भगवान शिव के कुछ अनुयायी उनकी नकल करते हैं और गांजा (मारिजुआना) जैसे नशीले पदार्थ लेने का प्रयास करते हैं.
शराब और मांस में लिप्त रहना, अपने सिर पर लंबे बाल रखना, प्रतिदिन स्नान नहीं करना और गांजा (मारिजुआना) कुछ ऐसी आदतें हैं, जो मूर्ख प्राणियों द्वारा स्वीकार की जाती हैं, जिनका जीवन नियमित नहीं होता है. ऐसे व्यवहार से व्यक्ति पारलौकिक ज्ञान से वंचित रह जाता है. कभी-कभी यह देखा जाता है कि भगवान शिव के भक्त भगवान शिव की विशेषताओं का अनुकरण करते हैं. उदाहरण के लिए, भगवान शिव ने विष का एक सागर पी लिया था, इसलिए भगवान शिव के कुछ अनुयायी उनकी नकल करते हैं और गांजा (मारिजुआना) जैसे नशीले पदार्थ लेने का प्रयास करते हैं. यहाँ श्राप यह है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसे सिद्धांतों का पालन करता है तो उसे एक नास्तिक बनना पड़ता है और वैदिक विनियमों के सिद्धांतों के विरुद्ध हो जाता है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के ऐसे भक्त सच्छास्त्र-परिपंथिनाः होंगे, जिसका अर्थ है “शास्त्र, या शास्त्र के निष्कर्ष का विरोध करना”. पद्म पुराण में भी इसकी पुष्टि की गई है. भगवान शिव को भगवान के परम व्यक्तित्व द्वारा आदेश दिया गया था कि वे किसी विशेष उद्देश्य के लिए अवैयक्तिक या मायावादी दर्शन का प्रवचन करें, जिस प्रकार भगवान बुद्ध ने शास्त्रों में उल्लिखित विशेष प्रयोजनों के लिए शून्य दर्शन का उपदेश दिया था. कभी-कभी किसी ऐसे दार्शनिक सिद्धांत का प्रचार करना आवश्यक होता है जो वैदिक निष्कर्ष के विरुद्ध हो. शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने पार्वती से कहा था कि कलियुग में, वे ब्राह्मण के शरीर में, वे मायावाद दर्शन का प्रचार करेंगे. इस प्रकार यह सामान्यतः पाया जाता है कि भगवान शिव के उपासक मायावादी अनुयायी होते हैं.
स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, चतुर्थ सर्ग, अध्याय 2- पाठ 28 व 29