भगवान का नाम कृष्ण क्यों है?
वास्तव में भगवान का कोई विशिष्ट नाम नहीं है. ऐसा कहते हुए कि उनका कोई नाम नहीं है, हमारा आशय है कि उनके कितने नाम हैं यह कोई नहीं जानता. चूंकि भगवान असीमित हैं, उनके नाम भी असीमित होने चाहिए. इसलिए हम किसी एक नाम पर नहीं टिक सकते. उदाहरण के लिए, कृष्ण को कई बार यशोदा नंदन, माँ यशोदा का पुत्र, कहा जाता है; या देवकी नंदन, देवकी का पुत्र; या वासुदेव नंदन, वासुदेव का पुत्र; या नंद नंदन, नंद का पुत्र. कई बार उन्हें पार्थ-सारथी पुकारा जाता है, जिससे सूचित होता है कि उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी, जिन्हें कभी-कभी पार्थ, पृथ के पुत्र कहा जाता है. भगवान के अपने कई भक्तों से कई व्यवहार होते हैं, और उन व्यवहारों के अनुसार, उन्हें विशिष्ट नाम से पुकारा जाता है. चूंकि उनके असंख्य भक्त और उनके साथ असंख्य संबंध हैं, उनके असंख्य नाम भी हैं. हम किसी एक नाम पर ही नहीं रह सकते. लेकिन कृष्ण नाम का अर्थ “सबसे आकर्षक” है. भगवान सभी को आकर्षित करते हैं; यह भगवान की परिभाषा है. हम कृष्ण के कई चित्र देख चुके हैं और हम देखते हैं कि कृष्ण गायों, बछड़ों, पशुओं, पेड़, पौधों और यहाँ तक की वृंदावन में पानी तक को आकर्षित करते हैं. वे गौ चराने वाले बालकों, गोपियों, नंद महाराज, पांडवों, और समस्त मानव समाज के लिए आकर्षक हैं. इसलिए यदि भगवान को कोई विशिष्ट नाम दिया जा सकता है तो वो “कृष्ण” है. कुछ लोग कहते हैं कि भगवान का कोई नाम नहीं है – कि हम उन्हें केवल “पिता” बुला सकते हैं. कोई पुत्र अपने पिता को “पिता” बुला सकता है, लेकिन पिता का एक विशिष्ट नाम होता है. उसी समान, “भगवान”, भगवान के परम व्यक्तित्व का एक सामान्य नाम है, जिनका विशिष्ट नाम कृष्ण है. भगवान के पुत्र के रूप में, यीशु हमारे सामने भगवान के वास्तविक नाम को उद्घाटित कर चुके है: क्राइस्ट. हम भगवान को “पिता” कह सकते हैं, लेकिन यदि हम उन्हें उनके वास्तविक नाम से पुकारना चाहते हैं, तो हमें उन्हें “क्राइस्ट” कहना होगा. “क्राइस्ट” कृष्टा कहने का एक दूसरा ढंग है, और “कृष्टा” कृष्ण, भगवान के नाम को उच्चारित करने का एक और तरीका है. यीशु ने कहा कि व्यक्ति को भगवान के नाम का महिमामंडन करना चाहिए. इसलिए भले ही आप भगवान को “क्राइस्ट”, “कृष्टा”, या “कृष्ण” पुकारें, अंततः आप भगवान के उसी परम व्यक्तित्व को संबोधित कर रहे हैं. क्राइस्ट ग्रीक शब्द क्रिस्टोस से आता है, जिसका अर्थ है “वह जिसका अभिषेक किया गया है” और क्रिस्टोस कृष्ण शब्द का ग्रीक संस्करण है. इसलिए जब हम भगवान को “क्राइस्ट”, “कृष्टा” या “कृष्ण” के रूप में संबोधित करते हैं, तब हम उसी समस्त आकर्षक भगवान के परम व्यक्तित्व को ही प्रदर्शित करते हैं. श्री चैतन्य ने कहा था:नमनाम अकारी बहुधा निज-सर्व-शक्ति:.“भगवान के लाखों-लाख नाम हैं, और चूंकि भगवान के नाम और उनके बीच कोई अंतर नहीं है, इन नामों में से प्रत्येक की शक्ति भगवान के समान ही है.” इसलिए, भले ही आप हिंदू, ईसाई, या मुस्लिम जैसी पहचान स्वीकार कर लें, यदि आप स्वयं अपने शास्त्रों में उपलब्ध भगवान के नाम का जाप करते हैं, तो आपको आध्यात्मिक स्तर प्राप्त होगा. मानव जीवन का उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार है – यह सीखना कि भगवान से कैसे प्रेम करें. मानव का यही सौंदर्य है. आप इस कर्तव्य का पालन एक हिंदू, किसी ईसाई, या किसी मुस्लिम के रूप में करते हों, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता-बस पालन करें.
स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “आत्म-साक्षात्कार का विज्ञान”, पृ. 20, 128, 134