ग्रह और नक्षत्र किस प्रकार आकाश में तैर रहे हैं?
भगवान का परम व्यक्तित्व और भौतिक प्रकृति इस महान ब्रम्हांड, और न केवल इस ब्रम्हांड बल्कि इसके बाहर के अन्य लाखों ब्रम्हांडों का पालन करने के लिए साथ-साथ कार्य करते हैं. ग्रह और नक्षत्र किस प्रकार तैर रहे हैं इस प्रश्न का उत्तर भी इस श्लोक में दिया गया है. ऐसा गुरुत्वाकर्षण के नियमों के कारण नहीं है. बल्कि, ग्रह और नक्षत्र वायु के हस्तक्षेप द्वारा प्रवाहमान रहने के योग्य होते हैं. इन्ही हस्तक्षेपों के कारण आकाश में बड़े, भारी बादल प्रवाहित होते हैं और गरुड़ उड़ते हैं. 747 जेट विमान जैसे आधुनिक वायुयान समान सिद्धांत पर ही कार्य करते हैं: वायु को नियंत्रित करके, वे आकाश में ऊँचा उड़ते हैं, और धरती पर गिरने का प्रतिरोध करते हैं. ऐसे सभी समायोजन पुरुष (नर) और प्रकृति (मादा) के सिद्धांत के सामंजस्य द्वारा ही संभव होते हैं. भौतिक प्रकृति के सहयोग से, जिसे प्रकृति माना जाता है, और भगवान का परम व्यक्तित्व, जिसे पुरुष माना जाता है, ब्रह्मांड के सभी प्रकरण उनके उचित क्रम में अच्छी तरह से चल रहे हैं. इस श्लोक में वर्णित महान गरुड़ के संबंध में, ऐसा समझा जाता है कि ऐसे बहुत बड़े गरुड़ होते हैं जो हाथी का शिकार कर सकते हैं. वे इतना ऊँचा उड़ते हैं कि वे एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक यात्रा कर सकते हैं. वे एक ग्रह में उड़ना शुरू करते हैं और दूसरे ग्रह पर उतरते हैं, और उड़ते हुए वे अंडे देते हैं जो वायु में गिरते हुए अन्य पक्षियों द्वारा पोसे जाते हैं. संस्कृत में ऐसे गरुड़ों को स्येन कहा जाता है. वर्तमान परिस्थितियों में, निस्संदेह, हम ऐसे विशाल पक्षी नहीं देख पाते, लेकिन कम से कम हम ऐसे गरुड़ों के बारे में जानते हैं जो वानरों को पकड़ सकते हैं और फिर उन्हें मारने के लिए नीचे फेंक देते हैं और उन्हें खा जाते हैं. उसी प्रकार, ऐसा समझा जाता है कि ऐसे विशाल पक्षी होते हैं जो हाथी को भी उठा सकते हैं, मार और खा सकते हैं. गरुड़ और बादल के दो उदाहरण यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि उड़ना और प्रवाह वायु के समायोजन से संभव है. इसी प्रकार से ग्रह भी प्रवाहमान हैं क्योंकि भौतिक प्रकृति परम भगवान के आदेशानुसार वायु को समायोजित करती है. ऐसा कहा जा सकता है कि ये समायोजन गुरुत्व का सिद्धांत बनाते हैं, लेकिन किसी भी प्रसंग में, व्यक्ति को स्वीकार करना चाहिए कि ये नियम भगवान के परम व्यक्तित्व द्वारा बनाए जाते हैं. तथाकथित वैज्ञानिकों का उन पर कोई नियंत्रण नहीं होता. वैज्ञानिक झूठ-मूठ अनुचित रूप से घोषणा कर सकते हैं कि कोई भगवान नहीं होता, लेकिन यह तथ्य नहीं है.
स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पाँचवा सर्ग, अध्याय 23 – पाठ 03