वैष्णव-अपराध एक प्रकार से भक्ति सेवा के प्रति बाधा होता है.

श्री चैतन्य महाप्रभु ने अपने भक्तों को चेतावनी दी थी की वैष्णव अपराध, किसी वैष्णव के चरणों में अपराध नहीं करें, जिसका वर्णन उन्होंने पागल हाथी के आक्रमण के रूप में किया है. जब एक पागल हाथी किसी सुंदर उद्यान में प्रवेश करता है, तो वह सभी कुछ नष्ट कर देता है, और उजाड़ मैदान छोड़ जाता है. उसी प्रकार, वैष्णव-अपराध की शक्ति इतनी विराट होती है कि एक वरिष्ठ भक्त भी उसकी आध्यात्मिक संपत्तियों से लगभग वंचित हो जाता है, यदि वह ऐसा करे तो. चूँकि कृष्ण चेतना अमर है, इसे एक साथ नष्ट नहीं किया जा सकता, लेकिन समय विशेष के लिए प्रगति को सीमित किया जा सकता है. अतः वैष्णव-अपराध एक प्रकार से भक्ति सेवा के प्रति बाधा होता है. जब कोई एक वैष्णव के चरणों में अपराध करता है, तो व्यक्ति को उससे तुरंत क्षमा याचना करनी चाहिए ताकि उसकी आध्यात्मिक प्रगति बाधित न हो सके.

स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पंचम सर्ग, अध्याय 01- पाठ 05