यद्यपि भगवान का परम व्यक्तित्व ही सभी वस्तुओं का परम कर्ता है, अपने मूल पारलौकिक अस्तित्व में वह बद्ध आत्माओं के सुख और दुख,या बंधन और मुक्ति के लिए उत्तरदायी नहीं है. ये इस भौतिक संसार में रहने वाले जीवों की परिणामी गतिविधियों के परिणामों के कारण हैं. न्यायाधीश के आदेश से, किसी व्यक्ति को जेल से रिहा कर दिया जाता है, और दूसरे को जेल में डाल दिया जाता है, लेकिन न्यायाधीश अलग-अलग लोगों के संकट और प्रसन्नता के लिए उत्तरदायी नहीं होता है. यद्यपि सरकार ही उच्चतम प्राधिकारी होती है, न्याय को सरकार के विभागों द्वारा व्यवस्थापित किया जाता है, और सरकार किसी व्यक्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होती है. इसलिए सरकार सभी नागरिकों के लिए समान है. उसी प्रकार, परम भगवान भी सभी के लिए तटस्थ है, लेकिन कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उनकी परम सरकार में विभिन्न विभाग हैं, जो जीवों की गतिविधियों पर नियंत्रण रखते हैं. इस संबंध में एक अन्य उदाहरण दिया जाता है कि कुमुदिनी पुष्प प्रकाश के कारण खुलता या बंद होता है, और इस प्रकार भौंरे आनंद लेते या कष्ट भोगते हैं, परंतु धूप और सूर्य भौंरों के आनंद या कष्ट के लिए उत्तदायी नहीं होते हैं.

अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, छठा सर्ग, अध्याय 17 – पाठ 23

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