चूँकि शरीर चिर काल तक नहीं रह सकता, व्यक्ति को शरीर का उपयोग आध्यात्मिक यात्रा में प्रगति के लिए करना चाहिए.
भगवान के परम व्यक्तित्व, कृष्ण सुझाव देते हैं, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज : “धर्म के सभी प्रकारों का त्याग करके मेरी शरण में आओ.” भगवान के परम व्यक्तित्व द्वारा इस प्रकार के वक्त्व्य की सराहना सामान्य व्यक्ति नहीं करता क्योंकि वह सोचता है कि उसके जीवनकाल में उसका परिवार, समाज, देश, शरीर और संबंधी ही सब कुछ हैं. भगवान के परम व्यक्तित्व की शरण में जाने के लिए व्यक्ति उनमें से किसी का भी त्याग क्यों करे? किंतु प्रह्लाद महाराज और बाली महाराज जैसे महान व्यक्तित्वों के व्यवहार से हम समझते हैं कि किसी बुद्धिमान व्यक्ति के लिए भगवान की शरण में जाना ही उचित कर्म है. प्रह्लाद महाराज मे अपने पिता के विरुद्ध विष्णु की शरण ली. उसी प्रकार, बाली महाराज ने अपने आध्यात्मिक गुरु, शुक्राचार्य और सभी अग्रणी दैत्यों की इच्छा के विरुद्ध वामनदेव की शरण ली. लोग आश्चर्य कर सकते हैं कि प्रह्लाद महाराज और बाली महाराज जैसे भक्तों ने, परिवार, और घर के लिए स्वाभाविक लगाव का त्याग करके, शत्रुपक्ष की शरण ली. इस संबंध में, बाली महाराजा बताते हैं कि शरीर, जो सभी भौतिक गतिविधियों का केंद्र है, वह भी एक बाहरी तत्व ही है. भले ही हम अपने शरीर को स्वस्थ और अपनी गतिविधियों के लिए सहायक बनाए रखना चाहते हैं, तो भी शरीर सदैव नहीं चल सकता. यद्यपि मैं आत्मा हूँ, जोकि अमर है, शरीर का कुछ समय उपयोग करने के बाद मुझे, प्रकृति के नियमानुसार, दूसरा शरीर स्वीकार करना पड़ेगा (तथा देहांतर-प्राप्तिः), जब तक मैं भक्ति सेवा में उन्नति के लिए शरीर के साथ कुछ सेवा प्रदान नहीं करता. व्यक्ति को शरीर का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं करना चाहिए. व्यक्ति को पता होना चाहिए कि यदि वह किसी अन्य उद्देश्य के लिए शरीर का उपयोग करेगा तो वह बस समय नष्ट कर रहा है, क्योंकि जैसे ही समय पूरा होगा, आत्मा स्वतः ही शरीर त्याग देगी.
स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , आठवाँ सर्ग, अध्याय 22 – पाठ 9