एक ब्राम्हण वह होता है जिसने मन और इंद्रिय नियंत्रण का अभ्यास करके वैदिक निष्कर्षों को आत्मसात कर लिया हो. वह सभी वेदों का सच्चा संस्करण बोलता है. जैसा कि भगवद गीता (15.15) में पुष्टि की गई है: वेदैस च सर्वैर अहम् एव वेद्यः. सभी वेदों का अध्ययन करके, व्यक्ति को भगवान श्रीकृष्ण के पारलौकिक पद को समझना चाहिए. वह जिसने वेदों के सत्व को ग्रहण कर लिया हो वह सत्य का प्रवचन कर सकता है. वह उन बद्ध आत्माओं के प्रति दयालु होता है जो कृष्ण के प्रति सचेत नहीं होने के कारण इस बद्ध संसार के त्रिविध दुखों को झेल रही हैं. एक ब्राम्हण को लोगों पर दया करनी चाहिए और उन्हें उन्नत करने के लिए कृष्ण चेतना का प्रचार करना चाहिए. भगवान के परम व्यक्तित्व, भगवान श्रीकृष्ण स्वयं, बद्ध आत्माओं को आध्यात्मिक जीवन के बारे में शिक्षित करने के लिए आध्यात्मिक राज्य से इस ब्रम्हांड में उतरते हैं. उसी समान, ब्राम्हण भी वैसा ही करते हैं. वैदिक निर्देशों को आत्मसात करने के बाद, वे बद्ध आत्माओं की मुक्ति के परम भगवान के प्रयास में सहायता करते हैं. अपनी सत्व-गुण विशेषताओं के कारण ब्राम्हण परम भगवान को बहुत प्रिय होते हैं, और वे भौतिक संसार में सभी बद्ध आत्माओं के लिए कल्याणकारी गतिविधियों में भाग लेते हैं.

स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पंचम सर्ग, अध्याय 05- पाठ 24

(Visited 12 times, 1 visits today)
  • 4
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
    4
    Shares