मायावी भौतिक ऊर्जा सबको ठग रही है.

एक बुद्धिमान व्यक्ति को अच्छे अवसरों का उपयोग करना चाहिए. पहला अवसर जीवन का मानवीय रूप है, और दूसरा अवसर एक उपयुक्त परिवार में जन्म लेने का है जहाँ आध्यात्मिक ज्ञान का संस्कार दिया जाता है; ऐसा कम ही मिलता है. सबसे बड़ा अवसर एक संत व्यक्ति से जुड़ाव होता है. देवहुति सचेत थीं कि वे एक सम्राट की बेटी के रूप में पैदा हुईं थी. वे पर्याप्त रूप से शिक्षित और सुसंस्कृत थीं, और अंत में उन्हें कर्दम मुनि, एक संत और एक महान योगी, अपने पति के रूप में प्राप्त हुए. तब भी, यदि उन्हें भौतिक ऊर्जा के जंजाल से मुक्ति नहीं मिलती, तो निश्चित ही उनके साथ अद्म्य मायावी ऊर्जा द्वारा छल किया जाता. वास्त्व में, भौतिक ऊर्जा सभी के साथ छल कर रही है. लोग जब भौतिक वरदानों के लिए देवी काली या दुर्गा के रूप में भौतिक ऊर्जा की पूजा करते हैं तो वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं. वे मांगते हैं, “माँ, मुझे बहुत धन दें, मुझे एक अच्छी पत्नी दें, मुझे प्रसिद्धि दें, मुझे विजय दिलाएँ.” लेकिन माया या दुर्गा देवी के ऐसे भक्त नहीं जानते कि उस देवी द्वारा ही उनके साथ छल किया जा रहा है. भौतिक उपलब्धि वास्तव में कोई उपलब्धि नहीं है क्योंकि जैसे ही व्यक्ति भौतिक उपहारों के भ्रम में पड़ जाता है, वह अधिक से अधिक उलझता जाता है, और मुक्ति का कोई प्रश्न ही नहीं होता. व्यक्ति को यह जानने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान होना चाहिए कि आध्यात्मिक बोध के उद्देश्य से भौतिक संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाए. वह कर्म-योग या ज्ञान-योग कहलाता है। हमारे पास जो कुछ भी हो उसे हमें परम व्यक्तित्व की सेवा के रूप में उपयोग करना चाहिए. भगवद गीता में यह सुझाव दिया गया है स्व- कर्मण तम अभ्यार्च्य: व्यक्ति को अपनी संपत्ति के द्वारा भगवान के परम व्यक्तित्व की पूजा करने का प्रयास करना चाहिए. परम भगवान की सेवा के कई रूप हैं, और कोई भी अपनी क्षमता के अनुसार सेवा प्रदान कर सकता है.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014, अंग्रेजी संस्करण), “श्रीमद्-भागवतम” तीसरा सर्ग, अध्याय 23 – पाठ 57