भगवान के परम व्यक्तित्व में न तो वासना होती है न ही क्रोध.

जब भगवान शिव घोर तप के साथ ध्यान में लीन थे, तब कामदेव, वासना के देवता, ने उनपर अपना काम बाण चलाया. तब भगवान शिव ने उन पर क्रोधित होकर, उन पर दृष्टि डाली, और उसी क्षण कामदेव का शरीर नष्ट हो गया. यद्यपि भगवान शिव बहुत शक्तिशाली थे, लेकिन वे ऐसे क्रोध के प्रभाव से मुक्त होने में असमर्थ थे. लेकिन भगवान विष्णु के व्यवहार में ऐसे क्रोध की घटना किसी भी समय नहीं होती. इसके उलट, भृगु मुनि ने जानबूझ कर भगवान की छाती पर लात मारकर उनकी सहनशीलता की परीक्षा ली थी, लेकिन भृगु मुनि पर क्रोधित होने के स्थान पर भगवान ने उनसे यह कहते हुए क्षमा मांगी, कि भृगु मुनि के पाँव में बहुत चोट लगी होगी क्योंकि भगवान की छाती बहुत कठोर है. भगवान के शरीर पर भृगुपाद का चिन्ह सहनशीलता के प्रतीक के रूप में है. इसलिए भगवान, किसी भी प्रकार के क्रोध से प्रभावित नहीं होते, अतः वासना के लिए कोई स्थान कैसे हो सकता है, जो क्रोध से कम शक्तिशाली होती है? जब वासना या कामना की पूर्ति नहीं होती, तब क्रोध प्रकट होता है, लेकिन क्रोध की अनुपस्थिति में वासना के लिए स्थान कैसे हो सकता है? भगवान को आप्त-काम के नाम से जाना जाता है, या वह जो अपनी लिप्साओं की पूर्ति स्वयं ही कर सकते हैं. भगवान असीमित हैं, औऱ इसलिए उनकी कामनाएँ भी असीमित हैं. भगवान नहीं बल्कि सभी जीव हर प्रकार से सीमित हैं; फिर कैसे कोई सीमित व्यक्ति असीमित की कामना की पूर्ति कर सकता है? निष्कर्ष यह है कि भगवान के परम व्यक्तित्व में न तो वासना है और न ही क्रोध है, और यहाँ तक कि अगर कभी-कभी परम द्वारा वासना और क्रोध का प्रदर्शन किया जाए, तो इसे परम आशीर्वाद समझना चाहिए.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, द्वितीय सर्ग, अध्याय 7- पाठ 7