कोई भी अपने शरीर या भौतिक उपलब्धियों को हमेशा के लिए बनाए नहीं रख सकता.
इस भौतिक संसार के भीतर, व्यक्ति को व्यावहारिक अनुभव से भौतिक संपन्नता के महत्व, टिकाऊपन और प्रभाव को समझना चाहिए. हमारा वास्तविक अनुभव है कि इस ग्रह पर भी नेपोलियन, हिटलर, सुभाष चंद्र बोस और गांधी जैसे बहुत बड़े राजनेता और सेनापति हुए हैं, किंतु जैसे ही उनके जीवन समाप्त हुए, वैसे ही उनकी लोकप्रियता, प्रभाव और अन्य सबकुछ भी समाप्त हो गया. प्रह्लाद महाराज ने भी पूर्व में अपने पिता हिरण्यकशिपु के कर्मों को देख कर यही अनुभव प्राप्त किया था. इसलिए प्रह्लाद महाराज ने इस भौतिक संसार में किसी भी वस्तु को महत्व नहीं दिया. कोई भी अपने शरीर या भौतिक उपलब्धियों को हमेशा के लिए बनाए नहीं रख सकता. एक वैष्णव समझ सकता है कि इस भौतिक संसार में कुछ भी नहीं टिक सकता, वह भी जो शक्तिशाली, संपन्न या प्रभावशाली हो. किसी भी समय ऐसी वस्तुएँ नष्ट हो सकती हैं. और उन्हें कौन नष्ट कर सकता है? भगवान का परम व्यक्तित्व. इसलिए व्यक्ति को अंततः समझना चाहिए कि परम महान से महानतर कोई भी नहीं है. चूँकि परम महान चाहते हैं, सर्व-धर्मन् परित्याज्य मम एकम शरणम् व्रज, प्रत्येक बुद्धिमान मनुष्य को इस प्रस्ताव से सहमत होना चाहिए. बारंबार जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और रोग के चक्र से बचने के लिए व्यक्ति को भगवान की शरण में आना ही होगा.
स्रोत- अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, सातवाँ सर्ग, खंड 09- पाठ 23


 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	






