कृष्ण न तो प्रार्थनाओं से प्रभावित होते हैं और न ही निन्दा से.
जीवन की शारीरिक धारणा के कारण, बद्ध आत्मा विचार करती है कि जब शरीर का विनाश हो जाता है तो जीव का भी नाश हो जाता है. भगवान विष्णु (कृष्ण), परम भगवान के व्यक्तित्व, सर्वोच्च नियंत्रक, सभी जीवों के परम आत्मा हैं. चूँकि उनका कोई भौतिक शरीर नहीं है, इसलिए उनकी “मैं और मेरा” की कोई झूठी अवधारणा नहीं है. इसलिए यह विचार करना त्रुटिपूर्ण है कि उन्हें निंदा किए जाने या उपासना किए जाने पर कष्ट या प्रसन्नता होती है. ऐसा उनके लिए असंभव है. अतः उनका कोई शत्रु और मित्र नहीं है. जब वे दानवों को दंड देते हैं तो यह उनकी भलाई के लिए ही होता है, और जब वे भक्तों की प्रार्थना स्वीकार करते हैं तो यह उनकी भलाई के लिए होता है. वे न तो प्रार्थनाओं से प्रभावित होते हैं और न ही निन्दा से.
स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, सातवाँ सर्ग, अध्याय 1 – पाठ 25