प्रह्लाद महाराज ने बस कृष्ण का विचार किया. इस कारण, उन्हें अपने पिता द्वारा दिए गए महान कष्ट भोगने पड़े. भौतिक प्रकृति सरलता से हमें स्वतंत्रता नहीं देगी. यदि हम कृष्ण के चरण कमलों को ग्रहण करने का प्रयास करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली बन जाएँ, तो माया हमें अपने पंजों में रखने का प्रयास करेगी. यद्यपि, यदि व्यक्ति कृष्ण के लिए सब कुछ छोड़ दे, तो माया कोई प्रभाव नहीं डाल सकती. इसका सबसे बढ़िया उदाहरण गोपियाँ हैं. उन्होंने कृष्ण का अनुसरण करने के लिए परिवार, प्रतिष्ठा और सम्मान सबकुछ का त्याग कर दिया. वही सर्वोच्च पूर्णता है, लेकिन वह सामान्य जीवों के लिए संभव नहीं है. यद्यपि हमें, गोस्वामियों का अनुसरण कृष्ण पूजा के उनके दृढ़ निश्चय में करना चाहिए. सनातन गोस्वामी हुसैन शाह की सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्री थे, लेकिन चैतन्य महाप्रभु का अनुसरण करने के लिए उन्होंने सबकुछ त्याग दिया. उन्होंने एक भिक्षुक का जीवन अपनाया और हर रात एक अलग पेड़ के नीचे रहते थे. कोई पूछ सकता है, “भौतिक भोग छोड़ने के बाद, कोई कैसे जी सकता है?” गोस्वामी कृष्ण और गोपियों के बीच पारलौकिक प्रेम संबंधों के सागर में डुबकी लगाकर रहते थे. चूँकि यह उनकी संपत्ति थी, इसलिए वे बहुत शांति से रह सकते थे. हम ऐसे ही सबकुछ का त्याग नहीं कर सकते. यदि हम कृष्ण के प्रति सुदृढ़ श्रद्धा के बिना सभी कुछ त्यागने का प्रयास करेंगे तो विक्षिप्त हो जाएंगे. फिर भी यदि हम कृष्ण की संगति पा लें, तो हम सरलता से हमारे वैभवपूर्ण पदों-हमारा परिवार, व्यवसाय और सबकुछ त्याग सकते हैं. यद्यपि, उसके लिए, साधु-संग, एक साधु, किसी भक्त की संगति की आवश्यकता होती है. जब हम किसी भक्त की संगत करते हैं, तो एक दिन अंततः आएगा जब हम सबकुछ त्याग सकते हैं और मुक्त व्यक्ति बन सकते हैं, जो घर लौटने, वापस परम भगवान तक जाने के योग्य होता है.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2007, अंग्रेजी संस्करण). “देवाहुति पुत्र, भगवान कपिल की शिक्षाएँ”, पृ. 143

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