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दण्डवत क्या है? (14,040)
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श्राद्ध क्यों किया जाता है? (14,024)
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स्त्रियों की काम वासना पुरुषों की अपेक्षा नौ गुना अधिक बलवान होती है. (13,555)
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जीव के लिए शरीर से भिन्न अस्तित्वमान होना किस प्रकार संभव है। (11,575)
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साधु कौन है? (11,257)
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भगवान ने इस भौतिक संसार की रचना क्यों की? (10,797)
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तथाकथित संबंध भ्रम होते हैं. (10,390)
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हर किसी को छिपा हुआ खजाना का वर मिला हुआ है. (10,293)
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परम भगवान ने कृपा करके अपनी सारी शक्तियों का निवेश अपने पवित्र नाम में कर दिया है। (9,666)
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प्रत्येक युग में, अन्य तीन युग समय-समय पर उप-युगों के रूप में प्रकट होते हैं। (9,605)
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कृष्ण के अनुयायी माथे पर तिलक क्यों लगाते हैं? (8,837)
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भगवान शिव भगवान विष्णु के मोहिनी मूर्ति अवतार से किस प्रकार आकर्षित थे? (8,837)
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जैन धर्म का आरंभ (8,724)
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मुक्ति के प्रकार. (8,703)
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परम सत्य सदैव के लिए सुंदर होता है. (7,879)
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भगवान का भक्त किसी भी वस्तु को भगवान कृष्ण से पृथक नहीं देखता हैI (7,858)
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एक भक्त स्वाभाविक रूप से इतना विनम्र और मृदुल होता है कि वह जीवन की किसी भी स्थिति को भगवान के आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करता है. (7,299)
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कलियुग के लक्षण. (7,225)
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भगवान कृष्ण ने भागवद्-गीता का ज्ञान सूर्य-भगवान को दिया. (7,172)
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आठ रहस्यमयी शक्तियाँ। (7,151)
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बलराम और कृष्ण के जन्म से पहले देवकी और वासुदेव के छह पुत्र कंस द्वारा क्यों मारे गए थे? (7,099)
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गुरु कौन है और एक गुरु का होना महत्वपूर्ण क्यों है? हमें गुरु तक कैसे पहुँचना चाहिए? (6,778)
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क्या आध्यात्मिक गुरु भगवान के सदृश होता है? (6,702)
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हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना अर्च-विग्रह की पूजा से अधिक शक्तिशाली होता है. (6,649)
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अच्छार्ई की अवस्था में बढ़त होने से धार्मिक सिद्धांत सश्क्त होते हैं। (6,537)
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योगमाया और महामाया में अंतर. (6,388)
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हरे कृष्ण मंत्र का क्या अर्थ है, हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना किसी भी व्यक्ति के लिए कैसे सहायक होता है? (6,127)
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भगवान चैतन्य स्वयं भगवान कृष्ण हैं। (6,016)
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भगवान एक हैं. (5,995)
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मन हमारे पिछले जीवन के दौरान आए विभिन्न विचारों और अनुभवों का भंडार है. (5,789)
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इंद्रिय तुष्टि को बुरा क्यों माना जाता है? (5,714)
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मृत्यु का भय सभी को लगता है. (5,633)
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भगवान रामचंद्र, भगवान कृष्ण के समान ही हैं. (5,400)
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विशुद्ध भक्ति सेवा के लक्षण. (5,365)
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यदि कोई जीव उसके पिछले कर्मों के परिणाम के अधीन हो तो स्वतंत्र इच्छा के लिए कोई स्थान नहीं होगा। (5,194)
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धन की आसक्ति के कारण सबसे धनी व्यक्ति भी स्वयं से डरता है. (5,178)
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एक गंभीर भक्त भगवान से यही प्रार्थना करता है “आपको प्रेम करने में मेरी सहायता करने की कृपा करें”. (5,064)
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भगवान कृष्ण मूल रचियता हैं और भगवान ब्रम्हा द्वितीय रचियता है. (5,041)
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मानव को शास्त्रों की सहायता से अपने जीवन की मूल स्थिति को पुनर्जीवित करने का अवसर दिया जाता है. (4,945)
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व्यक्ति पवित्र कैसे हो सकता है? (4,943)
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यमराज के धाम में दंड की प्रक्रिया. (4,940)
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मन अच्छाई में अहंकार का उत्पाद है और बुद्धि लालसा में अहंकार का उत्पाद है. (4,840)
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महाजन कौन होते हैं. (4,811)
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प्रामाणिक स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करना क्यों महत्वपूर्ण है? (4,736)
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वर्तमान संकट के लिए पिछले कर्म किस प्रकार उत्तरदायी होते हैं? (4,686)
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वह जो बहुत शक्तिशाली हो उसे दोषरहित मानना चाहिए. (4,600)
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कृष्ण के अनुयायी जाप क्यों करते हैं? (4,588)
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धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार किया गया संभोग कृष्ण चेतना का प्रतिनिधित्व है. (4,582)
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एक वैष्णव के गुण. (4,508)
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पुराने समय में भी अंतर्जातीय विवाह प्रचलित थे. (4,468)
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वह दर्शन जो भगवान की भक्ति सेवा का लक्ष्य नहीं करती उसे मानसिक अटकल माना जाता है. (4,258)
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हमें चिढ़ने के स्थान पर चीज़ों को सहन करना चाहिए. (4,222)
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अभक्त लोग परम भगवान या उनके भक्तों में उपस्थित विरोधाभास को नहीं समझ सकते. (4,113)
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भगवान के वास्तविक चतुर्भुज रूप को जरा (आखेटक) का बाण कभी छू नहीं सका था। (4,105)
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श्रेष्ठ का अनुगमन करना क्यों महत्वपूर्ण है? (4,096)
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भक्तों के प्रकार. (4,093)
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भक्ति क्या है? (3,990)
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क्या सब कुछ कर्म के नियमों के अनुसार पूर्वनिर्धारित है? (3,925)
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मनुष्य लोग विपरीत लिंग की ओर क्यों आकर्षित होते हैं? (3,884)
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आरंभ में ब्रम्हा ने केवल संत समान पुत्र ही नहीं उत्पन्न किए अपितु राक्षसी संतानें भी रचीं. (3,873)
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धर्म क्या है? (3,843)
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भगवान की इच्छा के बिना घास का एक तिनका भी नहीं हिलता. (3,830)
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आत्मा अमर है. (3,814)
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हम अपने नित्य जीवन में कई सारे कीटों और प्राणियों को अनजाने में मार देते हैं, क्या हमें इसका प्रतिफल भोगना पड़ेगा? (3,794)
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व्यक्ति भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति सेवा कैसे अर्जित कर सकता है? (3,760)
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शिष्य उत्तराधिकार एक होता है या उससे अधिक? (3,708)
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व्यक्ति को अपनी पत्नी के – या अन्य शब्दों में यौन जीवन प्रति आसक्ति को त्याग देना चाहिए. (3,693)
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जीव का बोध तब सक्रिय हो जाता है जब स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर विकसित हो जाते हैं. (3,685)
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वैष्णव-अपराध एक प्रकार से भक्ति सेवा के प्रति बाधा होता है. (3,649)
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क्या जाप करने के कोई नियम हैं? जाप की क्या प्रक्रिया है? (3,635)
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हिंदू धर्म का मूल क्या है? (3,615)
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मिथ्या अहंकार जीवों को किस प्रकार विस्मृति के बंधन में फ़ंसा लेता है. (3,612)
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एक भक्त को अत्यधिक उदास या विषादग्रस्त नहीं होना चाहिए बल्कि उत्साही बने रहना चाहिए और अपनी प्रेममयी सेवा में लगे रहना चाहिए। (3,604)
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वेद किसने लिखे और उन्हें कब लिखा गया? (3,550)
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सतयुग में केवल एक वेद था और ऊँकार ही एकमात्र मंत्र था. (3,548)
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यदि आप आध्यात्मिक गुरु के आदेश की अवहेलना करते हैं तो आप सब कुछ खो देते हैं. (3,534)
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भगवद् गीता में दिए गए विभिन्न वर्ण और आश्रम क्या हैं? (3,532)
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एक भक्त को बहुत सादा जीवन जीना चाहिए और विपरीत तत्वों के द्वैत से बाधित नहीं होना चाहिए. (3,470)
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व्यक्ति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह भगवान को स्वीकार कर सकने के पहले उन्हें देखे. (3,451)
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दहेज सद्भावना दिखाने के लिए पिता द्वारा पुत्री को दिया गया उपहार है. (3,443)
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एक स्त्री को सन्यास नहीं लेना चाहिए. (3,432)
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यह कृष्ण चेतना आंदोलन बस कृष्ण की उपासना का ही पक्ष क्यों लेता है? (3,425)
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भौतिक शरीर से मुक्ति पाकर आत्मा कहाँ जाती है? (3,383)
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धर्म के चार पाँव । (3,372)
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आध्यात्मिक जीवन के अनुसार जितना हो सके स्वर्ण से बचना चाहिए. (3,365)
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मिथ्या अहंकार स्वतंत्रता के दुरुउपयोग से उपजता है. (3,345)
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भक्तों के मध्य विवाह. (3,339)
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उचित आनंद भगवान की सेवा का उपोत्पाद के रूप में मिलता है. (3,335)
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भौतिक संसार की रचना कैसे हुई थी? (3,318)
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ज्ञान (सामान्य वैदिक ज्ञान) और विज्ञान (आत्म-साक्षात्कार) के बीच का अंतर। (3,315)
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देवी काली सामिष भोजन कभी स्वीकार नहीं करतीं क्योंकि वे भगवान शिव की पवित्र पत्नी हैं. (3,288)
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भौतिक संसार में व्यक्ति प्रत्येक पग पर कष्ट भोगता है, वह भोग करने के अपने प्रयास बंद नहीं करेगा. (3,285)
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यहां तक कि सबसे अच्छी भौतिक स्थिति भी वास्तव में पिछली नियमविरुद्ध गतिविधियों का ही एक दंड होती हैI (3,277)
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हमें भौतिक शरीर को कब तक स्वीकारना होगा? (3,270)
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जब पुरुष का स्खलन अधिक होता है, तब पुरुष शिशु गर्भ में आता है. (3,267)
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क्या धर्म भगवान ने बनाया है? (3,216)
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भगवान की संपत्ति का शोषण करना और साथ ही आत्म-साक्षात्कार में प्रगति करना संभव नहीं है। (3,196)
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कृष्ण कहते हैं कि उस भक्त से सब कुछ ले लेते हैं जिनका पक्ष वे विशेष रूप से लेते हैं. (3,189)
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पूजा के ढंग में परिवर्तन विशिष्ट समय, देश और सुविधा के अनुसार अनमत हैं. (3,172)
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भौतिक रचना का मूल कारण भगवान की दृष्टि है. (3,163)
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परम भगवान की आत्म निर्भरता का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि वे अपने भक्तो पर निर्भर रहते हैं. (3,163)
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ब्राम्हण कौन होता है? (3,150)
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वे जो भगवान के मायावी सामर्थ्य से सशक्त होते हैं कृष्ण के साथ एक अप्रत्यक्ष संबंध में होते हैं. (3,146)
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किसी से प्रेम करना हमारी प्रकृति में है. (3,119)
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भगवान परम भगवान के चार व्यक्तित्वों के रूप में विस्तार लेते हैं. (3,113)
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परम के लिए इस संसार की किसी भी सुंदर वस्तु की कमी नहीं हो सकती. (3,100)
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वह भगवान के पवित्र नाम का जाप लगातार करते हैं उनका घर लौटना निश्चित होता है. (3,099)
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आत्मा को स्त्री शरीर में स्थानांतरित कैसे किया जाता है? (3,096)
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भौतिक जीवन का अर्थ कामक्रीड़ा है (3,096)
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भौतिक संसार बद्ध आत्मा को किस प्रकार दुख पहुँचाता है? (3,076)
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मैं कष्ट क्यों भोग रहा हूँ? (3,075)
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क्या जाप करना एक ही जैसा नीरस नहीं है? (3,047)
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वैदिक सभ्यता में राजतंत्र को पसंद किया जाता है. (3,022)
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क्या भगवान दया करने में भेदभाव करते हैं? (3,016)
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भगवान बुद्ध ने आत्मा के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी है. (2,999)
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यह प्रमाण कहाँ है कि मैं पिछले कर्मों के प्रतिफल का ही कष्ट उठा रहा हूँ और आनंद ले रहा हूँ? (2,967)
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सांख्य दर्शन क्या है? (2,964)
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जीवन के मानव रूप में एक पुरुष और स्त्री संभोग के इंद्रिय सुख के लिए मिलन करते हैं. (2,961)
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वर्तमान में कौनसे मनु का शासन है? (2,957)
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अविकसित भ्रूण को गर्भ में नष्ट कर देना पाप होता है. (2,911)
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इस भौतिक संसार में तथाकथित प्रेम और कुछ नहीं बल्कि यौन संतुष्टि है. (2,894)
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क्या भगवान कृष्ण के भक्तों को अपने पिछले कुकर्मों के लिए कष्ट भोगना पड़ेगा? (2,876)
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यदि कोई भक्ति सेवा में रत हो, तो हो सकता है उसे वर्णाश्रम-धर्म की प्रणाली से नहीं गुज़रना होगा. (2,869)
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आध्यात्मिक संसार के लक्षण. (2,867)
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व्यक्ति इंद्रिय तुष्टि की लालसा पर विजय कैसे पा सकता है? (2,865)
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भगवत-धर्म में यह प्रश्न नहीं होता कि “आप क्या विश्वास करते हैं” और “मैं क्या विश्वास करता हूँ”. (2,848)
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भगवान शिव सदैव भगवान संकर्षण का ध्यान तल्लीनता में करते हैं. (2,848)
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भगवान बुद्ध कौन थे और बौद्ध दर्शन को नास्तिकता वादी क्यों माना जाता है? (2,843)
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शून्य में लीन हो जाने की कामना भौतिक कष्ट के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया होती है। (2,835)
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देवताओं के नाम के आधार पर कीर्तन करना दोष होता है. (2,824)
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कई बार देखा गया कोई भी पदार्थ अंततः संतृप्ति के नियम से अनाकर्षक हो जाता है. (2,815)
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हमें स्वयं को कृष्ण से जोड़ना है न कि इंद्रियों के विषयों से। (2,808)
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पुरुष महीने में केवल एक बार ही संभोग का आनंद लेने के लिए प्रतिबंधित है. (2,797)
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विभिन्न व्यक्तियों द्वारा भगवान को भिन्न-भिन्न क्यों माना जाता है, यद्यपि वे एक ही हैं? (2,794)
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हर कोई बुद्धि के विभिन्न स्तरों से संपन्न होता है. (2,794)
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ब्रम्ह-संप्रदाय से शिष्य उत्तराधिकार. (2,785)
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भगवान के अवतार और भगवान के विस्तार में क्या अंतर है? (2,785)
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यदि मृत्यु के समय कोई भी भौतिक कामना न हो तो सूक्ष्म शरीर समाप्त हो जाता है. (2,783)
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वे गीत जो स्वीकृत नहीं हैं या जो प्रामाणिक भक्तों द्वारा नहीं गाए जाते अनुमत नहीं होते. (2,782)
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जितना अधिक व्यक्ति यौन सुख का आसक्त होता है, उतनी ही शीघ्रता से उसकी मृत्यु होने की आशंका होती है. (2,756)
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कलियुग में, कोई भी जीव पापमय गतिविधि का पीड़ित तब तक नहीं बनता जब तक कि वह कृत्य वास्वव में नहीं किया जाता. (2,748)
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श्राद्ध क्या है? भगवान के भक्त को ऐसे कर्मकांड करने की आवश्यकता नहीं होती है. (2,739)
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भगवान रामचंद्र छः एश्वर्यों के साथ एक पूर्ण अवतार हैं. (2,710)
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समान प्रवृत्ति के जीवनसाथी से विवाह करना क्यों आवश्यक है? (2,677)
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ब्रम्हांड में आबादी कैसे हुई? (2,675)
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क्या धर्म और संप्रदाय में कोई अंतर होता है? (2,667)
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भक्त किस प्रकार कर्मियों से हमेशा भिन्न होता है. (2,660)
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हरे कृष्ण मंत्र और ओंकार में क्या अंतर होता है? (2,658)
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ओंकार से प्रारंभ होने वाले वैदिक मंत्रों का जप करना सीधे कृष्ण के नाम का जप करना होता है. (2,648)
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शास्त्रों के अनुसार धर्म के क्या सिद्धांत हैं? (2,636)
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महत्-तत्व विशुद्ध चेतना की परछाईं है जहाँ से जीवों के मिथ्या अहंकार का जन्म होता है. (2,631)
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जब व्यक्ति परम सत्य के सीधे संपर्क में होता है तो सभी अप्रत्यक्ष प्राधिकरण लुप्त हो जाते हैं. (2,614)
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गंगा में स्नान का सुझाव क्यों दिया जाता है? (2,612)
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क्या कृष्ण अपने भक्तों की भौतिक कामनाओं को पूरा करते हैं? (2,607)
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सुदर्शन चक्र क्या है? (2,594)
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मायावी भौतिक ऊर्जा सबको ठग रही है. (2,578)
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भौतिक प्रेम और आध्यात्मिक प्रेम में क्या अंतर है? (2,576)
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आत्मा का स्थानांतरगमन क्या होता है? (2,567)
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वेदों में लिखी बातों का विश्वास हमें क्यों करना चाहिए? (2,567)
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योग अभ्यास उन व्यक्तियों द्वारा सफलतापूर्वक किया जा सकता है जिनके पास जीवन की बहुत लंबी अवधि है. (2,561)
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समय (काल) का प्रभाव अलौकिक स्तर पर कार्यशील नहीं होता. (2,556)
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जाप का महत्व. (2,533)
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आध्यात्मिक जीवन/भगवान से संबंध रखने के लिए तप की आवश्यकता क्यों होती है? (2,527)
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आध्यात्मिक कामक्रीड़ा क्या है? (2,521)
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हरे कृष्ण मंत्र के जाप की शक्ति. (2,515)
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आसुरी जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए गर्भाधान प्रक्रिया का पालन करना महत्वपूर्ण है. (2,514)
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निरंतर स्मरण उसी के लिए संभव है जो हमेशा भगवान कृष्ण की महिमा का जाप करता है और उसका श्रवण करता है। (2,513)
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पुरुष और स्त्री की समझ में अंतर होता है. (2,505)
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समय का कारक इतना बाध्यकारी होता है कि कालांतर में इस भौतिक संसार की सभी वस्तुएँ समाप्त हो जाती हैं या खो जाती हैं. (2,488)
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जिन जीवों के पास जीवन शक्ति होती है वे निष्क्रिय पदार्थ से श्रेष्ठ होते हैं. (2,486)
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मुक्ति की प्रक्रिया भक्तों के लिए अभीष्ट नहीं है. (2,486)
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मेरे पास सभी भौतिक एश्वर्य हैं मुझे भगवान तक क्यों जाना चाहिए? (2,484)
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एक भक्त को कृष्ण के उद्देश्य की सेवा करने का भरसक प्रयास करना चाहिए. (2,478)
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आकाश में हम जो भी नक्षत्र देखते हैं, वह इस एक ब्रम्हांड के भीतर ही हैं (2,477)
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भगवान शिव कौन हैं? (2,470)
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एक शुद्ध भक्त कौन होता है? (2,461)
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हरे कृष्णा संकीर्तन आंदोलन कब तक जारी रहेगा? (2,455)
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क्या भौतिक कामनाओं की पूर्ति के लिए गुरु के पास जाना गलत है? (2,451)
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काम वासना को कम कैसे किया जा सकता है? (2,431)
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व्यक्ति के लिए जो भी वस्तु सबसे प्रिय हो – उसे उस विशेष वस्तु को कृष्ण को अर्पित कर देना चाहिए। (2,423)
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प्रकृति की भौतिक अवस्थाएँ. (2,421)
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भगवान के पास कौन पहुँच सकता है? (2,403)
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हमारी वैधानिक स्थिति सेवा करने की है. (2,402)
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भगवान का पुरुष अवतार. (2,398)
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भक्ति हमारे इंद्रिय तुष्टि के आकर्षण को कैसे कम कर सकती है? (2,391)
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गृहस्थ जीवन का उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान में प्रगति करना भी होता है. (2,386)
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भगवान का नाम कृष्ण क्यों है? (2,381)
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भागवद् गीता जाति प्रथा के बारे में क्यों कहती है? (2,374)
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संसार-चक्र, भौतिक अस्तित्व का पहिया. (2,368)
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कोई भी भगवान के परम व्यक्तित्व को कुछ भी नहीं दे सकता, क्योंकि वे सभी वस्तुों में परिपूर्ण होते हैं. (2,364)
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स्वरूप क्या है? (2,353)
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क्या अन्य ग्रहों पर जीवन है? (2,350)
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वैदिक साहित्य भौतिक अस्तित्व का निर्वाह करने के बारे में भी निर्देश देता है. (2,343)
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मोक्ष की प्राप्ति के लिए अनुकूल संतति का निर्माण करके व्यक्ति भगवान की सेवा कर सकते हैं. (2,339)
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ब्रह्माण्डीय व्यक्ति के रूप में परम भगवान। (2,339)
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भगवान कभी-कभी अपनी युद्ध भावना को प्रकट करने के लिए एक अवतार के रूप में भौतिक संसार में आते हैं. (2,325)
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मायादेवी/दुर्गा को पृथ्वी के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है. (2,322)
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जीवन की अवधि भिन्न-भिन्न प्राणियों के लिए भिन्न कैसे है? (2,316)
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क्या भगवान कोई व्यक्ति हैं? (2,311)
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भगवान अवतार क्यों लेते हैं? (2,309)
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धार्मिक गतिविधियों और आध्यात्मिक सेवा में अंतर (2,301)
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भौतिक प्रगति बुरी नहीं है, उसका उपयोग भगवान की सेवा में करें. (2,292)
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लोग देवताओं की पूजा क्यों करते हैं? (2,291)
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जीवन पदार्थ से मिलता है या पदार्थ जीवन से मिलता है? (2,285)
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भगवान किसी मानव के समान जन्म लेते क्यों प्रतीत होते हैं? (2,270)
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वैदिक नियमों के बिना एक समाज मानवता के लिए बहुत सहायक नहीं होगा. (2,260)
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भगवान की मायावी ऊर्जा को देखने की उत्सुकता कभी-कभी पापमय भौतिक इच्छा के रूप में विकसित हो जाती है। (2,260)
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अवैध यौन संबंध के कारण कई भक्त पतित हो जाते हैं. (2,256)
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भक्ति क्यों मुक्ति से श्रेष्ठ है? (2,250)
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लोगों की भौतिक स्थिति को सुधारना असंभव है. (2,249)
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सामान्यतः, पुरुष की प्रवृत्ति कई स्त्रियों के भोग की होती है. (2,246)
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किसी भक्त की संगति महत्वपूर्ण क्यों है? (2,243)
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वैदिक साहित्य का परम उद्देश्य जीव को उसकी मूल चेतना में वापस लाना होता है। (2,243)
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सर्वोच्च इच्छा अंतिम निर्णय है. (2,241)
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यदि आप आध्यात्मिक सेवा में नहीं जुड़े हैं तो त्यागी जीवन की व्यवस्था कार्य क्यों नहीं करेगी? (2,239)
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मानव एक सामाजिक प्राणी है और रूपवान लिंग से उसका अप्रतिबंधित मेलजोल पतन की ओर ले जाता है (2,238)
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“कृष्ण चेतना” प्रसन्नता का वास्तविक स्रोत. (2,227)
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आध्यात्मिक संसार के अतिरिक्त, भगवान की पूजा हमेशा अर्च-विग्रह के रूप में की जाती है. (2,225)
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वेद और पुराणों में क्या अंतर है? (2,222)
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काल और दिक् (2,220)
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शरीर की सहायता के बिना, व्यक्ति धर्म प्रणाली का निर्वाह नहीं कर सकता. (2,220)
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बाघ अपराधी नहीं होता यदि वह अन्य पशुओं पर आक्रमण करता और उनका मांस खाता है. (2,213)
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अतिथि का सत्कार करना एक गृहस्थ का कर्तव्य होता है, भले ही अतिथि कोई शत्रु हो. (2,212)
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यह स्वाभाविक है कि भौतिक संसार में लोग किसी सुंदर वस्तु को देखने के लिए लालायित रहते हैं। (2,212)
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भौतिक संसार में यौन जीवन को आवश्यकता से अधिक प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए. (2,202)
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भौतिक प्रकृति की तीन अवस्थाओं के बाध्यकारी प्रभाव कभी भी नहीं जीते जा सकते. (2,198)
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वे जो शुद्ध कृष्ण चेतना में स्थित नहीं होते हैं, सदैव भौतिक इंद्रिय तुष्टि की ओर प्रवृत्त रहते हैं। (2,192)
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एक भक्त अपनी वास्तविक अवस्था के प्रति हमेशा सचेत रहता है. (2,192)
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कलियुग का समय। (2,188)
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केवल भगवान का नाम जपने से ही वयक्ति को पापमय जीवन की प्रतिक्रियाओं से मुक्ति मिलेगी. (2,183)
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कोई भी अपने शरीर या भौतिक उपलब्धियों को हमेशा के लिए बनाए नहीं रख सकता. (2,183)
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कलियुग में, प्रशासकों की व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं के लिए नागरिकों से कर वसूला जाता है. (2,171)
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भौतिक संसार के जंगल में स्त्री का पीछा करना जारी है. (2,159)
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असाधारण रूप से दीर्घजीवी संत मार्कण्डेय ऋषि। (2,151)
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इस संसार में शांति कैसे पाई जा सकती है? (2,147)
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योग की विश्वसनीय विधियाँ, सभी परमात्मा पर ध्यान लगाने पर लक्ष्य रखती हैं. (2,142)
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सभी वस्तुओं की शुद्धता और अशुद्धता को अन्य तत्वों के संयोजन में निर्धारित किया जा सकता है। (2,137)
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भगवान ने स्वयं के शरीर में ही प्रस्थान किया. (2,134)
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जीवन सभी भौतिक तत्वों से स्वतंत्र होता है. (2,133)
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हमारे हृदय में भगवान की उपस्थिति को व्यक्ति कैसे देख सकता है? (2,132)
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जो सोना और चांदी खोजते हैं उन्हें भगवान शिव की उपासना करना चाहिए. (2,129)
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भगवान सभी के हृदय में साक्षी के रूप में स्थित हैं. (2,129)
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यदि मैं इस जीवन में कृष्ण चेतना अर्जित करने में असफल रहूँ, तो मेरे आगामी जीवन में क्या होगा? (2,124)
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भौतिक संसार की रचना कैसे हुई थी? (2,120)
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भगवान शिव के माध्यम से भगवान विष्णु भौतिक गतिविधियाँ निष्पादित करते हैं. (2,114)
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भगवान किस प्रकार से झूठी अनासक्ति को मिटाने में सहायता देते हैं? (2,102)
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मनु-संहिता समस्त मानव समाज के लिए नियमों की पुस्तक है. (2,101)
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व्यक्ति की भक्ति सेवा व्यर्थ कैसे हो जाती है? (2,101)
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भौतिक संसार के भीतर हमें परम सुख या दुख नहीं मिलता। (2,099)
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एक विशुद्ध भक्त कभी भी भौतिक सांसारिक प्रसंगों में नहीं उलझता है. (2,095)
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कृष्ण चेतना में जब कोई नवदीक्षित बहुत अधिक खाता है तो वह नीचे गिरता है. (2,094)
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वृंदावन में रहने के योग्य कौन होता है? (2,090)
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सात महासागर ओर सात द्वीपों की रचना कैसे हुई? (2,089)
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प्रयोजन के साथ भक्ति. (2,087)
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मिथ्या अहंकार के द्वारा ही सभी भौतिक वस्तुओं का निर्माण भोग के साधनों के रूप में होता है. (2,086)
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वैदिक पारलौकिक ज्ञान सीधे परम भगवान के व्यक्तित्व से आता है. (2,084)
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सत्य-युग में कोई भी निम्नतर मानव नहीं होते। (2,081)
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प्रसुप्ति या गहन निद्रा की अवस्था में, मन और इंद्रिय दोनों निष्क्रिय हो जाते हैं। (2,080)
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हमें भक्ति सेवा निष्पादित करते समय सावधान रहना चाहिए. (2,065)
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नित्य-सिद्ध भक्त कौन होते हैं? (2,061)
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भगवान शिव के कुछ अनुयायी उनकी नकल करते हैं और गांजा (मारिजुआना) जैसे नशीले पदार्थ लेने का प्रयास करते हैं. (2,060)
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क्या प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है? (2,059)
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हमें देवताओं की बराबरी नारायण के साथ नहीं करनी चाहिए. (2,054)
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गर्भनिरोधी विधियों से जनसंख्या सीमित करना भी पापमय कर्म है. (2,052)
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वैदिक वांग्मय की व्यक्तिगत व्याख्या वास्तविक अर्थ को क्यों धुंधला कर सकती है? (2,045)
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साधना-सिद्ध और कृपा-सिद्ध भक्तों में क्या अंतर होता है? (2,045)
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देवता कौन हैं, क्या देवता मानव भी हैं? (2,043)
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लोग आध्यात्मिक जीवन में रुचि नहीं रखते. (2,043)
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हरे कृष्ण आंदोलन कोई नया आंदोलन नहीं है. (2,042)
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भौतिक जगत में आनंद के स्वर्गीय स्थान (2,041)
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जल प्रत्येक के लिए जीवन का स्रोत है. (2,041)
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परम भगवान श्रीकृष्ण सभी जीवों के पिता हैं. (2,040)
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आध्यात्मिक संसार में लोग अपने वास्तविक घर के बारे में नहीं जानते. (2,034)
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केवल सबसे भाग्यशाली व्यक्ति ही गुरु के संपर्क में आते हैं. (2,029)
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भगवान कृष्ण केवल एक सर्वोच्च जीव ही नहीं हैं, वे परम जीव हैं. (2,029)
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कोई भी भौतिक वैज्ञानिक प्रगति जीवन का निर्माण नहीं कर सकती. (2,027)
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भगवानविहीन सभ्यता किसी भी क्षण नष्ट हो सकती है. (2,025)
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परम भगवान हमारी जीवन शैली को निर्देशित करने की समस्त शक्ति रखते हैं, फिर वे ऐसा क्यों नहीं करते? (2,024)
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ब्रम्हांड कितना बड़ा है? (2,021)
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आधुनिक विद्वान अपने मनचाहे सिद्धांतों की पुष्टि करने के लिए उत्सुक हैं कि प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान आदिम और काल्पनिक है. (2,018)
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भगवान के व्यक्तिगत रूप का बोध योग का उच्चतम आदर्श चरण है. (2,009)
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कामांध पुरुषों की संगति अक्सर स्त्रियों की संगति से अधिक घातक होती है। (2,007)
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क्या विभिन्न धर्मों के अनुयायी भी वैष्णव होते हैं? (2,004)
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मूर्ख लोग आत्मा के अस्तित्व से इंकार करते हैं. (2,002)
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वे लोग जो परम भगवान की भक्ति सेवा को स्वीकार नहीं करते उन्हें दो श्रेणियों का माना जा सकता है। (2,002)
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भौतिक प्रसन्नता वास्तव में एक अन्य प्रकार का दण्ड होती है। (2,000)
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भगवान चैतन्य कौन हैं? (1,996)
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इंद्रिय तुष्टि की व्यवस्था का अर्थ अंततः जीवों को परम भगवान तक वापस लौटने के एकमात्र उद्देश्य तक ले जाना है। (1,976)
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वासना के कारण अवैध यौन संबंध सर्वाधिक प्रचलित है. (1,975)
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भगवान कृष्ण की नित्य लीलाएँ बिना अंत के चली आ रही हैं. (1,975)
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कुछ भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु, बद्ध आत्मा छद्म सन्यासियों और योगियों के पास पहुँच जाती है. (1,971)
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ग्रह और नक्षत्र किस प्रकार आकाश में तैर रहे हैं? (1,971)
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एक भक्त खतरे को एक सुअवसर के रूप में देखता है. (1,971)
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यदि व्यक्ति अत्यधिक तपस्वी या अत्यधिक कामी हो तो वह अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकता। (1,971)
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मानव जीवन तथाकथित आर्थिक विकास या भौतिक विज्ञान की उन्नति के लिए नहीं है. (1,968)
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कामदेव के दस प्रभाव. (1,968)
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भौतिक संसार में कोई सुख नहीं है. (1,968)
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संपूर्ण जगत प्रकटन परम भगवान के हाथों की रचने वाली मिट्टी है। (1,967)
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परम भगवान के प्रति प्रेम का फल देने में शुद्ध भक्तों की संगति की श्रेष्ठता का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति को अन्य प्रक्रियाओं को त्याग देना चाहिए। (1,962)
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धर्म के प्रचार के लिए शास्त्रों का क्या परामर्श है? (1,956)
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मृत्यु के समय व्यक्ति उन विचारों में खो जाएगा जो उसने जीवन भर की अवधि में पोषित किए हैं. (1,953)
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भगवान एक ग्वाले के समान हैं. (1,945)
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परमात्मा कर्म की उलझनों से उस प्रकार बंधा नहीं होता जैसे कि जीव. (1,944)
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वयक्ति के बलिदान, दान और अन्य पवित्र गतिविधियों के परिणाम समाप्त होने के बाद, व्यक्ति को निम्नतर ग्रह प्रणालियों पर वापस जाना पड़ता है. (1,940)
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भौतिक विज्ञान की कोई भी वैज्ञानिक उन्नति कभी भी जीव को उत्पन्न नहीं कर सकती है. (1,940)
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भगवान की दृष्टि के बिना कोई भी भौतिक रचना नहीं हो सकती. (1,938)
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वैदिक अनुष्ठानिक समारोहों से संकीर्तन अधिक महत्वपूर्ण है. (1,937)
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भक्त यदि परिस्थितिवश गिर भी जाए तो भी कृष्ण उन्हें सभी परिस्थितियों में सुरक्षा प्रदान करते हैं. (1,937)
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सभी सुखी होने का प्रयत्न कर रहे हैं. (1,934)
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कर्म के नियम के परिणामों को केवल भगवान ही बदल सकते हैं. (1,933)
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इस संसार में बुद्धिमान मानवों की तीन श्रेणियाँ होती हैं। (1,933)
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आत्म को ढँकने वाले अहंकार के पाँच स्तर. (1,931)
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आध्यात्मिक संसार में यौन जीवन का कोई महत्व नहीं है. (1,930)
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क्या अवयक्तिवादी और नास्तिक भी भगवान के धाम में स्थान प्राप्त करते हैं? (1,925)
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समय (काल) का नियंत्रण सब पर है. (1,923)
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भगवद्-गीता और श्रीमद्-भागवतम् जैसे आध्यात्मिक साहित्य का सौंदर्य यह है कि वे कभी पुराने नहीं होते. (1,923)
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व्यक्ति को सभी संबंधों का अनुभव कृष्ण-संबंध के उच्चतर, आध्यात्मिक स्तर पर करना चाहिए। (1,921)
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गृहस्थ जीवन का भोग करना दोष क्यों होता है? (1,920)
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मैं कौन हूँ? (1,919)
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अन्य ग्रहों पर जीवन की अवधि (1,916)
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आधुनिक विद्वानों और राजनेताओं के लिए भगवद् गीता की व्याख्या करना फैशन बन गया है. (1,915)
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एक शुद्ध भक्त सदैव ही भगवान की पारलौकिक प्रसन्नता को बढ़ाने में लगा होता है. (1,915)
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अनुकूल रूप से विकसित कृष्णभावनामृत व्यक्ति को पूर्णतः सुखी बनाता है. (1,913)
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वैदिक दर्शन का परंपरागत दर्शन. (1,910)
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वर्तमान तथाकथित हिंदू नियम शास्त्रों के अनुसार नहीं है? (1,908)
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भारत-वर्ष (भारत) विशेष भूमि है (1,908)
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अजामिल का जाप निरापद क्यों था? (1,907)
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क्या भगवान को देखना संभव है? (1,906)
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वयक्ति पृथ्वी का अध्ययन करके सहिष्णुता की कला सीख सकता है। (1,904)
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यज्ञ का अर्थ विष्णु है. (1,901)
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यदि भगवान का हाथ प्रत्येक वस्तु में है, तो मुक्त होने का प्रश्न कहाँ है? (1,899)
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व्यक्ति को जन्म के अनुसार ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूद्र के रूप में नहीं स्वीकारा जाना चाहिए. (1,899)
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व्यक्ति को मुक्त व्यक्तित्वों द्वारा कृष्ण-कथा का श्रवण करना चाहिए. (1,895)
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संसार की गतिविधियाँ पुरुष और स्त्री के केंद्रीय आकर्षण के द्वारा प्रचालित की जा रही हैं. (1,888)
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पुराण की विशेषताएँ और पुराण के प्रकार। (1,887)
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व्यक्ति को किसी एकांत स्थल में किसी स्त्री के साथ नहीं रहना चाहिए. (1,887)
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एक आदर्श राजा के रूप में, भगवान रामचंद्र ने केवल एक पत्नी को स्वीकार किया था. (1,876)
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इस धरती से यदु वंश का निष्कासन और भगवान कृष्ण का स्वयं अंतर्धान होना भौतिक ऐतिहासिक घटनाएँ नहीं थीं। (1,876)
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कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी कुछ न कुछ करने से बच नहीं सकता। (1,875)
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कभी भी किसी स्त्री या राजनेता पर अपनी निष्ठा न रखें. (1,869)
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एक भक्त उसके जीवन की किसी भी परिस्थिति में भाग्यशाली होता है. (1,864)
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ब्रम्हांड के विघटन के बाद भिन्न-भिन्न आत्माओं का क्या होता है? (1,862)
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यह संसार भगवान का है और इसलिए यह हमारे स्वार्थ की पूर्ति के लिए नहीं है. (1,855)
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चाहे संपन्न हों या दुख में, हम स्वतंत्र नहीं होते. (1,848)
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समर्पण करने के दिशानिर्देश क्या हैं? (1,844)
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ध्रुवलोक नामक, ध्रुवतारा, ब्रम्हांड की धुरी है, और सभी ग्रह इसी ध्रुवतारे की परिक्रमा में ही गति करते हैं. (1,842)
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जनसंख्या में वृद्धि के कारण पृथ्वी पर कभी भी अधिक भार नहीं पड़ा है. (1,838)
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भगवान की योजना को कोई नहीं जान सकता. (1,838)
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भगवद्-गीता में देवताओं के वरदानों की निंदा की गई है. (1,835)
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केवल सन्यास का दिखावा करना किसी व्यक्ति के भगवान के राज्य में प्रवेश के लिए पर्याप्त नहीं होता. (1,835)
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भक्त भौतिक समृद्धि की कामना नहीं करता. (1,834)
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भौतिक संबंध परिपूर्ण नहीं होते. (1,828)
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भगवान शिव सभी के आध्यात्मिक गुरु हैं, उदासीन दैत्यों और अत्यंत विद्वान वैष्णव दोनों के. (1,828)
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भगवान यह कैसे सहन कर सकते हैं कि उनके आदेशों की यदा-कदा अनदेखी की जाए, यहाँ तक कि उनके भक्तों द्वारा भी। (1,824)
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स्त्री और पुरुष दोनों को ही भगवान की सेवा की ओर आकृष्ट होना चाहिए. (1,820)
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भगवान के पारलौकिक गुण. (1,818)
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भगवान चैतन्य व्यक्ति सदैव प्रसन्न और विजयी होता है. (1,817)
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मानव रूप भौतिक प्रकृति का विशेष उपहार है. (1,817)
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आध्यात्मिक लाभ से विहीन साहित्य का तिरस्कार करना चाहिए. (1,816)
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सामान्य भौतिक बद्ध आत्माएँ अटकलें लगाती हैं कि भगवान उनमें से एक हैं. (1,814)
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हम वास्तव में नहीं मरते हैं. (1,812)
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सूर्य की गति (1,810)
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व्यक्ति को इंद्रिय सुख पर वीर्य को बर्बाद नहीं करना चाहिए. (1,807)
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व्यक्ति की धार्मिक गतिविधियाँ सदैव कृष्ण के संबंध में होनी चाहिए। (1,803)
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इंद्रियाँ शरीर के भीतर की दस प्रकार की वायुओं से बल पाती हैं. (1,794)
-
भौतिक मन को उसके विषयों से अलग करना सबसे कठिन होता है। (1,794)
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यहाँ तक कि ब्रम्हा जैसे महान देवता और भगवान शिव भी स्त्री सौंदर्य से मोहित हो जाते हैं. (1,792)
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कृष्ण चेतना बौद्ध दर्शन और मायावादियों से किस प्रकार से भिन्न है? (1,790)
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भगवान भौतिक संसार का निर्माण अपनी संतुष्टि के लिए नहीं करते. (1,787)
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हर कोई परम भगवान के नियंत्रण के अधीन है. (1,785)
-
हमारा वास्तविक घर भगवान के राज्य में है. (1,781)
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भगवान द्वारा रची गई स्त्री माया का ही प्रतिनिधित्व है. (1,779)
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आचार्य का कर्तव्य उन साधनों की खोज है जिनके द्वारा भक्त सेवा कर पाए. (1,776)
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सभी नक्षत्र – तारे, सूर्य और चंद्रमा – सीमित आत्मा की गतिविधियों के साक्षी हैं. (1,775)
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पश्चिमी देश भौतिक सभ्यता के शिखर पर पहुँच गए हैं. (1,773)
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चूँकि शरीर चिर काल तक नहीं रह सकता, व्यक्ति को शरीर का उपयोग आध्यात्मिक यात्रा में प्रगति के लिए करना चाहिए. (1,771)
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आध्यात्मिक सेवा निभाने के सिद्धांत क्या हैं? (1,769)
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भले ही भौतिक उद्देश्यों के लिए, किंतु व्यक्ति को भगवान के परम व्यक्तित्व के अतिरिक्त किसी भी और की उपासना नहीं करना चाहिए. (1,767)
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इंद्रिय तुष्टि की वैदिक प्रक्रिया की योजना इस प्रकार बनाई गई है कि व्यक्ति अंततः मुक्ति पा सके. (1,764)
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स्मृति और विस्मृति कृष्ण से ही आती है. (1,763)
-
भक्ति सेवा के दो चरण। (1,761)
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क्या आध्यात्मिक जीवन का अर्थ स्वेच्छा से निर्धनता को स्वीकार करना है? (1,760)
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कभी-कभी जब कोई विकल्प नहीं होता, तो एक शुद्ध भक्त आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करता है. (1,758)
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आत्म-निर्भर होने के कारण, परम भगवान को महान बलियों की आवश्यकता नहीं होती. (1,755)
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व्यक्ति पापमय कर्मों की प्रतिक्रियाओं को कैसे रोक सकता है? (1,751)
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परम भगवान सभी संसारों के दृष्टा हैं. (1,751)
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भगवान कृष्ण की यदु वंश को निकालने की लीलाएँ चरम मंगलकारी हैं। (1,749)
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अतीत की गतिविधियों की निरंतरता के रूप में मुक्त आत्मा की गतिविधियों को स्वीकार किया जाएगा. (1,748)
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शास्त्रों में प्रत्येक नकारात्मक निषेध की एक निश्चित सीमा मानी गई है। (1,745)
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स्त्रीगमन एक अनावश्यक बोझ है जो आत्म-ज्ञान को बाधित करता है. (1,737)
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हमें दान किसे करना चाहिए? (1,736)
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इन्द्रिय संतुष्टि के उद्देश्य से और परम भगवान को संतुष्ट करने के उद्देश्य के लिए भौतिक गतिविधियाँ. (1,735)
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आध्यात्मिक गुरु और भगवान के परम व्यक्तित्व में क्या अंतर होता है. (1,732)
-
वेदों की पारलौकिक ध्वनि समझने में बड़ी कठिन होती है। (1,722)
-
मूर्ति पूजा. (1,722)
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लोगों को चमकने वाले कीटों के प्रकाश की अपेक्षा आकाश के वास्तविक ज्योति नक्षत्रों का लाभ उठाना सीखना चाहिए. (1,713)
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सत्यलोक में भगवान ब्रम्हा के साथ निवास करने वाले देवता वैकुंठलोक को जाते हैं. (1,707)
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संकीर्तन-यज्ञ शास्त्रों में कलियुग के लिए सुझाया गया त्याग है. (1,706)
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परिवार की आसक्ति सर्वशक्तिशाली भ्रम है. (1,705)
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संसार के लोकतांत्रिक राष्ट्रों के लोगों को कृष्ण चैतन्य नेताओं का चुनाव करना चाहिए. (1,705)
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मन हमें हमेशा ऐसा करने या वैसा करने को कहता रहता है. (1,702)
-
जीवन के मानव रूप को महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? (1,699)
-
व्यक्ति बलराम की दया के बिना जीवन के लक्ष्य अर्जित नहीं कर सकता. (1,699)
-
आध्यात्मिक प्रगति के लिए, व्यक्ति को भौतिक रूप से संतुष्ट होना चाहिए. (1,698)
-
भौतिक भोग छोड़ने के बाद व्यक्ति कैसे जीवन यापन कर सकता है? (1,694)
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शास्त्रों में मदिरा पीने और बलि द्वारा मांस भक्षण की अनुमति क्यों दी गई है? (1,691)
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कृष्ण की 16,000 से भी अधिक पत्नियाँ क्यों थीं? (1,688)
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पृथु महाराज ने संसार पर शासन किया था. (1,685)
-
चंद्रमा अन्न का स्रोत होता है. (1,682)
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विभिन्न युगों में भगवान की पूजा विभिन्न प्रकार से की जाती है. (1,678)
-
मानव जन्म आत्म-साक्षात्कार के लिए एक महान अवसर होता है. (1,678)
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वर्तमान समय में कई संप्रदाय हैं जो प्रामाणिक नहीं हैं. (1,674)
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गोपियों का कृष्ण के लिए प्रेम भौतिक नहीं है? (1,674)
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कभी-कभी भगवान ब्रह्मा, नारद या भगवान शिव जैसे महान व्यक्तित्वों को भी भगवान के रूप में संबोधित किया जाता है. (1,672)
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अर्जुन भगवद् गीता का माध्यम थे जबकि उनके पोते परीक्षित श्रीमद् भागवतम् के लिए माध्यम बने. (1,669)
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व्यक्ति अपने परिश्रम से कमाए धन को समर्पित करके अपनी स्थिति को ठीक कर सकता है। (1,667)
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भगवान को कैसे अनुभव किया जा सकता है? (1,666)
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शास्त्रों द्वारा संपत्ति संचय करने की अनुमति नहीं दी गई है. (1,665)
-
भगवान का आदर्श व्यवहार हमें शिक्षा देने के लिए है. (1,665)
-
व्यक्ति को अन्य लोगों को सुखी देख कर प्रसन्न होना चाहिए. (1,664)
-
भगवान विष्णु (कृष्ण) को त्रि-युग के रूप में जाना जाता है. (1,664)
-
भक्ति सेवा के लिए सुनने (श्रवणम्) का सुझाव क्यों दिया जाता है? (1,660)
-
शास्त्रों के अनुसार धन का व्यय किस प्रकार किया जाना चाहिए? (1,657)
-
मानवों को माया के अधीन क्यों रखा जाता है? (1,656)
-
इस युग के लोग भगवान के परम व्यक्तित्व के ऐश्वर्य को समझने में धीमे हैं. (1,656)
-
भौतिक वादी शिक्षा माया का प्रभाव विस्तृत कर देता है. (1,656)
-
कृष्ण चेतना की श्रेष्ठता। (1,654)
-
किसी संत व्यक्ति को भिक्षा द्वारा प्राप्त किए गए खाद्य पदार्थ का संग्रह नहीं करना चाहिए। (1,650)
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वैदिक ग्रंथ प्राथमिक उद्देश्य का वर्णन अप्रत्यक्ष रूप से करते हैं, जिसमें वास्तविक उद्देश्य छिपा होता है। (1,649)
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आत्म-साक्षात्कार इच्छाहीनता की नहीं बल्कि शुद्धीकृत इच्छाओं की अवस्था होती है. (1,647)
-
यदि स्त्री का पति आध्यात्मि रूप से उन्नत हो तो उसे आध्यात्मिक संसार में प्रवेश करने का अवसर स्वतः मिल जाएगा. (1,646)
-
हम सुख के नाम पर नारकीय स्थितियाँ भोग रहे हैं. (1,645)
-
भगवान कृष्ण प्रकृति के गुणों से मुक्त हैं. (1,643)
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ऐसा क्यों है कि लक्ष्मी, इतनी पवित्र पत्नी होकर भी, कृष्ण से संबंध चाहती हैं? (1,642)
-
मायावादियों और वैष्णवों के दर्शन में अंतर. (1,642)
-
जो चुनाव हम करते हैं वही हमारा भविष्य निर्धारित करेगा. (1,640)
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विविधता भोग की जननी है. पूर्ण सत्य भिन्नता से भरा है. (1,638)
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तीन प्रमुख भगवानों – ब्रह्मा, विष्णु, और शिव – में से कौन महानतम हैं? (1,635)
-
दीक्षा के समय नाम परिवतर्ति करना आवश्यक क्यों होता है? (1,628)
-
यदि आध्यात्मिक संसार में कोई वास्तविक मूलरूप न होता, तो इस संसार की विविधताएँ असंभव होतीं. (1,617)
-
सामान्य जीव के लिए जो बंधन है वह भगवान के परम व्यक्तित्व के लिए स्वतंत्रता है. (1,617)
-
हम अपनी इंद्रियों के नियंत्रित कैसे कर सकते हैं? मुझे अपनी काम वासना को नियंत्रित करना कठिन लगता है. (1,616)
-
भगवान के परम व्यक्तित्व से संबंधित कुछ भी भौतिक नहीं होता. (1,613)
-
भगवान कृष्ण प्रत्यक्ष अवतार हैं. (1,610)
-
पिता का कर्तव्य अपने पुत्रों को सांस्कृतिक शिक्षा देना होता है. (1,610)
-
मानव जीवन में प्रगति करने वाले व्यक्तियों के लिए वांछित माने जाने वाले गुण। (1,609)
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कृष्ण चेतना में कुछ भी प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन हर चीज़ को युक्त, नियमित बनाया गया है. (1,605)
-
जीवित ऊर्जा के बिना, ऐसी कोई संभावना नहीं होती कि पदार्थ उत्पन्न हो सकें. (1,602)
-
यदि व्यक्ति जिव्हा पर नियंत्रण करने में सक्षम हो तो सभी इंद्रियों को उसके नियंत्रण में माना जाता है। (1,596)
-
भगवान के परिवार में या आचार्य के परिवार में जन्म होना एक सम्मानित व्यक्ति की योग्यता को स्थापित नहीं कर सकता है। (1,595)
-
जीवों द्वारा विभिन्न प्रकार के शरीर स्वीकारे जाने के लिए भगवान उत्तदायी नहीं हैं. (1,594)
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आधुनिक चिकित्सा शास्त्र अभी तक नहीं खोज पाया है कि किसी मृत शरीर को वापस जीवत कैसे किया जाए. (1,593)
-
बद्धजीव अपने विशेष प्रकार के शरीर में संतुष्ट है जो उसे प्रदान किया जाता है। (1,593)
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उलटे क्रम में, सृष्टि की समाप्ति कैसे होती है? (1,592)
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एक भक्त कभी भी उलटफेर से व्याकुल नहीं होता, जब भगवान के परम व्यक्तित्व द्वारा कोई व्यवस्था की जाती है. (1,590)
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यदि अभक्तों की कामनाएँ पूरी की जाती हैं, तो भक्तों की क्यों नहीं? (1,588)
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जीव पहले वह शरीर स्वीकार करता है जो मानव रूप में हो. (1,586)
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कृष्ण के प्रति सहज आकर्षण. (1,585)
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क्या कामनाविहीन होना संभव है? (1,583)
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क्या हम योग के माध्यम से भगवान का अनुभव कर सकते हैं? (1,582)
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दीक्षा के बाद, शिष्य को बहुत सावधान होना चाहिए कि वह कोई पापमय कर्म न करे. (1,582)
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प्रायश्चित व्यक्ति के पाप कर्मों की गंभीरता के अनुसार होना चाहिए. (1,577)
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भक्ति सेवा में, स्पष्ट भौतिक ऐश्वर्य भौतिक नहीं होते, वे सभी आध्यात्मिक होते हैं. (1,576)
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भगवान के सच्चे अनुयायी को उसके निर्धारित कर्तव्य के निष्पादन में कभी भी हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। (1,576)
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यदि सभी लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक गतिविधियों में रत होंगे, तो चीज़ें वैसी की वैसी कैसे चल सकेंगी? (1,572)
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भौतिक संसार हम पर किस प्रकार प्रभाव डालता है? (1,568)
-
भौतिक गीत पुरुष और स्त्री के बीच प्रेम का वर्णन करते हैं. (1,567)
-
भगवान के बाह्य एश्वर्यों को मनो-विकाराः कह जाता है। (1,566)
-
आध्यात्मिक संसार में कोई यौन संबंध नहीं होते. (1,565)
-
लगातार कृष्ण का चिंतन करने की दो विधियाँ होती हैं – भक्त के रूप में और किसी शत्रु के रूप में. (1,565)
-
लक्ष्मी को रखने की सर्वश्रेष्ठ विधि उन्हें नारायण के साथ रखना होता है. (1,564)
-
आधुनिक सभ्यता की प्रवृत्ति निर्धन को दान में धन देने की है. (1,564)
-
भगवान की भक्ति सेवा सभी परिस्थितियों में अनियंत्रणीय होती है. (1,563)
-
एक ब्राह्मण के व्यावसायिक कर्तव्य को निचले सामाजिक वर्ण के व्यक्तियों द्वारा स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. (1,563)
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मिथ्या ब्राम्हण की सेवा करके व्यक्ति को लाभ नहीं मिलेगा. (1,562)
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यौन आवेग की संतुष्टि विवाह के लिए प्रधान हो गई है। (1,561)
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कलियुग के लिए श्रीमद्-भागवतम् की कुछ भविष्यवाणियाँ. (1,560)
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द्क्ष (शिव के श्वसुर) का श्राप अप्रत्यक्ष रूप से शिव के लिए वरदान था. (1,560)
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इस भौतिक अस्तित्व के लिए आत्मा या शरीर का अनुभव बन जाना संभव नहीं है। (1,559)
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पत्थर की नाव में न बैठें. (1,556)
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भौतिक रूप से सचेत और महत्वाकांक्षी व्यक्ति निरंतर चिंताग्रस्त रहते हैं। (1,553)
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एक कामी व्यक्ति सरलता से क्रोधित हो जाता है और अपनी कामुक इच्छाओं की अवहेलना करने वाले के प्रति शत्रु भाव रखने वाला बन जाता है। (1,553)
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भगवान के आत्म और भगवान के पारलौकिक शरीर में कोई अंतर नहीं होता है. (1,552)
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सभी शास्त्र निवृत्ति मार्ग, या भौतिकवादी जीवन शैली को छोड़ने का सुझाव देते हैं. (1,549)
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अति विकसित आध्यात्मवादी सुझाते हैं कि व्यक्ति को गृहस्थ आश्रम में प्रवेश नहीं लेना चाहिए. (1,548)
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एक भक्त कष्टों का स्वागत भी भगवान के अन्य रूप में करता है. (1,545)
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जो व्यक्ति इंद्रिय संतुष्टि के लिए गंभीर तपस्या करता है वह पूरी दुनिया के लिए डरावना होता है. (1,544)
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वेदों के विभाजन । (1,535)
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मांसाहारी भोजन करने का निषेध क्यों है, शाकाहारी भोजन करने पर पौधों जैसे गतिहीन प्राणियों की हत्या भी शामिल होगी? (1,534)
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एक भक्त को अपनी व्यक्तिगत भक्ति सेवा को उचित ढंग से निष्पादित करने के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिेए. (1,532)
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किसी भी स्थिति में पति और पत्नी को अलग नहीं होना चाहिए. (1,531)
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विस्तृत मिथ्या अहंकार क्या है? (1,530)
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जब बद्ध आत्मा भौतिक गुणों से संगति करना तय करत है, तो वह उन गुणों से दूषित हो जाता है. (1,530)
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सभी प्रकार की उपासनाओं में, भगवान विष्णु की उपासना सर्वश्रेष्ठ होती है. (1,526)
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समुद्र मंथन द्वारा सबसे पहले बहुत बड़ी मात्रा में विष निर्मित होता है. (1,525)
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एक मनुष्य इस भौतिक संसार से किस प्रकार आसक्त रहता है? (1,524)
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पूर्ण रूप से कृष्ण की सेवा में लगे शरीर को भौतिक मानकर उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. (1,522)
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कलियुग में घोर तपस्या की सराहना नहीं की जाती है। (1,519)
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संतुष्टि के बिना व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता भले ही उसके पास संसार भर की संपत्ति हो. (1,516)
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भौतिकवादी व्यक्ति परम भगवान की पारलौकिक गतिविधियों मे रुचि नहीं लेते. (1,515)
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ब्रह्मांडीय प्रलय की चार श्रेणियाँ। (1,513)
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हमारे जीवन पर खगोलीय प्रभाव (1,511)
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परम भगवान सभी के प्रति तटस्थ होते हैं. (1,511)
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भगवान किसी भी जीव की भूमिका पूर्णता से निभा सकते हैं. (1,508)
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अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके, जीव भगवान की सेवा से पतित हो जाता है. (1,502)
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न ही मृत्यु और न ही जीवन की प्रशंसा करनी चाहिए. (1,499)
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ब्रम्हांड में ग्रहों का स्थान (1,498)
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मायावादी और एक विशुद्ध भक्त में अंतर. (1,494)
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भले ही व्यक्ति वेदों में बताए गए अनुसार भोजन करता हो, संकट की आशंका तब भी होती है। (1,494)
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ब्रम्हांड में गंगा का अवतरण (1,490)
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उपदेश भगवान की सर्वोत्तम सेवा है. (1,489)
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सत्ता का दुरुपयोग अंततः समाज के लिए नहीं बल्कि उस व्यक्ति के लिए खतरनाक है जो इसका दुरुपयोग करता है. (1,486)
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चार युगों – सत्य, त्रेता, द्वापर, और कलि, में कलि-युग सर्वश्रेष्ठ है। (1,484)
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निर्बल ही बलवान का भोजन है. हमें भगवान को भोजन क्यों चढ़ाना चाहिए? क्या हम भगवान को मांस भेंट कर सकते हैं? (1,478)
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जीव आत्मा की तटस्थ स्थिति. (1,477)
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वर्णाश्रम प्रणाली की विभिन्न व्यवस्थाओं के सदस्यों के लिए मुख्य निर्धारित धार्मिक कर्तव्य कौनसे हैं? (1,477)
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व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों, देशवासियों, समाज और समुदाय के लिए कल्याणकारी गतिविधियों में बहुत अधिक संलग्न नहीं होना चाहिए. (1,476)
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श्रीमद् भागवतम् और महाभारत को कब संकलित किया गया था? (1,476)
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जो मांस भक्षण करना चाहते हैं वे निम्नतर प्राणियों को खाकर अपनी जिव्हा को तृप्त कर सकते हैं. (1,475)
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भगवान के धाम, वापस घर जाने के लिए उत्तम प्रत्याशी कौन होता है? (1,475)
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भगवान शिव से भौतिक आशीर्वाद प्राप्त करना कठिन नहीं है. (1,472)
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व्यक्ति को अपना मुख हृदय के भीतर स्थित भगवान की ओर मोड़ना चाहिए। (1,470)
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सभी भौतिक गतिविधियाँ, चाहे पवित्र हों या अपवित्र, आवश्यक रूप से पापमय गतिविधियों से दूषित रहती हैं। (1,469)
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भौतिक संपन्नता भगवान की दया पर निर्भर होती है. (1,465)
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कोई भी अपना वास्तविक आत्म-हित नहीं समझता. (1,465)
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सभी जीवों के वास्तविक पति कृष्ण ही हैं. (1,463)
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मायावी भौतिक प्रकृति क्षुद्र जीव को अंगीकार करने के लिए आकर्षित करती है. (1,462)
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वे जिनके चित्त भौतिक कामनाओं से विकृत हो जाते हैं, देवताओं की शरण लेते हैं. (1,459)
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आत्म बोध के लिए या इंद्रिय संतुष्टि के लिए तपस्या? (1,456)
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दुर्लभ परिस्थितियों में जब अनाज की आपूर्ति नहीं होती है, तो सरकार मांस खाने की अनुमति दे सकती है. (1,455)
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भगवान के बारे में अटकलें न लगाएँ (1,453)
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वरदानों के लिए कैसे प्रार्थना करें? (1,450)
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भगवान को समझने की प्रक्रिया भक्ति है. (1,449)
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भगवान कृष्ण शत प्रतिशत हैं (1,443)
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कृष्ण ही मूल भोक्ता हैं. (1,440)
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देवता जीवों को जो परिणाम देते हैं, वे जीवों के कार्यों के सटीक अनुरूप होते हैं। (1,438)
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सृजन की पूरी प्रक्रिया क्रमिक विकास का एक कार्य है. (1,436)
-
हमारे ध्यान का प्रयोजन क्या होना चाहिए? (1,435)
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एक बुद्धिमान व्यक्ति जिव्हा के नियंत्रण के अधीन नहीं आता। (1,434)
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कोई भक्त अपने पिछले दुर्व्यवहार और अनैतिक गतिविधियों से कैसे प्रभावित होता है? (1,434)
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जनसंख्या को सामान का उपयोग करने का अधिकार केवल उसे भगवान के परम व्यक्तित्व को अर्पण कर देने के बाद ही होता है. (1,432)
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बुद्धिहीन पशु भी भगवान के परम व्यक्तित्व के पुत्र होते हैं. (1,428)
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परम भगवान सदैव सर्वश्रेष्ठ हैं. (1,424)
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जब प्रत्येक वस्तु और कुछ नहीं, स्वयं भगवान ही है, तो हमें भगवान की पूजा क्यों करना चाहिए? (1,424)
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दूध न देने वाली गाय की देखभाल करने वाला मनुष्य निश्चित रूप से सबसे अधिक दुखी होता है। (1,424)
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भौतिक वैभव को युक्त-वैराग्य के रूप में स्वीकारा जा सकता है, अर्थात्, त्याग के लिए. (1,423)
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भगवान द्वारा जीवन की मानवीय आवश्यकताओं की संपूर्ण पूर्ति की जाती है (1,418)
-
व्यक्ति को सभी वस्तुओं और सभी लोगों को कृष्ण के अंश के रूप में देखने का अभ्यास करना चाहिए। (1,415)
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भौतिक अस्तित्व का वन. (1,414)
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क्या कृष्ण चेतना के अभ्यास के लिए वेश-भूषा, रूप-रंग जैसे किसी विशेष नियम का पालन करना होता है? (1,407)
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आध्यात्मिक पथ इतना मंगल होता है कि एक भक्त किसी भी स्थिति में नहीं खो सकता. (1,404)
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भगवान का शरीर हमारे चित्त को पूर्ण ज्ञान से प्रकाशित कर देता है. (1,403)
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सूर्य परम भगवान के नेत्र के समान है. (1,401)
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यमराज कौन हैं? (1,401)
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स्त्रियाँ स्वभाव से ही स्वार्थी होती हैं. (1,401)
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भगवान और उनके सहयोगी भगवान की इच्छा से प्रकट और अप्रकट होते हैं. (1,400)
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भगवान का अपमान करने के क्रम में, भौतिकवादी बार-बार यह तर्क देते हैं कि अक्सर ही निर्दोष लोग कष्ट भोगते हैं जबकि अपवित्र दुष्ट निर्विघ्न रूप से जीवन का आनंद लेते हैं। (1,400)
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भौतिक पवित्रता और पाप हमेशा सापेक्ष विचार होते हैं। (1,399)
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मात्र मानवतावाद या परोपकारिता से, लोग वास्तव में दुख से मुक्त नहीं हो जाते। (1,395)
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बद्ध जीव मिथ्या भोगी क्यों होते हैं? (1,392)
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हमें भगवान को अपने आकर्षण का केंद्र क्यों बनाना चाहिए. (1,389)
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व्यक्ति मन को कैसे नियंत्रित कर सकता है? (1,387)
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गोपियाँ भगवान की आंतरिक ऊर्जा हैं और उनका किसी भी अन्य प्राणी से संबंध नहीं हो सकता. (1,387)
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ब्रम्हांड का विलयन किस प्रकार होता है? (1,380)
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परम भगवान की ऊर्जाएँ. (1,379)
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श्री चैतन्य महाप्रभु के अवतार को वैदिक साहित्य में गोपनीय पृथक रूप से क्यों उजागर किया गया है। (1,376)
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नर-बकरे और मादा-बकरी की कथा. (1,375)
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कुछ प्रसंगों में ब्रह्मा स्वयं भगवान के परम व्यक्तित्व के भक्त नहीं हो सकते हैं। (1,374)
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ब्रम्हांड का विस्तृत विवरण. (1,374)
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कर्म की दुखद या सुखद प्रतिक्रियाएँ अंततः मिथ्या अहंकार पर कार्य करती हैं। (1,369)
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भौतिक शरीर अंततः दूसरों के द्वारा उपभोग कर लिया जाता है। (1,367)
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जीव केवल अपनी शक्ति द्वारा जीवित रह सकते हैं. (1,363)
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व्यक्ति परम सत्य के अस्तित्व को उसकी शक्तियों के विस्तार द्वारा समझ सकता है। (1,360)
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परम स्तर आध्यात्मिक है जबकि भौतिक संसार द्वैत से भरा है. (1,356)
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माँ जुड़वाँ बच्चों को उल्टी अवस्था में जन्म देती है जैसे कि वे गर्भ में पहली बार आए थे. (1,354)
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सभी प्राणियों को परम भगवान का अंश कहा जाता है. (1,347)
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परिवार के कई आश्रित सदस्यों की देखभाल करने वाले गृहस्थ द्वारा स्वयं को भगवान नहीं समझ लेना चाहिए। (1,345)
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वैदिक नियम के अनुसार, तलाक नाम की कोई चीज़ नहीं होती. (1,342)
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वैदिक सिद्धांतों के अनुसार, किसी स्त्री के कई पति नहीं हो सकते. (1,328)
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भौतिक संसार मिथ्या नहीं है। (1,328)
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व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना को प्राप्त करने के लिए मानव शरीर आदर्श सुविधा होता है. (1,324)
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एक सच्चे भक्त द्वारा भोगा गया दुख तकनीकी रूप से कोई कर्म की प्रतिक्रिया नहीं है. (1,323)
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बलराम और भगवान राम में कोई अंतर नहीं है. (1,323)
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जिस प्रकार माता का लगाव शिशु के साथ सहज होता है, उसी प्रकार, भगवान हमेशा प्रत्येक जीव के प्रति स्नेहिल होते हैं. (1,322)
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भगवान सभी जीवों को अनुशंसा करते हैं कि उन्हें किसी भी युग में – भौतिक ब्रह्मांड के किसी भी स्थान में नहीं रहना चाहिए। (1,321)
-
भगवान के परम व्यक्तित्व में न तो वासना होती है न ही क्रोध. (1,320)
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कृष्ण इस संसार के नियंत्रक नहीं है बल्कि स्वयं अपने संसार का आनंद लेने वाले उपभोक्ता हैं। (1,318)
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देवता यज्ञ के चढ़ावे को स्वीकार नहीं कर सकते. (1,312)
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भगवान केवल सत्यभामा को ही स्वर्गीय ग्रहों पर ले गए और अन्य पत्नियों को नहीं? (1,312)
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अत्यधिक कष्ट या अत्यधिक आनंद आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होता है। (1,311)
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भगवान कृष्ण की भक्ति सेवा सभी कर्म फलों का उन्मूलन कर देती है. (1,310)
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सकाम और अकाम भक्तों के बीच अंतर. (1,302)
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शुद्धीकृत अच्छाई के आध्यात्मिक धरातल पर व्यक्ति परम सत्य के साथ एक प्रत्यक्ष प्रेममयी संबंध स्थापित करता है। (1,293)
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अक्षौहिणी क्या है? (1,286)
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भगवान का गुणगान व्यक्ति के हृदय से मैल को पूर्ण रूप से मिटा देता है. (1,286)
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राजनीति में सफलता अर्जित करने की विभिन्न विधियाँ होती हैं. (1,285)
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दस गौण रहस्यमयी सिद्धियाँ। (1,270)
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लक्ष्मीदेवी किसी भौतिकवादी व्यक्ति को अपना आशीर्वाद नहीं देतीं. (1,267)
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कृष्ण चेतना का प्रसार करना परम कल्याणकारी गतिविधि है. (1,266)
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कृष्ण हमें कुछ त्रुटिपूर्ण करने की आज्ञा क्यों देते हैं? (1,264)
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कलि-युग में पति और पत्नी के बीच का संबंध यौन शक्ति पर आधारित होगा. (1,263)
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किसी बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसे साहित्य की ओर कभी नहीं जाना चाहिए जिसमें भगवान कृष्ण की गतिविधियों का वर्णन समाहित न हो। (1,263)
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ब्राम्हण और वैष्णव किसी अन्य के व्यय पर नहीं रहते. (1,262)
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जब एक भक्त किसी तीर्थस्थान पर स्नान करता है, तो पापी पुरुषों द्वारा छोड़ी गई पापमय प्रतिक्रियाएँ निष्प्रभावी हो जाती हैं. (1,258)
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भगवान का परम व्यक्तित्व कल्पना का उत्पाद नहीं है। (1,258)
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भक्त को पहले उस विशेष ब्रह्मांड में स्थानांतरित किया जाता है जहाँ भगवान की लीलाएं वर्तमान में होती हैं. (1,251)
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व्यक्ति किसी अवतार के लक्षण कैसे समझ सकता है? (1,249)
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असमय मृत्यु का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए स्वाभाविक है कि वह स्वयं को बचाने का यथासंभव प्रयास करे. (1,248)
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एकांत स्थान भी सुरक्षित नहीं होता है जब तक कि अच्छी संगति न हो. (1,247)
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देवताओं और दैत्यों के बीच अंतर. (1,240)
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जो तमो गुण के माध्यम से मानव रूप में आते हैं, वे अपने पिछले जीवन में वानर थे. (1,237)
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इस भौतिक संसार में प्रत्येक चरण पर जोखिम होता है. (1,233)
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भगवान का ध्वनि से प्रतिनिधित्व स्वयं भगवान के समान कैसे होता है? (1,232)
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विभिन्न प्रकार की मुक्तियाँ क्या हैं जिन्हें व्यक्ति पा सकता है? (1,230)
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जब तक व्यक्ति न्यूनाधिक पागल न हो, वह भौतिक जीवन में उत्सुक या बल्कि शांत भी नहीं रह सकता। (1,229)
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भगवान का परम व्यक्तित्व राहु का पता क्यों नहीं लगा सका. (1,229)
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प्रकृति के नियमों द्वारा हमारे अपने शरीरों सहित सभी भौतिक वस्तुएँ धीरे-धीरे विघटित हो जाती हैं। (1,224)
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भाग्य की देवी (लक्ष्मी) को गोपियों के समान उपकार नहीं मिल सकता था। (1,222)
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स्वर्गीय ग्रहों में, यद्यपि पुरुष और स्त्रियाँ मैथुन का आनंद लेते हैं, लेकिन वहाँ कोई गर्भधारण नहीं होता. (1,220)
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व्यक्ति केवल किसी शुद्ध भक्त की सेवा के द्वारा ही कृष्ण को समझ सकता है. (1,211)
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भारत-वर्ष (भारत) के निवासी धीरे-धीरे पतित होते जा रहे हैं (1,208)
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भगवान की शुद्ध भक्ति सेवा व्यक्ति की भौतिक इच्छाओं को उखाड़ फेंकती है। (1,203)
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केवल तर्क इसकी व्याख्या नहीं कर सकता कि भौतिक वस्तुओं भी अपनी शक्ति का विस्तार कैसे करती हैं। (1,201)
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गृहस्थ जीवन की तुलना अंधकूप से क्यों की जाती है? (1,199)
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परम जीव, कृष्ण, शाश्वत रूप से स्वयं को चतुर्-व्यूह या चार गुना समग्र विस्तार के रूप में प्रकट करते हैं। (1,197)
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श्रीमती राधारानी कौन हैं? (1,196)
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प्रभाव की धारणा के बिना भौतिक कारण की प्रकृति को नहीं समझा जा सकता है। (1,194)
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प्रलय के समय भगवान ब्रह्मा के साथ क्या होगा? (1,193)
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भगवान कृष्ण स्वयं को अपने उपासक के समक्ष पाँच भिन्न रूपों में प्रस्तुत कर सकते हैं। (1,189)
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कृत्रिम रूप से, मन को वासना या अज्ञान के निचले धरातल पर खींचा जाता है। (1,174)
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मिथ्या अहंकार सूक्ष्म चित्त और स्थूल भौतिक शरीर के साथ विशुद्ध आत्मा की भ्रामक पहचान होता है। (1,173)
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सभी लोगों को, भले ही वे कर्मी, ज्ञानी, योगी या भक्त हों, निरपवाद रूप से वासुदेव के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए. (1,150)
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कृष्ण आध्यात्मिक आकाश में अपने शाश्वत धाम में सदैव उपस्थित रहते हैं। (1,149)
-
व्यक्ति द्वारा ग्रहण किए गए विशिष्ट शरीर ही भौतिक भोग का आधार होता है। (1,141)
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भौतिक संसार में अच्छाई किसी शुद्ध रूप में अस्तित्वमान नहीं होती है। (1,135)
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भौतिक अस्तित्व का वृक्ष। (1,133)
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कृष्ण न तो प्रार्थनाओं से प्रभावित होते हैं और न ही निन्दा से. (1,122)
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इंद्रिय तुष्टि में हमारी सहभागिता हमारी चेतना को भौतिक शरीर में खींच लेती है। (1,109)
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भगवान का सार्वभौमिक रूप माया के राज्य के भीतर उनके व्यक्तिगत रूप का अस्थायी काल्पनिक सादृश्य होता है. (1,108)
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भगवान की प्रेममयी सेवा में प्रयोग की गई किसी भी वस्तु को आध्यात्मिक समझा जाता है। (1,102)
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परम भगवान ने मानव जीवन की रचना क्यों की? (1,095)
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सत्य युग और अन्य युगों के निवासी उत्सुकता से कलि के इस काल में जन्म लेने की इच्छा रखते हैं। (1,091)
-
भक्तों की संगति में भक्ति सेवा के बिना भौतिक दासता से बचना असंभव है। (1,085)
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जीवन की पूर्णता मृत्यु के समय नारायण (कृष्ण) का स्मरण करने में होती है. (1,083)
-
जो दूसरों के गुणों और आचरण की प्रशंसा या निन्दा करता है, वह शीघ्र ही अपने सर्वोत्तम हित से विमुख हो जाता है। (1,075)
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एक संत व्यक्ति को घर-घर जाकर प्रत्येक परिवार से थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करना चाहिए। (1,072)
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यदि व्यक्ति परम भगवान तक वापस लौटना चाहता है, तो उसे स्वयं ही यौन जीवन से परहेज करना चाहिए. (1,068)
-
व्यक्ति भक्ति-योग के सौंदर्य और श्रेष्ठता की पूर्ण रूप से सराहना तब तक नहीं कर सकता जब तक कि वह अन्य सभी प्रक्रियाओं से इसके श्रेष्ठ होने को नहीं देखता। (1,050)
-
30 योग्यताएँ जिन्हें जीवन के मानव रूप में अवश्य अर्जित करना चाहिए. (1,050)
-
भक्ति सेवा जीव के सूक्ष्म शरीर को लुप्त कर देती है। (1,038)
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व्यक्ति को भावातीत साहित्य में पूर्ण आस्था होनी चाहिए। (1,035)
-
भगवान की रचना का वास्तविक उद्देश्य एक ही होता है। (1,000)
-
विभिन्न स्थानों, समयों और भौतिक वस्तुओं की सापेक्ष शुद्धता और अशुद्धता। (1,000)
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भलाई की भौतिक अवस्था अपने आप में आध्यात्मिक नहीं होती। (990)
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पूर्व युगों जैसे सत्य-युग में मनुष्य पूर्ण रूप से योग्य होते थे और सबसे कठिन आध्यात्मिक प्रक्रियाओं को भी सरलतापूर्वक पूरा कर लेते थे। (988)
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यमराज द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि व्यक्ति को अगली बार उसके पिछले कर्मों के अनुसार किस प्रकार का शरीर मिलेगा. (966)
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विशुद्ध प्रेम क्या है? (964)
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कृष्ण स्वयं में पूर्ण हैं। वे किसी भी भौतिक या आध्यात्मिक वस्तु की वासना नहीं रखते। (963)
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यदि व्यक्ति परिणामों का भोग करने का प्रयास किए बिना अपनी गतिविधियाँ भगवान कृष्ण को अर्पित करता है, तो उसका मन शुद्ध हो जाता है। (962)
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प्रत्येक व्यक्ति को नियत कर्तव्य निभाने पड़ते हैं. (943)
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भगवान अवैयक्तिक नहीं हैं. (875)
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सभी पापमय कृत्यों में किसी वैष्णव के प्रति अपराध सबसे गंभीर होता है. (866)
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व्यक्ति को संयम और बुद्धिमत्ता के साथ अपनी शारीरिक गतिविधियों को विनियमित करना चाहिए। (851)
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मृत्यु के समय हर जीवित व्यक्ति को चिंता होती है कि उसकी पत्नी का क्या होगा. (773)
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एक बच्चा सामान्यतः अपने मामा के घर के सिद्धांतों का अनुसरण करता है. (611)
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कर्म के नियम के परिणामों को केवल भगवान ही बदल सकते हैं. (557)
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सोम पेय कोई सामान्य मादक मदिरा नहीं है. (554)
हाल के पोस्ट
मन हमें हमेशा ऐसा करने या वैसा करने को कहता रहता है.
iandkrsna_user2024-07-01T11:48:31+00:00जून 10th, 2024|
सभी नक्षत्र – तारे, सूर्य और चंद्रमा – सीमित आत्मा की गतिविधियों के साक्षी हैं.
iandkrsna_user2024-07-01T11:45:27+00:00जून 10th, 2024|
आत्मा अमर है.
iandkrsna_user2024-07-01T11:40:07+00:00जून 10th, 2024|
व्यक्ति मन को कैसे नियंत्रित कर सकता है?
iandkrsna_user2024-07-01T11:32:39+00:00जून 10th, 2024|
आत्मा को स्त्री शरीर में स्थानांतरित कैसे किया जाता है?
iandkrsna_user2024-07-01T11:30:28+00:00जून 10th, 2024|
मृत्यु का भय सभी को लगता है.
iandkrsna_user2024-07-01T11:27:37+00:00जून 10th, 2024|
जीवन सभी भौतिक तत्वों से स्वतंत्र होता है.
iandkrsna_user2024-07-01T11:21:45+00:00जून 10th, 2024|
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र अभी तक नहीं खोज पाया है कि किसी मृत शरीर को वापस जीवत कैसे किया जाए.
iandkrsna_user2024-07-01T11:19:00+00:00जून 10th, 2024|
अविकसित भ्रूण को गर्भ में नष्ट कर देना पाप होता है.
iandkrsna_user2024-07-01T11:16:21+00:00जून 10th, 2024|
यदि मृत्यु के समय कोई भी भौतिक कामना न हो तो सूक्ष्म शरीर समाप्त हो जाता है.
iandkrsna_user2024-07-01T11:13:29+00:00जून 10th, 2024|
हम वास्तव में नहीं मरते हैं.
iandkrsna_user2024-07-01T11:11:31+00:00जून 10th, 2024|
विस्तृत मिथ्या अहंकार क्या है?
iandkrsna_user2024-07-01T11:07:59+00:00जून 10th, 2024|
आत्म को ढँकने वाले अहंकार के पाँच स्तर.
iandkrsna_user2024-07-01T11:03:00+00:00जून 10th, 2024|
जीव आत्मा की तटस्थ स्थिति.
iandkrsna_user2024-07-01T11:01:15+00:00जून 10th, 2024|
प्रसुप्ति या गहन निद्रा की अवस्था में, मन और इंद्रिय दोनों निष्क्रिय हो जाते हैं।
iandkrsna_user2024-07-01T10:59:21+00:00जून 10th, 2024|
जीव के लिए शरीर से भिन्न अस्तित्वमान होना किस प्रकार संभव है।
iandkrsna_user2024-07-01T10:56:15+00:00जून 10th, 2024|
इस भौतिक अस्तित्व के लिए आत्मा या शरीर का अनुभव बन जाना संभव नहीं है।
iandkrsna_user2024-07-01T10:54:54+00:00जून 10th, 2024|
मिथ्या अहंकार सूक्ष्म चित्त और स्थूल भौतिक शरीर के साथ विशुद्ध आत्मा की भ्रामक पहचान होता है।
iandkrsna_user2024-07-01T10:50:54+00:00जून 10th, 2024|
वैदिक पारलौकिक ज्ञान सीधे परम भगवान के व्यक्तित्व से आता है.
iandkrsna_user2024-07-03T07:45:28+00:00जून 10th, 2024|
वैदिक वांग्मय की व्यक्तिगत व्याख्या वास्तविक अर्थ को क्यों धुंधला कर सकती है?
iandkrsna_user2024-07-03T08:38:43+00:00जून 10th, 2024|
श्रीमद् भागवतम् और महाभारत को कब संकलित किया गया था?
iandkrsna_user2024-07-03T08:41:42+00:00जून 10th, 2024|
भगवान कृष्ण ने भागवद्-गीता का ज्ञान सूर्य-भगवान को दिया.
iandkrsna_user2024-07-03T08:45:10+00:00जून 10th, 2024|
मानव को शास्त्रों की सहायता से अपने जीवन की मूल स्थिति को पुनर्जीवित करने का अवसर दिया जाता है.
iandkrsna_user2024-07-03T08:51:16+00:00जून 10th, 2024|
धर्म के प्रचार के लिए शास्त्रों का क्या परामर्श है?
iandkrsna_user2024-07-03T08:57:02+00:00जून 10th, 2024|
वेदों में लिखी बातों का विश्वास हमें क्यों करना चाहिए?
iandkrsna_user2024-07-03T08:57:29+00:00जून 10th, 2024|