यमराज के धाम में दंड की प्रक्रिया.
प्रत्येक जीव एक सूक्ष्म और स्थूल शरीर से आच्छादित होता है. सूक्ष्म शरीर मन, अहंकार, बुद्धि और चेतना का आवरण होता है. शास्त्रों में कहा गया है कि यमराज के दूत अपराधी के सूक्ष्म शरीर की देख-रेख करते हैं और उसे यमराज के धाम तक ले जाते हैं ताकि उसे उसकी सहन शक्ति के अनुसार दंड दिया जा सके. वह उसके दंड से नहीं मरता क्योंकि यदि वह मृत हो जाए, तो फिर दंड कौन भोगेगा? व्यक्ति को मृत्यु देना यमराज के दूतों का कार्य नहीं है. वास्तव में, किसी जीव की हत्या करना असंभव है क्योंकि वास्तविकता में वह अमर है; उसे बस इंद्रिय संतुष्टि की अपनी गतिविधियों के परिणाम भुगतने होते हैं. चैतन्य चरितामृत में दंड की प्रक्रिया को समझाया गया है. पूर्व में राजा के सैनिक किसी अपराधी को एक नाव से नदी के बीच में ले जाते थे. वे उसके बाल पकड़ कर उसे पानी में डुबोते थे, और जब उसकी साँस लगभग रुक जाती थी, तब राजा के सैनिक उसे पानी से बाहर निकाल लेते थे और उसे कुछ देर के लिए साँस लेने देते थे, और फिर से उसकी साँस रोकने के लिए पानी में डुबोते थे. यमराज द्वारा विस्मृत आत्मा को इस प्रकार का दंड दिया जाता है, जैसा कि आगामी श्लोक में वर्णित किया गया है. इस ग्रह से निकल कर यमराज के ग्रह जाते समय, यमराज के दूतों द्वारा बंदी बनाए गए अपराधी को बहुत से कुत्ते मिलते हैं, जो केवल उसके इंद्रिय तुष्टि के आपराधिक कृत्यों का स्मरण कराने के लिए भौंकते और काटते हैं. भागवद्-गीता में कहा गया है कि जब कोई इंद्रिय संतुष्टि की कामना से पीड़ित होता है तब वह लगभग अंधा हो जाता है और उसकी बुद्धि खो जाती है. वह सबकुछ भूल जाता है. कामैस तैस तैर हृत ज्ञानाः. जब कोई इंद्रिय तुष्टि से बहुत आकृष्ट हो जाता है तब उसकी बुद्धि समाप्त हो जाती है, और वह भूल जाता है कि उसे परिणाम भी भोगने पड़ेंगे. यहाँ यमराज द्वारा भेजे गए कुत्तों के माध्यम से इंद्रिय संतुष्टि की उनकी गतिविधियों का स्मरण करने का अवसर दिया जाता है. जबकि हम स्थूल शरीर में रहते हैं, इंद्रिय संतुष्टि के ऐसे कृत्यों को सरकारी नियमों द्वारा भी प्रोत्साहन दिया जाता है. सारे संसार के सभी राज्यों में, सरकार द्वारा जन्म नियंत्रण के रूप में ऐसे कृत्यों को प्रोत्साहन दिया जाता है. महिलाओं को गोलियाँ दी जाती हैं, और उन्हें गर्भपात में सहयोग के लिए चिकित्सालयों में जाने की अनुमति होती है. यह इंद्रिय संतुष्टि के परिणाम के रूप में ही चल रहा है. वास्तव में यौन जीवन का उद्देश्य एक अच्छी संतान पाना होता है, लेकिन चूँकि लोगों का अपनी इंद्रियों पर कोई नियंत्रण नहीं है और ऐसा कोई संस्थान नहीं है जो उन्हें इंद्रियों पर नियंत्रण सिखाए, बेचारे इंद्रिय तुष्टिकरण के आपराधिक कृत्यों के शिकार बनते हैं, और उन्हें श्रीमद्-भागवतम् के इन पृष्ठों में दिए गए अनुसार मृत्यु के बाद दण्ड मिलता है. अपराधी को तपते सूरज की धूप में गर्म रेत की सड़क को पार करना पड़ता है जिसके दोनों ओर वन की अग्नि होती है. चलने में असमर्थ होने के कारण यमदूतों द्वारा उन्हें पीठ पर को़ड़े मारे जाते हैं, उसे भूख और प्यास सताती है, लेकिन दुर्भाग्य से वहाँ पीने के लिए पानी, कोई आश्रय और सड़क पर विश्राम करने के लिए कोई स्थान नहीं होता. कभी-कभी अपराधी थकान के कारण गिर जाता है, और कुछ बार वह अचेत हो जाता है, लेकिन उसे फिर से उठने के लिए विवश किया जाता है. इस प्रकार से उसे बहुत शीघ्रता से यमराज के सम्मुख ले जाया जाता है. इस प्रकार अपराधी को दो या तीन क्षणों में निन्यानवे सहस्त्र योजन पार करना पड़ते हैं, और फिर उसे तुरंत यातनामय दण्ड दिया जाता है जिसे भुगतना उसके लिए निर्धारित होता है. एक योजन आठ मील का होता है, और उसे ऐसी सड़क को पार करना होता है जो 792,000 मील जितनी लंबी होती है. इतनी लंबी दूरी केवल कुछ ही क्षणों में पार की जाती है. सूक्ष्म शरीर पर दूतों का वर्चस्व होता है ताकि जीव इतनी लंबी दूरी को तेज़ी से पार कर ले और साथ ही यातना भी सहे. यह आवरण, चाहे भौतिक हो, इतने महीन तत्वों से बना होता है कि भौतिक वैज्ञानिक यह पता नहीं कर सकते कि आवरण किस पदार्थ से बने हैं. 792,000 मील कुछ ही क्षणों में पार करना आधुनिक अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अचरज हो सकता है. अब तक वे 18,000 मील प्रति घंटे की गति से यात्रा कर चुके हैं, लेकिन यहाँ हम देखते हैं कि एक अपराधी 792,000 मील कुछ ही क्षणों में पार कर लेता है, हालाँकि प्रक्रिया आध्यात्मिक नहीं बल्कि भौतिक है. नर्क में अपराधी को अग्नि में जलते हुए, स्वयं अपना मांस खाना पड़ता है, या अपने समान अन्य लोगों को खाने देना पड़ता है जो वहाँ उपस्थित हैं. पिछले महायुद्ध में, यातना शिविरों में लोगों ने कभी-कभी स्वयं अपना मल खाया था, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं है कि यमराज के धाम, यमसदन में, दूसरों का मांस खाकर विलासी जीवन जी चुके व्यक्ति को स्वयं अपना मांस भी खाना पड़ता है. उसकी आँत को नर्क के कुत्तों और गिद्धों द्वारा नोच कर बाहर निकाल लिया जाता है, जबकि वह यह देखने के लिए अभी भी जीवित होता है, और उसे नागों, बिच्छुओं और पिस्सुओं द्वारा पीड़ा सहनी पड़ती है जो उसे काटते हैं. उसके बाद उसके अंगों को काटा जाता है और हाथियों द्वारा चीर कर अलग कर दिया जाता है. उसे पर्वत शिखर से धकेल दिया जाता है, और उसे पानी के भीतर और गुफा में बंदी बनाकर भी रखा जाता है. आधुनिक सभ्यता की गलती यह है कि मानव अगले जन्म में विश्वास नहीं करता. लेकिन भले ही वह विश्वास करे या न करे, अगला जन्म होता है, और यदि व्यक्ति ने वेदों और पुराणों जैसे आधिकारिक शास्त्रों के निषेध के संदर्भ में उत्तरदायी जीवन नहीं जिया है तो उसे पीड़ा भोगना पड़ती है. मानव से निम्नतर जीव अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं होते क्योंकि उन्हें किसी विशिष्ट विधि से कर्म करने के लिए नहीं बनाया गया है, लेकिन मानव चेतना के उच्चतर जीवन में, यदि कोई अपनी गतिविधियों के लिए उत्तरदायी नहीं होता, तो फिर निश्चित ही उसे नारकीय जीवन मिलने वाला है, जैसा कि यहाँ वर्णन किया गया है.
स्रोत: अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, चौथा सर्ग, खंड 30 – पाठ 20 – 27 और पाठ 30