प्रत्येक जीव, चाहे इस भौतिक संसार में या आध्यात्मिक संसार में, परम भगवान, भगवान के परम व्यक्तित्व के नियंत्रण में होता है. इस ब्रम्हांड के सर्वेसर्वा, ब्रम्हाजी से प्रारंभ करते हुए, एक क्षुद्र सी चींटी तक, सभी परम भगवान के आदेश का पालन कर रहे हैं. इसलिए जीवों की वैधानिक स्थिति भगवान के नियंत्रण के अधीन होती है. मूर्ख प्राणी, विशेषकर मानव, कृत्रिम रूप से सर्वोच्च के नियम से विद्रोह करता है और इस प्रकार एक असुर, या नियम तोड़ने वाले के रूप में दंड पाता है. किसी प्राणी को किसी विशेष अवस्था में परम भगवान के आदेश के अनुसार रखा जाता है, और उसे उस स्थान से दोबारा परम भगवान या उनके अधिकृत प्रतिनिधि के आदेशानुसार स्थानांतरित किया जाता है. ब्रम्हा, शिव, इंद्र, चंद्र, महाराज युधिष्ठिर, या आधुनिक इतिहास में, नेपोलियन, अकबर, सिकंदर, गांधी, सुभाष और नेहरु सभी भगवान के सेवक हैं, और उन्हें उनके संबंधित स्थानों में स्थापित या वहाँ से निष्काषित भगवान की परम इच्छा से ही किया जाता है. उनमें से कोई भी स्वतंत्र नहीं है. भले ही ऐसे मनुष्य या नेता भगवान की सत्ता को न पहचानते हुए विद्रोह करें, उन्हें विभिन्न कष्टों द्वारा भौतिक संसार के और भी अधिक कठिन नियमों के अधीन रखा जाता है. इसलिए केवल मूर्ख व्यक्ति ही कहता है कि कोई भगवान नहीं है. महाराज युधिष्ठिर को इस नग्न सत्य का विश्वास दिलाया जा रहा था क्योंकि वह अपने वृद्ध काका और काकियों के गमन से बहुत अधिक विव्हल हो गए थे. महाराज धृतराष्ट्र को उस स्थिति में उनके पिछले कर्मों के अनुसार ही रखा गया था; वे पूर्व में ही कष्ट या अपने उपार्जित लाभों का भोग कर चुके थे, लेकिन अपने सौभाग्य के कारण, संयोगवश उनका एक सदाचारी छोट भाई, विदुर था, और उनके निर्देशों पर वे इस भौतिक संसार के सभी खातों को बंद कर चले गए. सामान्यतः व्यक्ति योजना द्वारा उसकी नियत प्रसन्नता या कष्ट को बदल नहीं सकता. सभी को उन्हें काल या अजेय समय की गूढ़ व्यवस्था के अधीन उन्हें वैसा ही स्वीकारना पड़ता है. उन पर प्रतिक्रिया करना उपयोगी नहीं होता. इसलिए सर्वोत्तम यही है कि वयक्ति को मुक्ति पाने का प्रयास करना चाहिए, और यह विशेषाधिकार उसकी विकसित मानसिक गतिविधियों और बुद्धि की अवस्था के कारण केवल मानव को दिया जाता है. केवल मानव के लिए ही अस्तित्व के मानव रूप में ही मुक्ति पाने के विभिन्न वैदिक निर्देश होते हैं. वह जो इस उच्चतर बुद्धि के इस अवसर का दुरुपयोग करता है विभिन्न प्रकार से दंडित किया जाता है और विभिन्न कष्ट भोगता है, इस वर्तमान जीवन में या भविष्य में. यही विधि है जिससे परम भगवान सबको नियंत्रित करते हैं.

स्रोत :अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 13 – पाठ 41

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