हर किसी को छिपा हुआ खजाना का वर मिला हुआ है.
जीवन के अंतिम लक्ष्य के लिए मनुष्य की खोज के संबंध में, चैतन्य महाप्रभु, माधव की टिप्पणी से एक कथा जोड़ते हैं जो श्रीमद-भागवतम (माधव-भाष्य) के पांचवें सर्ग में आती है. एक निर्धन व्यक्ति सर्वज्ञ के पास अपना भविष्य जानने आया था. जब सर्वज्ञ ने उस व्यक्ति की कुंडली देखी, तो वह चकित रह गया कि वह व्यक्ति बहुत दीन था, और उसने उससे कहा, “तुम इतने दुखी क्यों हो? तुम्हारी कुंडली से मैं देख सकता हूँ कि तुम्हारे पास पिता का छोड़ा हुआ खजाना है. यद्यपि, कुंडली इंगित करती है कि तुम्हारे पिता ने इसका खुलासा नहीं किया क्योंकि उनकी मृत्यु एक विदेशी स्थान पर हुई थी, लेकिन अब तुम इस खजाने को खोज सकते हो, और खुश रह सकते हो.” इस कहानी का उद्धरण इसलिए दिया जाता है क्योंकि जीव अपने सर्वोच्च पिता कृष्ण के छिपे हुए ख़जाने की अनदेखी के कारण पीड़ित हैं. वह ख़ज़ाना परम भगवान का प्रेम है, और प्रत्येक वैदिक शास्त्र में बद्ध आत्मा को इसे खोजने का सुझाव दिया जाता है. जैसा कि भगवद्-गीता में कहा गया है, यूँ तो बद्ध आत्मा सबसे संपन्न व्यक्तित्व – भगवान के परम व्यक्तित्व – का पुत्र है, वह उसका अनुभव नहीं कर पाता. इसलिए वैदिक साहित्य उसे उसके पिता और उसकी पैतृक संपत्ति की खोज में सहायता करने के लिए दिया गया है. ज्योतिषी सर्वज्ञ ने निर्धन व्यक्ति को आगे सुझाव दिया: “छिपे हुए ख़जाने को खोजने के लिए अपने घर के दक्षिणी तरफ खुदाई मत करना, अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम पर एक जहरीले ततैया द्वारा हमला किया जाएगा और तुम चकरा जाओगे. खोज पूर्वी दिशा में की जानी चाहिए जहाँ वास्तविक प्रकाश हो, जिसे भक्ति सेवा या कृष्ण चेतना कहा जाता है. दक्षिण की ओर वैदिक अनुष्ठान हैं, और पश्चिम की ओर मानसिक अटकलें हैं, और उत्तर की ओर पर ध्यान योग है”. सर्वज्ञ के सुझाव को सभी को ध्यान से देखना चाहिए. यदि कोई अनुष्ठान प्रक्रिया द्वारा अंतिम लक्ष्य की खोज करता है, तो वह निश्चित रूप से चकरा जाएगा. इस तरह की प्रक्रिया में एक पुजारी के मार्गदर्शन में अनुष्ठान का निष्पादन किया जाता है, जो सेवा के बदले धन लेता है. कोई व्यक्ति सोच सकता है कि वह इस प्रकार के अनुष्ठान करके प्रसन्न हो जाएगा, लेकिन वास्तव में यदि उसे उनसे कुछ परिणाम प्राप्त होते हैं, तो वे बस अस्थायी हैं. उसका भौतिक संकट जारी रहेगा. इस प्रकार वह अनुष्ठान प्रक्रिया का पालन करके कभी भी वास्तव में प्रसन्न नहीं होगा. उसके स्थान पर, वह अपने भौतिक कष्टों को और बढ़ाएगा. ऐसा उत्तरी दिशा में खुदाई करने या ध्यान योग प्रक्रिया के माध्यम से ख़जाने की खोज के संबंध में भी कहा जा सकता है. इस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति परम भगवान के साथ एक होने के बारे में सोचता है, लेकिन परम में यह विलय एक बड़े सर्प द्वारा निगल लिए जाने जैसा है. कई बार एक बड़ा सर्प एक छोटे सर्प को निगल जाता है, और परम के आध्यात्मिक अस्तित्व में विलय हो जाने के सदृश होता है. एक ओर छोटा सर्प पूर्णता की खोज कर रहा है, जिसे निगल लिया जाता है. स्पष्ट है कि यहाँ कोई समाधान नहीं है. पश्चिम की ओर यक्ष के रूप में भी एक बाधा है, एक बुरी आत्मा, जो ख़जाने की रक्षा करती है. विचार यह है कि छिपा ख़ज़ाना उसे कभी नहीं मिल सकता जो उसे पाने के लिए यक्ष की सहायता मांगता है. परिणाम यही होगा कि व्यक्ति बस मारा जाएगा. यह यक्ष अटकल लगाने वाला मन है, और इस प्रसंग में आत्म-साक्षात्कार की अनुमानकारी प्रक्रिया, या ज्ञान प्रक्रिया, भी आत्मघाती होती है. इसके बाद एकमात्र संभावना यह है कि पूर्ण कृष्ण चेतना में भक्ति सेवा की प्रक्रिया द्वारा पूर्वी किनारे पर छिपे हुए खजाने की खोज की जाए. वास्तव में, भक्ति सेवा की वह प्रक्रिया सदा से छिपा हुआ ख़जाना है, और जब कोई इसे प्राप्त कर लेता है, तो वह सदा के लिए संपन्न बन जाता है. वह जो कृष्ण की भक्ति में दरिद्र है, उसे सदैव भौतिक लाभ की आवश्यकता होती है. कभी वह जहरीले प्राणियों का दंश झेलता है, और कभी वह हतप्रभ रह जाता है; कभी-कभी वह अद्वैतवाद के दर्शन का अनुसरण करता है और इस तरह अपनी पहचान खो देता है, और कभी-कभी उसे एक बड़े नाग द्वारा निगल लिया जाता है. केवल इस सब का त्याग करने और भगवान की भक्ति सेवा में एकाग्र होकर ही व्यक्ति वास्तव में जीवन की पूर्णता प्राप्त कर सकता है.
स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012, अंग्रेजी संस्करण), “भगवान चैतन्य, स्वर्ण अवतार की शिक्षाएँ”, पृ. 71