मायादेवी/दुर्गा को पृथ्वी के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है.
“चूँकि कृष्ण और उनकी ऊर्जा एक साथ प्रकट हुए, लोगों ने सामान्यतः दो समूहों का गठन किया – शाक्त और वैष्णव – और कभी-कभी उनके बीच प्रतिद्वंद्विता होती है. अनिवार्यतः, जो लोग भौतिक भोग में रुचि रखते हैं, वे शाक्त हैं, और आध्यात्मिक मोक्ष और आध्यात्मिक राज्य अर्जित करने में रुचि रखने वाले वैष्णव होते हैं. चूँकि लोग सामान्यतः भौतिक भोग में रुचि रखते हैं, वे भगवान के परम व्यक्तित्व की ऊर्जा, मायादेवी की पूजा करने में रुचि रखते हैं. यद्यपि, वैष्णव शुद्ध-शक्ति या शुद्ध भक्त हैं, क्योंकि हरे कृष्ण महा-मंत्र सर्वोच्च भगवान की ऊर्जा, हरि की उपासना को इंगित करता है. एक वैष्णव भगवान के साथ-साथ उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा की सेवा करने के लिए भगवान की ऊर्जा की उपासना करता है. अतः वैष्णव राधा-कृष्ण, सीता-राम, लक्ष्मी-नारायण और रुक्मी-द्वारकाधीश जैसे सभी अर्चा विग्रह: की पूजा करते हैं, जबकि दुर्गा-शाक्त विभिन्न नामों से भौतिक ऊर्जा की पूजा करते हैं.
जिन नामों से मायादेवी को विभिन्न स्थानों में जाना जाता है, वल्लभाचार्य ने उन्हें इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया है. वाराणसी में उन्हें दुर्गा, अवंति में भद्रकाली, उड़ीसा में उन्हें विजया और कोल्हापुर में वैष्णवी या महालक्ष्मी के नाम से जाना जाता है. (महालक्ष्मी और अंबिका की प्रतिनिधि मुंबई में उपस्थित हैं.) कामरूप के नाम से जाने वाले देश में उन्हें चंडिका, उत्तरी भारत में शारदा और केप कोमोरिन में कन्यका के नाम से जाना जाता है. इस प्रकार उन्हें विभिन्न स्थानों में विभिन्न नामों के अनुसार वितरित किया गया है.
श्रील विजयध्वज तीर्थपाद ने अपने पद-रत्नावली-टीका में, विभिन्न अभ्यावेदन के अर्थों की व्याख्या की है. माया को दुर्गा के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन तक पहुँचना दुर्गम होता है, भद्रा के रूप में क्योंकि वे शुभ होती हैं, और काली के रूप में क्योंकि वे गहरे नीले रंग की हैं. चूँकि वे सबसे शक्तिशाली ऊर्जा हैं, वे विजया नाम से जानी जाती हैं; विष्णु की विभिन्न ऊर्जाओं में से एक होने के कारण, उन्हें वैष्णवी के नाम से जाना जाता है; और चूँकि वे इस भौतिक संसार में आनंद लेती है और भौतिक आनंद के लिए सुविधाएं देती है, वे कुमुदा के नाम से जानी जाती हैं. वे अपने शत्रुओं, असुरों के प्रति बहुत कठोर है, इसलिए उन्हें चंडिका के नाम से जाना जाता है, और क्योंकि वे सभी प्रकार की भौतिक सुविधाएं प्रदान करती हैं, उन्हें कृष्णा कहा जाता है. इस प्रकार भौतिक ऊर्जा विभिन्न नामों के साथ पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न स्थानों में स्थित है.”
स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 02 – पाठ 11-12