भीष्मदेव कहते हैं कि श्रीकृष्ण पहले नारायण हैं. इसकी पुष्टि भागवतम् (10.14.14) में ब्रम्हा जी द्वारा भी की गई है. आध्यात्मिक संसार (वैकुंठ) में असीमित संख्या में नारायण हैं, जो परम भगवान के समान व्यक्तित्व हैं और परम भगवान, श्रीकृष्ण के मूल व्यक्तित्व के समग्र विस्तार माने जाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण का पहला रूप स्वयं को पहले बलदेव के रूप में विस्तार देता है, और बलदेव अन्य बहुत से रूपों में विस्तार लेते हैं, जैसे संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, वासुदेव, नारायण, पुरुष, राम और नृसिंह. ये सभी विस्तार एक और समान विष्णु-तत्व हैं, और श्रीकृष्ण समस्त समग्र विस्तारों के मूल स्रोत हैं. इस प्रकार वे परम भगवान के प्रत्यक्ष व्यक्तित्व हैं, वे भौतिक संसार के रचियता हैं, और वे सभी वैकुंठ ग्रहों में नारायण के रूप में ज्ञात प्रमुख देवता हैं. इसलिए, मानवों के बीच उनका होना एक और प्रकार का संभ्रम है. इसलिए भगवान भगवद्-गीता में कहते हैं कि मूर्ख लोग उनकी गतिविधियों की जटिलताओं को जाने बिना उन्हें मानवों में से एक मानते हैं.

अवतार का अर्थ “वह जो अवरोहण करता है”. स्वयं भगवान सहित, भगवान के सभी अवतार, भौतिक संसार के विभिन्न ग्रहों में और साथ ही जीवन की विभिन्न जातियों में विशिष्ट प्रयोजन को पूरा करने के लिए अवतरित होते हैं. कई बार वे स्वयं आते हैं, और कई बार उनके विभिन्न समग्र अंश या समग्र अंश के भाग, या उनके पृथक हो गए अंश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उनसे बल पाकर, इस भौतिक संसार में कुछ विशिष्ट कार्यों को पूरा करने उतरते हैं.

मूल रूप से भगवान सभी ऐश्वर्यों, शूरता, प्रसिद्धि, समस्त सौंदर्य, समस्त ज्ञान और सारे परित्यागों से परिपूर्ण हैं. जब वे समग्र अंशों के समग्र भागों या अंशों के माध्यम से आंशिक रूप से प्रकट होते हैं, तो ध्यान देना चाहिए कि उनकी विभिन्न शक्तियों के निश्चित प्रकटन उन विशिष्ट कार्यों के लिए आवश्यक होते हैं. जब कमरे में छोटे बिजली के बल्ब दिखाई देते हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि बिजलीघर छोटे बल्बों द्वारा सीमित है. यही समान बिजलीघर अधिक वोल्टेज वाले बड़े पैमाने के औद्योगिक यंत्रों को चलाने की शक्ति दे सकता है. उसी प्रकार, भगवान के अवतार सीमित शक्ति प्रदर्शित करते हैं क्योंकि किसी विशेष समय पर उतनी ही शक्ति की आवश्यकता होती है. उदाहरण के लिए, भगवान परशुराम और भगवान नृसिंह ने अनज्ञाकारी क्षत्रियों का इक्कीस बार वध करके और महा बलशाली नास्तिक हिरण्यकशिपु का वध करके असाधारण बाहुल्य प्रदर्शित किया था. हिरण्यकशिपु इतना शक्तिशाली था कि अन्य ग्रहों के देवता भी उसकी अनिष्ट भृकुटी तानने पर काँप जाते थे. उच्चतर स्तर के भौतिक अस्तित्व में देवता जीवन अवधि, सौंदय, संपत्ति, सामग्री, और अन्य सभी पक्षों में सर्वोच्च मानवों से कई गुना आगे थे. फिर भी वे हिरण्यकशिपु से डरते थे. अतः हम सरलता से कल्पना कर सकते हैं कि भौतिक संसार में हिरण्यकशिपु कितना शक्तिशाली था. लेकिन तब भी हिरण्यकशिपु को भगवान नृसिंह के नखों द्वारा छोटे टुकड़ों में काट दिया गया था. इसका अर्थ है कि भौतिक रूप से बलशाली कोई भी व्यक्ति भगवान के नाखूनों की शक्ति के आगे नहीं टिक सकता.

उसी प्रकार, जमदग्नि ने अपने-अपने राज्यों में दृढ़ता से स्थित अनाज्ञाकारी राजाओं का वध करने के लिए भगवान की शक्ति का प्रदर्शन किया. भगवान के सशक्त अवतार नारद और विस्तारित अवतार वराह, साथ ही परोक्ष रूप से सशक्त भगवान बुद्ध ने जन-सामान्य में धर्म की स्थापना की थी. राम और धन्वंतरि के अवतारों ने उनकी प्रसिद्धि, और बलराम, मोहिनी और वामन ने उनके सौंदर्य का प्रदर्शन किया. दत्तात्रेय, मत्स्य, कुमार और कपिल ने उनके पारलौकिक ज्ञान का प्रदर्शन किया. नर और नारायण ऋषियों ने उनके त्याग का प्रदर्शन किया. अतः भगवान के सभी विभिन्न अवतारों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विभिन्न विशेषताएँ प्रदर्शित कीं, लेकिन मौलिक भगवान, भगवान कृष्ण ने परम भगवान की संपूर्ण विशेषताएँ प्रदर्शित कीं, और इसलिए यह पुष्टि होती है कि अन्य सभी अवतारों के स्रोत वही हैं. और भगवान कृष्ण द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली सबसे असाधारण विशेषता गोपियों के साथ उनकी लीलाओं द्वारा उनका आंतरिक ऊर्जामयी प्रकटन था. गोपियों के साथ उनकी लीलाएँ पारलौकिक अस्तित्व, आनंद और ज्ञान का ही प्रदर्शन था, यद्यपि इनका प्रकटन स्पष्ट रूप से कामुक प्रेम के रूप में हुआ है. गोपियों के साथ उनकी लीलाओं के विशिष्ट आकर्षण को समझने में कभी त्रुटि नहीं करनी चाहिए. भागवतम् दसवें अध्याय में इन पारलौकिक लीलाओं से संबंध दर्शाती है. और भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ लीलाओं के पारलौकिक स्वभाव को समझने की स्थिति तक पहुँचने के लिए, भागवतम् विद्यार्थियों को धीरे-धीरे नौ अतिरिक्त अध्यायों तक विकसित करती है.

श्रील जीव गोस्वामी के वक्तव्य के अनुसार, अधिकृत स्रोतों की अनुरूपता में, भगवान कृष्ण अन्य सभी अवतारों के स्रोत हैं. ऐसा नहीं है कि भगवान कृष्ण के अवतार का कोई स्रोत है. परम सत्य के सभी लक्षण संपूर्ण रूप से भगवान कृष्ण के व्यक्तित्व में विद्यमान हैं, और भगवद्-गीता में भगवान बलपूर्वक घोषणा करते हैं कि स्वयं उनसे महत्तर या समकक्ष कोई भी सत्य नहीं है. यद्यपि अन्य स्थानों पर अवतारों का वर्णन उनके विशिष्ट कार्यों के कारण भगवान के रूप में किया गया है, उन्हें कहीं भी परम व्यक्तित्व घोषित नहीं किया गया है. इस पद में ‘स्वयं’ शब्द परमार्थ के रूप में श्रेष्ठता का परिचायक है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 9 – पाठ 18
अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 3 – पाठ 28

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