सभी लोगों को, भले ही वे कर्मी, ज्ञानी, योगी या भक्त हों, निरपवाद रूप से वासुदेव के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए.

सभी लोगों को, भले ही वे कर्मी, ज्ञानी, योगी या भक्त हों, निरपवाद रूप से वासुदेव के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए और उनकी पारलौकिक प्रेममयी सेवा करनी चाहिए ताकि उनकी सारी मनोकामनाएँ यथायोग्य पूरी हों. कृष्ण दीन-अनुकंपना हैं : वे सभी के प्रति बड़े दयालु हैं. इसलिए यदि व्यक्ति उसकी भौतिक मनोकामनाएँ पूरी करना चाहते है, तो कृष्ण उसकी सहायता करते हैं. निस्संदेह, कभी यदि कोई भक्त बड़ा गंभीर हो, तो विशेष अनुकंपा के रूप में, भगवान उसकी भौतिक इच्छां को पूरा करने से मना कर देते हैं और उसे प्रत्यक्ष विशुद्ध, अमिश्रित भक्ति सेवा का वरदान देते हैं. चैतन्य-चरितामृत (मध्य 22.38-39) में यह कहा गया है :

कृष्ण कहे, —-अमा भजे, माँगे विषय-सुख अमृत छाड़ि विष माँगे, —-ऐई बड़ा मूर्ख
आमि—विज्ञ, ऐई मूर्खे विषय केने दीबा? स्व-चरणामृत दिया विषय भुलाइबा

“कृष्ण कहते हैं, ‘यदि वयक्ति मेरी पारलौकिक प्रेममयी सेवा में रत होता है किंतु उसी समय भौतिक भोग का एश्वर्य भी चाहता है, तो वह बहुत मूर्ख है. निस्संदेह, वह उस व्यक्ति के समान होता है जो विष पीने के लिए अमृत का त्याग कर दे. चूँकि मैं बहुत बुद्धिमान हूँ, मैं इस मूर्ख को भौतिक संपन्नता क्यों दूँ?” इसके स्थान पर मैं उसे मेरे चरण कमलों में शरण लेने को प्रेरित करूँगा और उसके मन से मायावी भौतिक भोग को भुला दूँगा.’ “यदि एक भक्त कुछ भौतिक इच्छाएँ रखे और उसी समय कृष्ण के चरण कमलों में रहने की गंभीर इच्छा रखे, तो कृष्ण उसे प्रत्यक्ष रूप से विशुद्ध भक्ति सेवा प्रदान कर सकते हैं और उसकी सभी भौतिक इच्छाएँ और संपत्तियाँ हर सकते हैं. यह भक्तों के लिए भगवान की विशेष अनुकंपा है. अन्यथा, यदि व्यक्ति कृष्ण की भक्ति सेवा अपनाता है किंतु तब भी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति चाहता है, तो हो सकता है वह समस्त भौतिक इच्छाओं से मुक्त हो जाए, जैसे ध्रुव महाराज हुए थे, किंतु इसमें कुछ समय लग सकता है. यद्यपि, यदि कोई गंभीर भक्त केवल कृष्ण के चरण कमल चाहता है, तो कृष्ण प्रत्यक्षतः उसे शुद्ध भक्ति, निर्लिप्त भक्ति सेवा की अवस्था प्रदान करते हैं.”

स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , आठवाँ सर्ग, अध्याय 16 – पाठ 21