के उपदेश होते हैं. वह अपनी मुक्ति से संतुष्ट नहीं होता है. वह हमेशा दूसरों के बारे में सोचता है. वह सभी पतित आत्माओं की ओर करुणामयी व्यक्तित्व वाला होता है. इसलिए उसकी एक योग्यता, करुणिका, पतित आत्माओं के प्रति दया होती है. उपदेश कार्य में लगे रहने के दौरान, उसे कई विरोधी तत्वों के साथ मिलना पड़ता है, और इसलिए साधु को बहुत सहनशील होना पड़ता है. उसके साथ किसी व्यक्ति द्वारा बुरा व्यवहार किया जा सकता है क्योंकि बाधित आत्माएँ आध्यात्मिक सेवा के पारलौकिक ज्ञान को प्राप्त करने के लिए तैयार नहीं होती हैं. उन्हें यह पसंद नहीं आता है; यह उनका रोग है. साधु के पास उन्हें आध्यात्मिक सेवा का महत्व उन्हें बताने का धन्यवाद रहित कार्य होता है. कभी-कभी भक्तों पर व्यक्तिगत रूप से हिंसा की जाती है. भगवान जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया गया, हरिदास ठाकुर को बाईस बाज़ारों में छड़ी से पीटा गया था, और भगवान चैतन्य के मुख्य सहायक, नित्यानंद, पर जगई और मधई द्वारा हिंसक हमला किया गया था. लेकिन फिर भी वे सहिष्णु थे क्योंकि उनका अभियान पतित आत्माओं का उद्धार था. एक साधु दयालु होता है क्योंकि वह सभी जीवित प्राणियों का शुभचिंतक होता है. वह न केवल मानव समाज का शुभचिंतक होता है, बल्कि पशु समाज का भी शुभचिंतक होता है. शब्द सर्व-देहिनम का अर्थ उन सभी जीवित प्राणियों से है जिन्होंने भौतिक शरीर स्वीकार किये हैं. केवल मनुष्य के पास ही भौतिक शरीर नहीं है बल्कि अन्य जीवित प्राणियों के पास भी है. भगवान का भक्त बिल्लियों, कुत्तों, पेड़ आदि सभी के प्रति दयावान होता है. वह सभी जीवित प्राणियों से इस प्रकार व्यवहार करता है कि वे इस भौतिक जंजाल से मुक्ति पा सकें. भगवान चैतन्य के शिष्यों में से एक, शिवानंद सेना ने कुत्ते का आध्यात्मिक उपचार करके उसे मुक्ति दिलाई थी. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक कुत्ते को भी किसी साधु की संगति में मोक्ष मिल गया, क्योंकि साधु सभी प्राणियों के कल्याण के लिए सर्वोच्च परोपकारी गतिविधियों में संलग्न रहता है. हालांकि एक साधु किसी के प्रति अहितकर नहीं होता है, फिर भी संसार इतना कृतघ्न है कि साधु के भी कई शत्रु होते हैं.

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2007 संस्करण, अंग्रेजी), “भगवान कपिल, देवाहुति के पुत्र की शिक्षाएँ”, पृ. 135
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