दान जैसी पवित्र गतिविधि की भौतिक विधि का सुझाव स्मृति-शास्त्रों में दिया गया है जैसा कि श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने उद्धृत किया है. योग्य व्यक्ति को दान में दिया गया धन अगले जीवन में निश्चित बैंक बैलेंस होता है. ऐसा दान ब्राम्हण को देने का सुझाव दिया गया है. यदि दान में धन किसी अ-ब्राम्हण (ब्राम्हण योग्यता से रहित) को दिया गया हो तो अगले जीवन में वह धन वापस समान परिमाण में वापस हो जाता है. यदि उसे किसी अर्ध-शिक्षित ब्राम्हण को दिया जाता है, तब भी धन दुगुना वापस मिलता है. यदि धन किसी पूर्ण शिक्षित योग्य ब्राम्हण को दिया गया है, तो धन सौ और हज़ार गुना वापस मिलता है, और यदि धन को किसी वेद-पराग (वह जिसने वेदों का मार्ग तथ्यात्मकता में अनुभव कर लिया है), तो वह असीमित वृद्धि के साथ वापस मिलता है. वैदिक ज्ञान का परम अंत भगवद-गीता में वर्णित भगवान कृष्ण के व्यक्तित्व का बोध है (वैदेस च सर्वैर अहम् एव वेद्यः). धन का वापस आना सुनिश्चित है यदि उसे परिणाम की चिंता किए बिना दान में दिया गया हो. इसी प्रकार, भगवान के पारलौकिक संदेशों को सुनते और जप करते हुए एक शुद्ध भक्त की संगति में बिताया गया एक क्षण अनंत जीवन के लिए घर वापस, परम भगवान तक जाने की एक संपूर्ण गारंटी होता है. मद-धाम गत्वा पुनर्जन्म न विद्यते. दूसरे शब्दों में, भगवान के भक्त का अमर जीवन सुनिश्चित किया जाता है. वर्तमान जीवन में किसी भक्त की वृद्धावस्था या बीमारी ऐसे सुनिश्चित शाश्वत जीवन के लिए एक संवेग है.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014, अंग्रेजी संस्करण), “श्रीमद्-भागवतम” दूसरा सर्ग, अध्याय 3- पाठ 17

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