अधार्मिकता के मूल सिद्धांत जैसे अहंकार, वेश्यावृत्ति, नशा और असत्य, धर्म के चार सिद्धांतों, तपस्या, स्वच्छता, दया और सत्य का प्रतिकार करते हैं. कलि के व्यक्ति्व को राजा द्वारा निर्दिष्ट चार स्थानों, जुआ खेलने का स्थान, वेश्यावृत्ति का स्थान, मदिरापान का स्थान और पशु बलि के स्थान पर रहने की अनुमति दी गई थी. श्रील जीव गोस्वामी निर्देश करते हैं कि शास्त्रों के सिद्धांतों के विरुद्ध मदिरापान करना जैसे शौत्रमणियज्ञ, विवाह से इतर स्त्रियों से संबंध रखना, और शास्त्रों के सिद्धांतों के विरुद्ध पशु हत्या करना अधर्म है. वेदों में प्रवृत्तों, या जो भौतिक भोग में लगे हुए लोग हैं, उनके लिए दो भिन्न प्रकार के निषेध हैं. प्रवृत्तों के लिए वैदिक निषेध धीरे-धीरे उनकी गतिविधियों को मुक्ति के मार्ग में नियमित करना है. इसलिए, वे जो अज्ञान की सबसे निचली पायदान पर हैं और वे जो मदिरा, स्त्रियों और मांस का उपभोग करते हैं, उन्हें कुछ बार शौत्रमणि-यज्ञ का आयोजन करके मदिरापान करने, विवाह द्वारा स्त्रीगमन करने और बलि द्वारा मांस-भक्षण करने का सुझाव दिया जाता है. वैदिक साहित्य में ऐसे सुझाव पुरुषों के एक विशेष वर्ग के लिए हैं, सभी के लिए नहीं. लेकिन चूँकि वे विशेष प्रकार के व्यक्तियों के लिए वेदों के आज्ञाएँ हैं, प्रवृत्तों द्वारा ऐसे कार्यों को अधर्म नहीं माना गया है. किसी एक व्यक्ति का भोजन दूसरों के लिए विष हो सकता है; इसी समान, अज्ञानी लोगों के लिए जो सुझाव दिए गए हैं वे श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए विष हो सकते हैं. श्रील जीवा गोस्वामी प्रभु, इस बात की पुष्टि इसलिए करते हैं कि शास्त्रों में पुरुषों के एक निश्चित वर्ग के लिए उचित बातों को कभी भी अधार्मिक नहीं माना जाता है. परंतु ऐसी गतिविधियाँ वास्तविक रूप में अधर्म ही हैं, और उन्हेंप्रोत्साहित नहीं करना चाहिए. शास्त्रों के सुझाव इस प्रकार अधर्म के प्रोत्साहन के लिए नहीं हैं, बल्कि आवश्यक अधर्म को धीरे-धीरे धर्म के मार्ग पर लाने के लिए मर्यादित करने के लिए हैं.

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 17 - पाठ 38
(Visited 239 times, 1 visits today)
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •