भगवान और उनके सहयोगी भगवान की इच्छा से प्रकट और अप्रकट होते हैं.
भगवान और उनके सहयोगी भगवान की इच्छा से प्रकट और अप्रकट होते हैं. वे भौतिक प्रकृति के नियमों के अधीन नहीं है. इसलिए उनके प्रस्थान के लिए एकमात्र साधन स्वयं उनके बीच एक लड़ाई दिखाना था, जैसे वे मदिरापान के कारण नशे में लड़ रहे हों. वह तथा-कथित लड़ाई भी भगवान की इच्छा से ही घटित होगी, अन्यथा उनकी लड़ाई के लिए कोई हेतु नहीं होगा. जैसे अर्जुन को पारिवारिक स्नेह के भ्रम में डाला गया था और उस प्रकार भगवद्-गीता कही गई थी, ताकि भक्त और भगवान के सहयोगी पूर्ण रूप से आत्मा को समर्पित कर दें. अतः वे भगवान के हाथों के पारलौकिक यंत्र हैं और भगवान की इच्छा से किसी भी विधि से प्रयोग में लाए जा सकते हैं. विशुद्ध भक्त भी भगवान की ऐसी लीलाओं का आनंद लेते हैं क्योंकि वे उन्हें प्रसन्न देखना चाहते हैं. भगवान के भक्त कभी भी स्वतंत्र व्यक्तित्व का दावा नहीं करते; इसके विपरीत, वे अपनी वैयक्तिकता का उपयोग भगवान की इच्छा की पूर्ति के लिए करते हैं, और भगवान के साथ भक्तों का यह सहयोग भगवान की लीलाओँ के लिए एक सटीक दृश्य बनाता है.
स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 03- पाठ 15


 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
	 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
			
			
		 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	






