सभी प्रकार की उपासनाओं में, भगवान विष्णु की उपासना सर्वश्रेष्ठ होती है.
जैसा कि पद्म पुराण में कहा गया है :
अराधनानं सर्वेषं विष्णोर् आराधनम् परम
तस्मत् परतरम् देवी तदीयनाम् समार्चनम्
“सभी प्रकार की उपासनाओं में, भगवान विष्णु की उपासना सर्वश्रेष्ठ होती है, और भगवान विष्णु की उपासना से भी श्रेष्ठ उनके भक्त, वैष्णव की उपासना है.” ऐसे कई देवता हैं जिनकी उपासना वे लोग करते हैं जो भौतिक इच्छाओं से आसक्त होते हैं (कामैस तैस तैर हृत ज्ञानः प्रपद्यंतेन्य-देवताः). चूँकि लोग बहुत सी भौतिक इच्छाओं से व्याकुल रहते हैं, तो वे भगवान शिव, भगवान ब्रम्हा, देवी काली, दुर्गा, गणेश और सूर्य की उपासना विभिन्न फल अर्जित करने के लिए करते हैं. यद्यपि, व्यक्ति ये सारे फल एक ही साथ भगवान विष्णु की उपासना करके पा सकता है. जैसा कि भागवतम् (4.31.14) में अन्यत्र बताया गया है:
यथा तरोर् मूल-निषेचनेन तृप्यंति तत्-स्कंध-भुजोपासकः
प्राणोपहर्च च यथेन्द्रियनम् तथैव सर्वहरण अच्युतेज्यM/span>
“किसी पेड़ की केवल जड़ पर जल डालने से, व्यक्ति उसके तने और उसकी सभी शाखाओं, फलों और फूलों को पुष्ट करता है, और केवल पेट तक भोजन पहुँचाकर, व्यक्ति शरीर के सभी अंगों को संतुष्ट करता है. उसी प्रकार, भगवान विष्णु की उपासना करके व्यक्ति सभी को संतुष्ट कर सकता है.” कृष्ण चेतना एक संप्रदायवादी धार्मिक आंदोलन नहीं है. बल्कि, वह संसार के लिए सब को साथ लेने वाली कल्याणकारी गतिविधियों के लिए है. व्यक्ति इस आंदोलन में जाति, नस्ल, संप्रदाय या नागरिकता के संदर्भ में बिना किसी भेद-भाव के प्रवेश कर सकता है. यदि व्यक्ति भगवान के परम व्यक्तित्व, कृष्ण की उपासना करने के लिए प्रशिक्षित है, जो विष्णु-तत्व के मूल हैं, तो व्यक्ति सभी प्रकार से पूर्ण सुखी और श्रेष्ठ बन सकता है.
स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , आठवाँ सर्ग, अध्याय 5 – पाठ 49