भगवान की इच्छा के बिना घास का एक तिनका भी नहीं हिलता.
मानवशास्त्रियों के अनुसार, अस्तित्व के लिए संघर्ष और योग्यतम की उत्तरजीविता का प्रकृति का नियम है. लेकिन वे नहीं जानते कि प्रकृति के नियम के पीछे भगवान के परम व्यक्तित्व के परम निर्देश का हाथ होता है. भगवद्-गीता में यह पुष्टि की गई है कि प्रकृति का नियम भगवान के निर्देशन के अधीन ही निष्पादित किया जाता है. इसलिए, संसार में जब भी शांति होती है, तो यह जानना चाहिए कि ऐसा भगवान की सदिच्छा के कारण ही है. और जब भी संसार में अशांति हो, तो वह भी भगवान की परम इच्छा से ही होता है. भगवान की इच्छा के बिना तृण का एक तिनका भी नहीं हिलता. इसलिए, जब भी भगवान द्वारा निष्पादित किए गए स्थापित नियमों का उल्लंघन किया जाता है, तो मनुष्यों और राष्ट्रों में युद्ध होता है. इसलिए, शांति के पथ का सुनिश्चित मार्ग सभी वस्तुओँ का भगवान के स्थापित नियम से सामंजस्य बनाना ही है.
स्थापित नियम यही है कि हम जो कुछ भी करें, हम जो कुछ भी खाएँ, हम जो कुछ भी बलि दें या जो कुछ भी दान करें वह भगवान की पूर्ण संतुष्टि के लिए ही करा जाना चाहिए. किसी को भी भगवान की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी करना, कुछ भी खाना, कोई बलि या दान नहीं देना चाहिए. विवेक वीरता का श्रेष्ठतर भाग होता है, और व्यक्ति को उन कर्मों के बीच अंतर करना सीखना चाहिए जो भगवान को प्रिय हो सकते हैं और जो उनके लिए प्रसन्नकारी न हों. इसलिए कर्म को भगवान की प्रसन्नता और अप्रसन्नता द्वारा आँका जाता है. व्यक्तिगत इच्छा के लिए कोई स्थान नहीं होता; हमारी पथ-प्रशस्ति हमेशा भगवान की प्रसन्नता द्वारा होनी चाहिए. ऐसे कर्म को योगः कर्मषु कौशलम्, या परम भगवान के साथ जुड़े हुए निष्पादित कर्म कहा जाता है. वही पूर्णता से किसी कर्म को करने की कला है.
स्रोत : अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 15 – पाठ 24


 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	






