आध्यात्मिक जीवन के अनुसार जितना हो सके स्वर्ण से बचना चाहिए.
परीक्षित महाराज ने कलियुग को उनका राज्य तुंरत छोड़ने और चार स्थानों पर रहने के लिए कहा: वेश्यालय, मदिरालय, वधशाला और जुआघर. यद्यपि, कलि-युग ने उनसे केवल ऐसा स्थान प्रदान करने का अनुरोध किया जहाँ ये चारों स्थान सम्मिलित हों, और महाराज परीक्षित ने उसको वह स्थान दिया जहाँ सोना रखा जाता है. सोने में पाप के चारों सिद्धांत समाहित होते हैं, और इसलिए, आध्यात्मिक जीवन के अनुसार, जितना हो सके स्वर्ण से बचना चाहिए. यदि सोना होगा, तो निश्चित ही अवैध मैथुन, मांसाहार, जुआ और मद्यपान भी होगा. सोने का रंग बड़ा चमकीला होता है, और एक भौतिकवादी व्यक्ति उसके पीले रंग से बहुत आकर्षित हो जाता है. यद्यपि, सोना एक प्रकार का मल ही होता है. रोगी यकृत के साथ कोई व्यक्ति पीले मल का त्याग करता है. इस मल का रंग भौतिकवादी व्यक्ति को आकर्षित करता है, वैसे ही जैसे वन की आग उसको आकर्षित करती है जिसे ऊष्मा की आवश्यकता होती है.
स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, पांचवाँ सर्ग, अध्याय 14- पाठ 7