जाप का महत्व.
हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे का जाप करने पर श्रीमद्-भागवतम् के द्वितीय सर्ग, प्रथम खंड, श्लोक 11 में इस प्रकार से बहुत महत्व दिया गया है. शुकदेव गोस्वामी महाराज परीक्षित से कहते हैं, “मेरे प्रिय राजन, यदि कोई सहज ही हरे कृष्ण महामंत्र के जाप से जुड़ जाता है, तो यह समझना चाहिए कि उसने श्रेष्ठता का सर्वोच्च स्तर प्राप्त कर लिया है.” यह विशेष रूप से उल्लिखित है कि वे कर्मी जो अपने कर्मों के फलकारी परिणामों के आकांक्षी हैं, मुक्ति के आकांक्षी जो परम व्यक्तित्व के साथ एक हो जाना चाहते हैं, और वे योगी, जो रहस्यवादी पूर्णता प्राप्त करना चाहते हैं, वे बस महा-मंत्र का जाप करके संपूर्णता के सभी स्तरों के परिणाम अर्जित कर सकते हैं. शुकदेव निर्नितम शब्द का उपयोग करते हैं, जिसका अर्थ है “ऐसा पहले ही निर्धारित किया जा चुका है”. वह एक मुक्त आत्मा थे और इसलिए ऐसी किसी भी वस्तु को स्वीकार नहीं कर सकते थे जो निर्णायक नहीं हो. इसलिए शुकदेव गोस्वामी विशेषरूप से बल देते हैं कि यह निष्कर्ष पहले ही निकाला जा चुका है कि वह व्यक्ति जो निश्चय और स्थिरता के साथ हरे कृष्ण मंत्र का जाप करने के स्तर तक आ चुका है उसे फलकारी गतिविधियों, मानसिक अटकलों और रहस्यवादी योग को पार कर चुका माना जाना चाहिए. कृष्ण द्वारा आदि पुराण में इसी बात की पुष्टि की गई है. अर्जुन को संबोधित करते हुए वे कहते हैं, “कोई भी व्यक्ति जो मेरे अलौकिक नाम के जाप में रत है उसे हमेशा मेरे संपर्क में माना जाना चाहिए. और मैं तुम्हें निःसंकोच कह सकता हूँ कि ऐसे भक्त के लिए मैं सरलता से बिक जाता हूँ”. पद्म पुराण में भी कहा गया है, “हरे कृष्ण मंत्र का जाप किसी ऐसे व्यक्ति के होठों पर ही उपस्थित हो सकता है जिसने कई जन्मों तक वासुदेव की भक्ति की हो”. पद्म पुराण में आगे कहा गया है, “भगवान के पवित्र नाम और स्वयं भगवान में कोई अंतर नहीं है. इस तरह, पवित्र नाम एक भौतिक ध्वनि स्पंदन नहीं है, न ही उसमें कोई भौतिक संदूषण है”. इसलिए, किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा पवित्र नाम का जाप अपराध नहीं है जो अपनी इंद्रियों को शुद्ध करने में असफल रहा हो. दूसरे शब्दों में, भौतिकवादी इंद्रियाँ हरे कृष्ण महा मंत्र के पवित्र नामों का जाप उचित ढंग से नहीं कर सकतीं. लेकिन जाप की इस प्रक्रिया को अपना कर, व्यक्ति को स्वयं को शुद्ध करने का अवसर मिलता है, ताकि वह शीघ्र ही बिना अपराधी हुए जाप कर सके. चैतन्य महाप्रभु ने सुझाव दिया है कि सभी व्यक्तियों को हरे कृष्ण मंत्र का जाप केवल अपने हृदय से धूल हटाने के लिए करना चाहिए. यदि हृदय की धूल को हटा दिया जाए, तब व्यक्ति वास्तव में पवित्र नाम के महत्व को समझ सकता है. वे व्यक्ति जो अपने हृदय से धूल नहीं हटाना चाहते और जो चीज़ों को जस का तस रखना चाहते हैं, उनके लिए हरे कृष्ण मंत्र का जाप करने का आलौकिक परिणाम प्राप्त करना संभव नहीं है. इसलिए व्यक्ति को, भगवान के प्रति सेवा का भाव विकसित करना चाहिए, क्योंकि इससे उसे बिना अपराध जाप करने में सहायता मिलेगी. और इसलिए, किसी आध्यात्मिक गुरु के मार्गदर्शन में, शिष्य को सेवा करना और साथ ही हरे कृष्ण मंत्र का जाप सिखाया जाता है. जैसे ही व्यक्ति अपना सहज सेवा भाव विकसित कर लेता है, वह महा-मंत्र के पवित्र नामों का आलौकिक स्वभाव तुरंत समझ सकता है.
स्रोत:अभय भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2011 संस्करण – अंग्रेजी), “भक्ति का अमृत”, पृष्ण 106