परम भगवान का चौगुना विस्तार वासुदेव, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध और संकर्षण से मिल कर होता है. चौथा विस्तार, संकर्षण, निश्चित ही पारौकिक है, लेकिन चूँकि भौतिक जगत में विनाश की उनकी गतिविधियाँ अज्ञानता की अवस्था में हैं, उन्हें तामसी, अज्ञानता की अवस्था में भगवान के रूप, से जाना जाता है. भगवान शिव जानते हैं कि शंकर्षण स्वयं उनके अस्तित्व का मूल कारण हैं, और इस प्रकार वह हमेशा तन्मयता में उनका ध्यान करते हैं. भगवान शिव भौतिक जगत के विनाश के प्रभारी हैं. भगवान ब्रह्मा भौतिक जगत का निर्माण करते हैं, भगवान विष्णु इसका पालन करते हैं, और भगवान शिव इसका विनाश करते हैं. चूँकि विनाश आज्ञानता की अवस्था में होता है, भगवान शिव और उनके पूज्यनीय देवता, संकर्षण को तकनीकी रूप से तामसी पुकारा जाता है. भगवान तमो-गुण के अवतार हैं. चूँकि भगवान शिव और संकर्षण दोनों सदैव प्रबुद्ध और पारलौकिक अवस्था में होते हैं, उन्हें भौतिक प्रकृति की अवस्थाओं– भलाई, कामना और अज्ञानता– से कोई लेना-देना नहीं होता, लेकिन चूँकि उनकी गतिविधियाँ उन्हें अज्ञानता की अवस्था के साथ सम्मिलित करती हैं, उन्हें कभी-कभी तामसी कहा जाता है.

स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, पाँचवाँ सर्ग, अध्याय 17 – पाठ 16

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