जैसा कि अमर-कोष शब्दकोश में दिया गया है, भ्रूणोर्भके बाल-गर्भे : भ्रूण शब्द का आशय गाय या भ्रूण में स्थित जीव होता है. वैदिक संस्कृति के अनुसार, गर्भ में आत्मा के अविकसित भ्रूण को नष्ट करना गौ हत्या या ब्राम्हण की हत्या करने जितना ही पापमय होता है. भ्रूण में जीव अविकसित अवस्था में उपस्थित होता है. आधुनिक वैज्ञानिक धारणा कि जीवन रसायनों का संयोजन होता है, बकवास है; वैज्ञानिक जीव निर्मित नहीं कर सकते, वे भी नहीं जो अंडे से पैदा होते हैं. यह विचार कि वैज्ञानिक अंडे से मिलने-जुलने वाली रासायनिक अवस्था विकसित कर सकते हैं और उससे जीवन उत्पन्न कर सकते हैं, अतर्कसंगत है. उनका यह तर्क कि रासायनिक संयोजन में जीवन हो सकता है स्वीकार किया जा सकता है, किंतु ये दुष्ट ऐसा संयोजन निर्मित नहीं कर सकते. यह श्लोक भ्रूणस्य वधम् से संबंध रखता है–भ्रूण हत्या या उसका नाश. वैदिक साहित्य की ओर से एक चुनौती है. यह अपरिष्कृत, नास्तिक धारणा कि जीव पदार्थ का एक संयोजन है, पूरी तरह से अज्ञानता से संबंधित है.

स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्”, नवाँ सर्ग, अध्याय 9 – पाठ 31

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