“हमारा वास्तविक घर भगवान के राज्य में है. अपने सांसारिक घर में रहने के हमारे निश्चय के बाद भी, मृत्यु हमें भौतिक प्रसंगों के रंगमच से रुखाई से निष्काषित कर देगी. घर पर रहना बुरा नहीं है, न ही अपने प्रियजनों के लिए स्वयं को समर्पित करना त्रुटिपूर्ण है. किंतु हमें यह समझना चाहिए कि आध्यात्मिक राज्य में हमारा वास्तविक निवास शाश्वत है.

शब्द अयत्नतः दर्शाता है कि मानव जीवन हमें स्वतः प्रदान किया जाता है. हमने अपने मानव शरीरों का निर्माण नहीं किया है, और इसलिए हमें मूर्खतापूर्ण दावा नहीं करना चाहिए, “यह शरीर मेरा है.” मानव रूप भगवान का उपहार होता है और उसका उपयोग भगवान चेतना की पूर्णता अर्जित करने में करना चाहिए. जो यह नहीं समझता कि यह असन्-मति है, उसकी बुद्धि मंद, और साधारण है.”

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 51- पाठ 46

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