परम भगवान श्रीकृष्ण सभी जीवों के पिता हैं.
बहुत से राजा, नेता, ज्ञानी विद्वान, वैज्ञानिक, कलाकार, इंजीनियर, अविष्कारक, उत्खनक, पुरातत्त्ववेत्ता, उद्यमी, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, व्यवसायी दिग्गज, और कई अधिक शक्तिशाली ब्रम्हा, शिव, इंद्र, चंद्र, सूर्य, वरुण और मारुत जैसे देवता हैं, जो विभिन्न पदों में, व्यवस्थापन के वैश्विक मामलों के हितों की रक्षा करते हैं, और वे सभी परम भगवान के विभिन्न शक्तिशाली अंग हैं. परम भगवान श्रीकृष्ण सभी जीवों के पिता हैं, जिन्हें विभिन्न उच्च और निम्न पदों पर उनकी इच्छा या अभिलाषा के अनुसार रखा जाता है. उनमें से कुछ को, जैसा कि ऊपर विशिष्ट रूप से बताया गया है, भगवान की इच्छा से विशेष रूप से शक्ति संपन्न किया गया है. किसी स्वस्थचित्त व्यक्ति को यह निश्चित ही पता होना चाहिए कि जीव, वह चाहे जितना भी शक्तिशाली हो, ना ही परम है ना ही स्वतंत्र है. सभी जीवों को इस श्लोक में उद्धृत किए गए अनुसार अपनी विशिष्ट शक्तियों के मूल को स्वीकार करना चाहिए. और यदि वे तदनुसार कर्म करें, तो बस उनके अपने-अपने उपजीविकाजन्य कर्तव्य निभा कर वे जीवन की उच्चतम पूर्णता को प्राप्त कर सकते हैं, जैसे अमर जीवन, पूर्ण ज्ञान और असमाप्य आशीर्वाद, जब तक विश्व के शक्तिशाली पुरुष अपनी-अपनी शक्ति के मूल को नहीं स्वीकारते, जो कि भगवान का परम व्यक्तित्व है, माया (भ्रम) के कर्म अपना कार्य करते रहेंगे. माया के कार्य-कलाप ऐसे होते हैं कि भ्रामक, भौतिक ऊर्जा से पथभ्रष्ट एक शक्तिशाली व्यक्ति, त्रुटिवश स्वयं को ही सबकुछ स्वीकारता है और भगवान चेतना को विकसित नहीं करता. इस प्रकार से, अहंकार का मिथ्या भान (मैं और मेरा) विश्व में बहुत अधिक प्रतिष्ठित हो गया है, और मानव समाज में अस्तित्व के लिए कड़ा संघर्ष है. इसलिए मानवों के बुद्धिमान वर्ग को, भगवान को ही सभी ऊर्जाओं के परम स्रोत समझना चाहिए औऱ इस प्रकार उनके शुभ आशीर्वाद के लिए भगवान के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए. बस भगवान को सभी वस्तुओं का परम स्वामी स्वीकार करके, क्योंकि वे वास्तव में हैं, व्यक्ति जीवन की उच्चतम पूर्णता प्राप्त कर सकता है. चीज़ों के सामाजिक क्रम की दृष्टि में कोई व्यक्ति कुछ भी हो, यदि एक व्यक्ति भगवान के परम व्यक्तित्व के प्रति प्रेम भावना का प्रतिदान करने का प्रयास करता है और भगवान के आशीर्वाद से संतुष्ट है, तो वह तुरंत उच्चतम मानसिक शांति का अनुभव करेगा जिसके लिए वह अनेकों जन्मों से उत्कंठित है. मानसिक शांति, या दूसरे शब्दों में स्वस्थ मानसिक अवस्था, तभी पाई जा सकती है जब मन भगवान की प्रेममयी पारलौकिक सेवा में स्थित हो. भगवान के अंशों को भगवान की सेवा करने के लिए विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जैसे किसी व्यवसायी दिग्गज के पुत्रों को प्रशासन के विशिष्ट अधिकारों से सश्क्त किया जाता है. आज्ञाकारी पुत्र कभी भी पिता की इच्छा के विरुद्ध नहीं जाते और इसलिए परिवार के प्रमुख के साथ एकचित्त होकर बहुत शांति से जीवन व्यतीत करते हैं. उसी प्रकार, भगवान के पिता होते हुए, सभी प्राणियों को, आज्ञाकारी पुत्रों के रूप में, पूर्ण रूप से और संतुष्टिकारी रूप से कर्तव्य और पिता की इच्छा का पालन करना चाहिए. यही मानसिकता मानव समाज के लिए तुरंत शांति और समृद्धि लाएगी.
अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, द्वितीय सर्ग, अध्याय 6- पाठ 6