यद्यपि, भगवान ब्रह्मा ने वृंदावन बल्कि उसके समीप के भी किसी भूभाग में तृण के रूप में जन्म लेने की प्रार्थना की थी, भगवान कृष्ण ने, ब्रह्मा की प्रार्थनाओं के प्रति अपनी मौन प्रतिक्रिया से, संकेत दिया कि ब्रह्मा को अपने निवास पर लौट जाना चाहिए. पहले तो ब्रह्मा को ब्रह्मांडीय सृजन की अपनी व्यक्तिगत भक्ति सेवा पूरी करनी थी; तब वे वृंदावन आ सकते थे और वहाँ के निवासियों की दया प्राप्त कर सकते थे. दूसरे शब्दों में, एक भक्त को अपनी व्यक्तिगत भक्ति सेवा को उचित ढंग से निष्पादित करने के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिेए. यह भगवान के धाम में रहने से अधिक महत्वपूर्ण होता है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 14- पाठ 41

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