यदि कोई भक्ति सेवा में रत हो, तो हो सकता है उसे वर्णाश्रम-धर्म की प्रणाली से नहीं गुज़रना होगा.
ब्रम्हा द्वारा भौतिक रचना का उद्देश्य यहाँ स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है. प्रत्येक मानव को भगवान के परम व्यक्तित्व की भक्ति सेवा में त्याग के उद्देश्य के लिए अपनी पत्नी के गर्भ में अच्छे बच्चों को पाना चाहिए. विष्णु पुराण (3.8.9) में यह कहा गया है: वर्णाश्रमचरवत पुरुषेण परः पुमन् विष्णुर् अराध्यते पंथः नन्यात् तत-तोष-कारणम् “व्यक्ति भगवान के परम व्यक्तित्व, विष्णु की पूजा, वर्ण और आश्रम के सिद्धांतों के उचित निष्पादन द्वारा कर सकता है. वर्णाश्रम प्रणाली के सिद्धांतों के निष्पादन द्वारा भगवान को संतुष्ट करने का कोई विकल्प नहीं है.” विष्णु की पूजा करना मानव जीवन का परम लक्ष्य है. वे जो वैवाहिक जीवन की अनुमति इंद्रिय सुख के लिए लेते हैं उन्हें भगवान के परम व्यक्तित्व, विष्णु को संतुष्ट करने का उत्तरदायित्व भी लेना चाहिए, और पहला सोपान वर्णाश्रम-धर्म प्रणाली है. वर्णाश्रम-धर्म विष्णु की पूजा में प्रगति करने के लिए व्यवस्थित संस्था है. यद्यपि, यदि कोई भगवान के परम व्यक्तित्व के प्रति भक्ति सेवा की प्रक्रिया में सीधे रत हो जाता है, तो हो सकता है कि वर्णाश्रम-धर्म की अनुशासन प्रणाली को भोगना आवश्यक न हो.
स्रोत: अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 13- पाठ 11









