अपने अतीत के पापमयी कर्मों और परिणामी कष्टों पर महाराजा युधिष्ठिर के भ्रम को महान विद्वान भीष्म (बारह प्रामाणिक व्यक्तियों में से एक) ने पूरी तरह नकारा गया है. भीष्म महाराजा युधिष्ठिर को समझाना चाहते थे कि शिव और ब्रम्हा जैसे देवता सहित, आदिकाल से कोई भी भगवान की वास्तविक योजना को नहीं समझ सकते थे. तो हम इस बारे में क्या समझ सकते हैं? इसके बारे में खोज-बीन करना भी व्यर्थ है. यहाँ तक कि ऋषियों द्वारा सघन दार्शनिक शोध भी भगवान की योजना को सुनिश्चित नहीं कर सका. सर्वोत्म युक्ति बस बिना तर्क किये भगवान के आदेशों का पालन करना है. पांडवों के कष्ट उनके पिछले कर्मों के कारण नहीं थे. भगवान को धर्म के राज्य की स्थापना करने की योजना को संचालित करना था, और इसलिए उनके अपने भक्तों को धर्म की विजय को स्थापित करने के लिए अस्थायी कष्ट झेलने पड़े. भीष्मदेव निश्चित ही धर्म की विजय देख कर संतुष्ट हुए थे, और वे सिंहासन पर राजा युध्ष्ठिर को देखकर प्रसन्न थे, यद्यपि वे स्वयं उनके विरुद्ध लड़े थे. भीष्म जैसे महान योद्धा भी कुरुक्षेत्र का रण नहीं जीत सके क्योंकि भगवान दिखाना चाहते थे कि अधर्म धर्म पर विजय नहीं पा सकता, भले ही उसका संचालन कोई भी कर रहा हो. भीष्मदेव भगवान के महान भक्त थे, लेकिन उन्होंने भगवान की इच्छा से पांडवों के विरुद्ध लड़ना चुना था क्योंकि भगवान दिखाना चाहते थे कि भीष्म जैसे योद्धा गलत पक्ष की ओर से नहीं जीत सकते.

स्रोत :अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 9 – पाठ 16

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