सभी जीवों के वास्तविक पति कृष्ण ही हैं.

“लक्ष्मीदेवी (रमा) उन स्त्रियों के प्रति अनुकम्पा दिखाती हैं जो अच्छे पति के लिए आशीर्वाद पाने के लिए भगवान की उपासना करती हैं. यद्यपि ऐसी स्त्रियाँ संतान, संपत्ति, दीर्घायु और जो भी उन्हें प्रिय है, उनके साथ प्रसन्न रहने की कामना करती हैं, वे संभवतः ऐसा नहीं कर पातीं. भौतिक संसार में, एक तथाकथित पति भगवान के परम व्यक्तित्व के नियंत्रण पर निर्भर होता है. ऐसी स्त्री के अनेक उदाहरण हैं, जिसका पति, स्वयं अपने परिणामी कर्मों के परिणाम पर निर्भर होते हुए, अपनी पत्नी, संतानों, उसकी संपत्ति या उसके जीवन की अवधि का परिपालन नहीं कर सकता. इसलिए, वास्तविक रूप से सभी स्त्रियों के एकमात्र परम पति कृष्ण ही हैं. चूँकि गोपियाँ मुक्त आत्माएँ थीं, उन्होंने इस तथ्य को समझ लिया. इसलिए उन्होंने अपने भौतिक पतियों का परित्याग कर दिया और अपने वास्तविक पति के रूप में कृष्ण को स्वीकार लिया. कृष्ण न केवल गोपियों के, बल्कि प्रत्येक जीव के वास्तविक पति हैं. सबको संपूर्णता में यह समझ लेना चाहिए कि कृष्ण ही सभी जीवों के वास्तविक पति हैं, जिन्हें भगवद-गीता में प्राकृत (महिला) के रूप में वर्णित किया गया है, पुरुष के रूप में नहीं. भगवद-गीता (10.12) में, केवल कृष्ण को पुरुष के रूप में संबोधित किया गया है:

परम ब्रम्ह परम धाम पवित्रम परमम भवन
पुरुषम शाश्वतम दिव्यम आदि-देवम अजम विभुम

“आप ही परम ब्राम्हण, सर्वोच्च, परम धाम और शुद्धिकर्ता, परम सत्य और शाश्वत दिव्य व्यक्ति हैं. आप प्राथमिक भगवान, पारललौकिक और मूल हैं, और आप अजन्मे और सर्वव्यापी सौंदर्य हैं.” कृष्ण ही वास्तविक पुरुष हैं, और जीव प्रकृति हैं. इस प्रकार कृष्ण भोक्ता हैं, और सभी जीव का उद्देश्य उनके द्वारा भोगा जाना है. इस लिए वह स्त्री जो अपनी सुरक्षा के लिए एक भौतिक पति खोजती है, या ऐसा कोई भी पुरुष जो उस स्त्री का पति बनना चाहे, वह भ्रम के वशीभूत है. पति बनने का अर्थ है धन और सुरक्षा का सम्मान करते हुए पत्नी और संतानों का भली प्रकार से पालन-पोषण करना. यद्यपि एक सांसारिक पति, संभवतः ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि वह अपने कर्म पर निर्भर होता है. कर्मणा-दैव-नेत्रेणा: उसकी परिस्थितियाँ उसके अतीत के परिणामी कर्मों से निर्धारित होती हैं. इसलिए अगर कोई गर्व से यह सोचता है कि वह अपनी पत्नी की रक्षा कर सकता है, तो वह भ्रम में है. कृष्ण एकमात्र पति हैं, और इसलिए इस भौतिक संसार में पति और पत्नी के बीच का संबंध पूर्ण नहीं हो सकता. चूँकि हम विवाह के इच्छुक हैं, कृष्ण ने दया करके तथाकथित पति को पत्नी को पास रखने की और पत्नी को एक तथाकथित पति के साथ रहने की अनुमति आपसी संतुष्टि के लिए दी. इसोपनिषद में कहा गया है, तेन त्यक्तेन भुंजिथा: भगवान सभी को अपना भाग प्रदान करते हैं. यद्यपि, वास्तव में, प्रत्येक जीव प्रकृति या स्त्री है, और कृष्ण एकमात्र पति हैं.

एकले ईश्वर कृष्ण, आरे सब भृत्य यारे याइचे नचाया, से ताइचे करे नृत्य (Cc. Adi 5.142)

कृष्ण सभी के वास्तविक स्वामी या पति हैं, और अन्य सभी जीव, तथाकथित पतियों, या पत्नियों का रूप लेकर, उनकी इच्छानुसार नृत्य कर रहे हैं. एक तथाकथित पति उसकी पत्नी के साथ इंद्रिय तुष्टि के लिए मिलन कर सकता है, लेकिन उसकी इंद्रियाँ ह्रषिकेश, इंद्रियों के स्वामी द्वारा संचालित होती है, इशलिए वे ही वास्तविक पति हैं.”

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, पाँचवाँ सर्ग, अध्याय 18 – पाठ 19