भगवान ने स्वयं के शरीर में ही प्रस्थान किया.
वैदिक ऋचाओँ (नित्यो नित्यनाम चेतनस चेतनानाम्) के अनुरूप, भौतिक जगत के सभी ब्रह्मांडों के भीतर भगवान का व्यक्तित्व अन्य सभी जीवित प्राणियों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट है. वे सभी जीवित प्राणियों के प्रमुख हैं; कोई भी संपत्ति, शक्ति, प्रसिद्धि, सौंदर्य, ज्ञान या त्याग में उनसे बड़ा या उनके समकक्ष नहीं हो सकता. जब भगवान कृष्ण इस ब्रह्माण्ड में थे, तो वे एक मानव के रूप में प्रतीत होते थे क्योंकि वे नश्वर संसार में अपनी लीलाओं के लिए उपयुक्त रूप में प्रकट हुए थे. वे अपने वैकुंठ रूप में चार भुजाओं के साथ मानव समाज में दिखाई नहीं दिए क्योंकि यह उनकी लीलाओँ के लिए उपयुक्त नहीं होता. लेकिन एक मानव रूप में दिखाई देने पर भी, कोई भी छः विभिन्न एश्वर्यों में से किसी में भी उनके समकक्ष नहीं था या है. इस संसार में हर कोई अपने एश्वर्य पर न्यूनाधिक गर्वित है, लेकिन जब भगवान कृष्ण मानव समाज में थे, तो वे ब्रम्हांड में अपने सभी समकालीनों से आगे थे. जब भगवान की लीलएँ मानव नेत्रों के लिए दृष्टिगोचर होती हैं, तब वे प्रकट कहलाती हैं, और जब वे दिखाई नहीं देती, तो वे अप्रकट कहलाती हैं. वास्तव में, भगवान की लीलाएँ कभी नहीं रुकती, जैसे सूर्य आकाश को कभी नहीं छोड़ता. सूर्य आकाश में हमेशा अपनी सही कक्षा में होता है, लेकिन हमारी सीमित दृष्टि में वह कभी दृष्टिगोचर होता है कभी नहीं होता. उसी समान, भगवान की लीलाएँ एक या दूसरे ब्रम्हांड में हमेशा जारी रहती हैं, और जब भगवान कृष्ण द्वारका के पारलौकिक धाम से प्रस्थान कर गए, तब वह वहाँ के लोगों की दृष्टि में बस एक अनुपस्थिति भर थी. ऐसा समझने की त्रुटि नहीं करनी चाहिए कि उनका पारलौकिक शरीर, जो मृत्युलोक में लीलाओँ के लिए उपयुक्त है, किसी भी रूप में वैकुंठलोकों में उनके विभिन्न विस्तारों से कमतर है. भौतिक संसार में उनके शरीर का प्रकटन इस अर्थ में सर्वोत्कृष्ट रूप से पारलौकिक है कि नश्वर संसार में उनकी लीलाएँ वैकुंठलोक में प्रदर्शित उनकी दया से श्रेष्ठ हैं. वैकुंठलोक में भगवान मुक्त या नित्य-मुक्त जीवों के प्रति दयालु हैं, लेकिन मृत्युलोक में उनकी लीलाओं में वे पतित आत्माओं के प्रति भी दयालु हैं जो हमेशा के लिए नित्य-बद्ध हैं. छः उत्तम एश्वर्य जो उन्होंने अपनी आंतरिक ऊर्जा, योग-माया के माध्यम से मृत्युलोक में प्रदर्शित किए थे, वैकुंठलोक में भी दुर्लभ हैं. उनकी सभी लीलाएँ भौतिक ऊर्जा से नहीं बल्कि उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रकट हुई थीं. वृंदावन में उनकी रास-लीला और सोलह हज़ार पत्नियों के साथ उनके गृहस्थ जीवन की उत्कृष्टता वैकुंठ में नारायण के लिए भी अद्भुत है और निश्चित ही इस नश्वर संसार में अन्य जीवों के लिए भी. उनकी लीलाएँ भगवान के अन्य अवतारों, जैसे श्रीराम, नृसिंह और वराह के लिए भी अद्भुत हैं. उनका एश्वर्य इतना उत्कृष्ट था कि उनकी लीलाओं की प्रशंसा वैकुंठ के भगवान द्वारा भी की जाती थी, जो स्वयं भगवान कृष्ण से भिन्न नहीं हैं. जब भगवान उपस्थित थे, वे लोग जो उन्हें सही दृष्टिकोण में देख कर अपनी भौतिक उत्कंठा को संतुष्ट करने योग्य थे वे उनके साथ उनके राज्य में वापस जाने में समर्थ हैं. जब भगवान सभी लोगों की दृष्टि से ओझल हो गए, तब उन्होंने ऐसा अपने मूल शाश्वत रूप में किया था. भगवान ने स्वयं अपने शरीर में प्रस्थान किया था; उन्होंने अपना शरीर नहीं छोड़ा था जैसा कि बद्ध आत्माएँ त्रुटिवश समझती हैं. यह कथन विश्वासहीन अ-भक्तों के झूठे प्रचार को परास्त करता है कि भगवान का अवसान किसी साधारण बद्ध आत्मा जैसे हुआ था. भगवान संसार को अविश्वासी असुरों के अनुचित बोझ से मुक्त करने के लिए प्रकट हुए थे; और ऐसा करने के बाद; वे संसार की आँखों से ओझल हो गए.
स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 02- पाठ 11 व 12