श्रेष्ठ का अनुगमन करना क्यों महत्वपूर्ण है?
ज्येष्ठाधिकार का आधुनिक अंग्रेजी कानून, या प्रथम संतान के उत्तराधिकार का कानून उन दिनों भी प्रचलित था जब महाराजा युधिष्ठिर पृथ्वी और समुद्रों पर राज्य करते थे. उन दिनों में हस्तिनापुर (अब नई दिल्ली का भाग) के राजा, समुद्रों सहित महाराज युधिष्ठिर के पोते महाराजा परीक्षित के समय तक संसार के सम्राट थे. महाराज युधिष्ठिर के कनिष्ठ भाई उनके मंत्रियों और राज्य के सेनापतियों के रूप में कार्य कर रहे थे, और राजा के संपूर्ण धार्मिक भाइयों के बीच पूर्ण सहयोग था. महाराज युधिष्ठिर आदर्श राजा या पृथ्वी पर राज्य करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिनिधि थे और राजा इंद्र के समतुल्य थे, जो स्वर्ग के प्रतिनिधि शासक थे. इंद्र, चंद्र, सूर्य, वरुण, और वायु जैसे देवता ब्रम्हांड के विभिन्न ग्रहों के प्रतिनिधि राजा हैं, और वैसे ही महाराज युधिष्ठिर भी उनमें से एक थे, जो पृथ्वी पर राज्य करते थे. महाराज युधिष्ठिर आधुनिक लोकतंत्र के किसी अशिक्षित नेता नहीं थे. महाराज युधिष्ठिर को भीष्मदेव और अभ्रांत भगवान ने भी प्रशिक्षित किया था, और इसलिए उन्हें सभी बातों का अचूक ज्ञान था. आधुनिक चुना गया राज्य कार्यकारी प्रमुख बस एक कठपुतली की तरह होता है क्योंकि उसके पास राजा जैसी कोई शक्ति नहीं होती. भले ही वह महाराज युधिष्ठिर की तरह प्रबुद्ध हो, वह वैधानिक स्थिति के कारण स्वयं अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकता. इसलिए, पृथ्वी पर बहुत सारे राज्य वैचारिक मतभेदों या अन्य स्वार्थपरक कारणों से झगड़ते रहते हैं. लेकिन महाराज युधिष्ठिर जैसे राजा की अपनी कोई विचारधारा नहीं थी. उनको केवल अभ्रांत भगवान और भगवान के प्रतिनिधि और आधिकारिक दूत, भीष्मदेव के निर्देशों का पालन करना था. शास्त्रों में निर्देश किया गया है कि व्यक्ति को महान विद्वान और अभ्रांत भगवान का अनुसरण किसी व्यक्तिगत मंशा और बनाई हुई विचारधारा के बिना करना चाहिए. इसलिए, महाराज युधिष्ठिर के लिए समुद्रों सहित, संपूर्ण संसार पर शासन करना संभव था, क्योंकि सिद्धांत अचूक थे और वैश्विक रूप से सभी के लिए अनुकूल थे. एक विश्व राज्य की अवधारणा तभी पूरी हो सकती है जब हम अचूक प्राधिकार का पालन कर सकें. एक असिद्ध मानव एक ऐसी विचारधारा नहीं बना सकता जो सभी को स्वीकार्य हो. केवल एक निपुण और अचूक व्यक्ति ही ऐसा कार्यक्रम बना सकता है जो प्रत्येक स्थान के अनुकूल हो और संसार में सभी के द्वारा पालन किया जा सके. वह व्यक्ति होते हैं जो शासन करते हैं, न कि अवैयक्तिक प्रशासन. यदि व्यक्ति निपुण है तो प्रशासन भी संपूर्ण है. यदि व्यक्ति एक मूर्ख है, तो सरकार भी मूर्खों की महासभा होगी. यही प्रकृति का नियम है. अयोग्य राजाओं या कार्यकारी प्रमुखों की ऐसी अनेक कहानियाँ हैं. इसलिए, कार्यकारी प्रमुख को महाराज युधिष्ठिर जैसा प्रशिक्षित व्यक्ति होना चाहिए, और उसके पास संसार पर शासन करने की पूर्ण निरंकुश शक्ति होनी चाहिए. एक विश्व राज्य की अवधारणा महाराज युधिष्ठिर जैसे किसी निपुण राजा के शासन के अधीन ही आकार ले सकती है. विश्व उन दिनों प्रसन्न था क्योंकि संसार पर शासन करने के लिए महाराज युधिष्ठिर जैसे राजा थे.
स्रोत : अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, प्रथम सर्ग, अध्याय 10 – पाठ 3