सभी प्राणियों को परम भगवान का अंश कहा जाता है.
सभी प्राणियों को परम भगवान का अंश कहा जाता है. मानव समाज के चार विभाग, बुद्धिमान जाति (ब्राम्हण), शासक वर्ग (क्षत्रिय), व्यवसायी वर्ग (वैश्य), और श्रमिक वर्ग (शूद्र), सभी भगवान के शरीर के विभिन्न भागों में हैं. ऐसे कि कोई भी भगवान से भिन्न नहीं है. मुंह, पैर, भुजाएँ और जंघाएँ सभी शरीर के भाग हैं. भगवान के शरीर के ये अंग एक संपूर्ण पिंड की सेवा के लिए हैं. मुंह बोलने और भोजन करने के लिए है, भुजाएँ शरीर की रक्षा करने के लिए हैं, पाँव शरीर को ले जाने के लिए हैं, और शरीर का कटिक्षेत्र शरीर के रख-रखाव के लिए है. इसलिए बुद्धिमान वर्ग को शरीर की ओर से बोलना चाहिए, और साथ ही शरीर की क्षुधा को तुष्ट करने के लिए भोजन स्वीकार करना चाहिए. भगवान की क्षुधा बलि के फल स्वीकार करने वाली है. ब्राम्हण या बुद्धिमान वर्ग, को ऐसी बलि आयोजित करने में बहुत विशेषज्ञ होना चाहिए, और उनके उप वर्गों को ऐसी बलियों में भाग लेना चाहिए. भगवान के लिए बोलने का अर्थ, भगवान के ज्ञान के जस-के-तस प्रचार के माध्यम से भगवान का गुणगान करना, भगवान के वास्तविक स्वभाव और संपूर्ण शरीर के अंगों की वास्तवक स्थिति को प्रसारित करना है. इस प्रकार ब्राम्हण को वेद, या ज्ञान के परम स्रोत को जानने की आवश्यकता होती है. वेद का अर्थ है ज्ञान, और अंत का अर्थ उसकी समाप्ति. भगवद्-गीता के अनुसार, भगवान सभी कुछ का स्रोत हैं (अहम् सर्वस्य प्रभावः), और इस प्रकार समस्त ज्ञान का अंत (वेदांत) भगवान को जान लेना है, उनके साथ हमारे संबंध को जान लेना और केवल उस संबंध के अनुसार ही व्यवहार करना. शरीर के अंग शरीर से संबंधित होते हैं; उसी प्रकार, प्राणी को भगवान के साथ अपने संबंध को अवश्य जानना चाहिए. मानव जीवन का उद्देश्य विशेष रूप से यही है, अर्थात् परम भगवान के साथ प्रत्येक प्राणी का वास्तविक संबंध. बिना इस संबंध को जाने, मानव जीवन व्यर्थ हो जाता है. अतः मानवों का बुद्धिमान वर्ग, ब्राम्हण, भगवान के साथ हमारे संबंध के ज्ञान को प्रसारित करने और सामान्य लोगों के समूह का नेतृत्व सही मार्ग पर करने के लिए विशेष रूप से उत्तरदायी है. शासक वर्ग प्राणियों की रक्षा करने के लिए है ताकि वे इस उद्देश्य की पूर्ति कर सकें; व्यवसायी वर्ग का उद्देश्य अन्न पैदा करना और उसे संपूर्ण मानव समाज में बाँटना है ताकि संपूर्ण जनसंख्या को आराम से जीवन जीने और मानव जीवन के कर्तव्यों को पूरा करने का अवसर मिले. व्यवसायी वर्ग को गायों का संरक्षण भी करना होता है ताकि पर्याप्त दूध और दूध के उत्पाद मिल सकें, जो अकेले ही परम सत्य के लिए उद्दिष्ट किसी सभ्यता को बनाए रखने के लिए उचित स्वास्थ्य और बुद्धि दे सकता है. और श्रमिक वर्ग, जो बुद्धिमान और शक्तिशाली दोनों ही नहीं होते, वे अन्य उच्चतर वर्गों की सेवा करके सहायता कर सकते हैं और इस प्रकार अपने सहयोग द्वारा लाभ प्राप्त करते हैं. अतः ब्रम्हांड भगवान के साथ संबंध में एक संपूर्ण इकाई है, और भगवान के साथ इस संबंध के बिना संपूर्ण मानव समाज विक्षुब्ध हो जाता है और शांति और समृद्धि से हीन होता है. इसकी पुष्टि वेदों में की गई है: ब्राम्हणो ‘स्य मुखम आसिद, बहु राजन्याः कृतः.
स्रोत : अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, द्वितीय सर्ग, अध्याय 5- पाठ 37